विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

बुधवार, 6 अप्रैल 2016

विदुर - नीति सम्राट Vidur - Emperor of Principles


महाभारत हिन्दू सभ्यता एवं संस्कृति का पवित्र धर्मग्रन्थ है। महाभारत पूर्णतः अधर्म पर धर्म की विजय की महागाथा है।

महाभारत का वर्णन हो रहा हो और विदुर की चर्चा न हो तो ये पूरे महाभारत कथा का अपमान होगा। विदुुर  एक अत्यंत नीतिपूर्ण एवं न्यायोचित व्यक्तित्व वाले शख्स थे। उनका निर्णय हमेशा तर्कसंगत एवं मानवजाति के लिए लाभदायक ही रहा है। विदुर की नीतियों को 'विदुर नीति' के नाम से भी पुकारा जाता है। उन्हें 'नीति सम्राट' कहकर पुकारना भी गलत न होगा।

विदुर महाभारत के युद्ध को रोकने का भरकस प्रयत्न करते हैं परंतु रोक नहीं पाते परंतु इसका अर्थ उनकी नीतियों की विफलता कतई नहीं है। उनकी प्रत्येक नीति काल की कसौटी पर जाँचा और परखा गया है। द्वापर युग की विदुर नीति आज के समाज के लिए और अधिक आवश्यक हो गयी है जिसका प्रमाण महात्मा विदुर के निम्नलिखित नीतियों से आपको स्पष्ठ हो जायेगा -

1) जिस धन को अर्जित करने में मन तथा शरीर को कलेश हो, धर्म का उल्लंघन करना पड़े, शत्रु के सामने अपना सिर झुकाने की बाध्यता उपस्थित हो, उसे प्राप्त करने का विचार ही त्याग देना श्रेयस्कर है।

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2) पर स्त्री का स्पर्श, पर धन का हरण, मित्रों का त्याग रूप - यह तीनों दोष क्रमशः काम, लोभ और क्रोध से उत्पन्न होते हैं।

3) जो विश्वास का पात्र नहीं है, उसका तो कभी विश्वास किया ही नहीं जाना चाहिए। पर जो विश्वास के योग्य है, उस पर भी अधिक विश्वास नहीं किया जाना  चाहिये। विश्वास से जो भय उत्पन्न होता है, वह मूल उद्देश्य का भी नाश कर डालता है।

4) संसार के छह सुख प्रमुख हैं - धन प्राप्ति, हमेशा स्वस्थ रहना, वश में रहने वाले पुत्र, प्रिय भार्या, प्रिय बोलने वाली भार्या और मनोरथ पूर्ण कराने वाली विद्या अर्थात् इन छह से संसार में सुख उपलब्ध होता है।

5) बुद्धिमान व्यक्ति के प्रति कोई अपराध करके दूर चला भी जाये तो चैन से न बैठे, क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति की बाहें लंबी होती है और समय आने पर वह अपना बदला लेता है।

6) अपना तथा जगत का कल्याण अथवा उन्नति चाहने वाले मनुष्य को तन्द्रा, निद्रा, भय, क्रोध, आलस्य और प्रमाद - यह छह दोष हमेशा के लिये त्याग देने चाहिए।

7) वह लाभ जो भविष्य में आपको हानि पहुँचाए, उसे अधिक महत्व न दो।

8) एक मनुष्य को अंतर्मन से उस भय का सम्मान करना चाहिए जो भविष्य में भयहीन परिस्थिति को उत्पन्न करे।

9) नीच (चरित्र वाले) लोगों से मित्रता नहीं करनी चाहिए।

10) आग को ईंधन से, सागर को नदियों से, मृत्यु को जीवन से और एक नीच औरत को मर्दों से सन्तुष्ट नहीं कर सकते।

11) आशा धैर्य को, यमराज जीवन को, क्रोध संपत्ति को, डर प्रसिद्धि को और असावधानी प्राणियों को नष्ट कर डालता है।

12) इच्छाओं, लालच और प्राण की खातिर एक मनुष्य को अपने धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए।

13) निज स्वार्थ की खातिर झूठ बोलना, राजा से गद्दारी करना और गुरु की आज्ञा का उल्लंघन करना ब्रह्महत्या के समान माना गया है।

14) जो अपना आदर-सम्मान होने पर खुशी से फूल नहीं उठता और अनादर होने पर क्रोधित नहीं होता तथा गंगाजी के कुण्ड के समान जिसका मन अशांत नहीं होता, वह ज्ञानी कहलाता है।

15) धनवान व्यक्ति के कई मित्र होते हैं। उसके सभी संबंधी भी होते हैं। धनवान को ही आदमी कहा जाता है और पैसेवालों को ही पंडित कहकर नवाजा जाता है।

16) काल सभी जीव को निपुणता प्रदान करता है। वही सभी जीवों का संहार भी करता है। वह जागता रहता है जब सब सो जाते हैं। काल को कोई जीत नहीं सकता।

17) एक परिवार को बचाने के लिए एक आदमी का बलिदान करो; गाँव को बचाने के लिए एक परिवार का बलिदान करो; राष्ट्र को बचाने के लिए एक गाँव का बलिदान करो; आत्मा को बचाने के लिए धरती का बलिदान करो।

18) मित्र, शत्रु, उदासीन, शरण देने वाले और शरणार्थी - ये पाँच लोग छाया की भांति सदा आपके पीछे लगे रहते हैं।

19) किसी भी धर्म स्थान पर जब कोई व्यक्ति सत्संग का लाभ उठाता है, श्मशान में किसी के शव दाहसंस्कार होता देखता है या किसी रोगी को अपनी पीड़ा से छटपटाता हुआ देखता है तो उस भौतिक दुनिया को निरर्थक मानने लगता है परंतु जैसे ही वहाँ से हट जाता है वैसे ही उसकी बुद्धि फिर इसी संसार के भौतिक स्वरुप की तरफ आकर्षित होती है।

20) जिस तरह मृग विषैला बाण हाथ में लिए शिकारी के पास पहुँचकर कष्ट पाता है वैसे ही मनुष्य अपने धनी बन्धु के पास कष्ट पाता है। वह धन देने से इंकार कर दे तो कष्ट होता है और दे तो उसके पाप का भागी बनता है।

विदुर नीति को जीवन में प्रेम एवं व्यवहार की नीतियों के रूप में विशेष स्थान प्राप्त है। उनकी नीतियों में सत्य-असत्य का विशेष अंतर स्पष्ठ रूप से मिलता है।

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