विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

मंगलवार, 28 जुलाई 2015

APJ Abdul Kalam




हमें सपने जरुर देखने चाहिए ताकि उसे पूरा कर सके I    
-   Dr APJ Abdul Kalam

दोस्तों, भारत ने 27 जुलाई, 2015 की शाम अपने एक कीमती रत्न को खो दिया है. जी हाँ वो कोई और नहीं भारत रत्न, जनता के राष्ट्रपति, मिसाइल मानव इत्यादी कहीं किताबों से विभूषित भारत के 11 वें राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का आज शाम 7 बजकर 45 मिनट पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.

उस वक्त डॉ. कलाम मेघालय में IIM के छात्रों को भाषण दे रहे थे जब उन्हें सीने में दर्द की शिकायत हुई परन्तु अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में ही उनका निधन हो गया.

ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भारत के पहले वैज्ञानिक राष्ट्रपति है जिन्होंने बच्चों का दिल सबसे अधिक जीता. उन्हें बच्चों से काफी लगाव था. अपने राष्ट्रपति काल में व्यस्त कार्यक्रमों के दौरान भी वे जहाँ-कहीं भी गये वहाँ समय निकालकर बच्चों से उन्होंने प्रत्यक्ष संवाद किया. उनका स्वभाव बहुत ही कोमल और मृदु था. शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो अब्दुल कलाम से मिलकर उसके चरित्र के मुरीद न हुए हो.

आपको ये जानकार आश्चर्य होगा की 83 वर्ष की आयु में भी उनकी डायरी में एक भी ऐसा समय नहीं होगा जब वे व्यस्त न हो. आने वाले कहीं दिनों तक उनकी व्यस्त दिनचर्या का विवरण लिखित है.

उनकी जीवनी, उनका आदर्श, उनके उसूल सब आज तक मानव मात्र के लिए कल्याणकारी ही सिद्ध हुए है और आगे भी होता रहेगा.

Thanks…….

रविवार, 26 जुलाई 2015

मूर्खादिराज

दोस्तों, हम सभी ने बचपन में बहुत सारी कहानियाँ पढ़ी और सुनी है परन्तु उस उम्र में उन कहानियों का सही अर्थ भले ही समझ न आये परन्तु रोचक लगते हैं. परन्तु समय गुजरने के साथ-साथ जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में आपको इन कहानियों से मिली सीख का लाभ भी मिलता रहता है.

आज मैं आपसे अकबर और बीरबल से जुड़ा ऐसा ही एक किस्सा share करने जा रहा हूँ जो रोचक तो है ही और साथ ही साथ ज्ञानवर्धक भी.

जरूर पढ़ें - 'भीष्म उपदेश' - उन्नति चाहने वालों के लिए।

एक दिन बादशाह अकबर अपनी सबसे प्रिय रानी जोधा बेगम के कमरे में जा रहे थे, उस वक्त जोधा अपनी सहेली से बातें कर रही थी. बादशाह वहाँ चुपचाप जाकर खड़े हो गये.

बादशाह को वहाँ यूँ खड़े देख जोधा मुस्कुराते हुए बादशाह से कहा, “पधारिये मूर्खादिराज, आपका स्वागत है.”

जोधा बेगम द्वारा उन्हें इस प्रकार पुकारे जाने पर बादशाह को गुस्सा तो काफी आया परन्तु शांत रहे. वे जानते थे की जोधा बेगम कोई भी बात बिना सोचे-विचारे नहीं कहती. परन्तु मन को भला कैसे समझाएं.

अपने कमरे में आकर बादशाह इसी विषय पर विचार करने लगे. इसी बीच बीरबल वहाँ पधारे. बीरबल को देखते ही बादशाह ने कहा, “पधारिये मूर्खादिराज”.

जवाब में बीरबल ने हँसकर कहा, “जी मूर्खादिराजजी”.

बादशाह ने गुस्से में बीरबल की और देखते हुए उनसे ऐसे पुकारे जाने का कारण पूछा.

जरूर पढ़ें - 'चाणक्य की प्रकृति सीख' - प्रकृति ही गुरु है।

बीरबल – बादशाह, मनुष्य पाँच प्रकार से मूर्ख कहलाता है.

पहला, जब कोई दो व्यक्ति आपस में बात कर रहें हो तब बिन बुलाये अथवा बिना पूर्व सूचना के कोई उसके नजदीक आकर बातें सुनता है, मूर्ख कहलाता है.

दूसरा, जब कोई दो व्यक्ति आपस में बात कर रहें हो तब कोई उनके मध्य आकर अपनी बातें शुरु कर दे, मूर्ख कहलाता है.

तीसरा, जब कोई व्यक्ति स्वंय से बातें कर रहा हो और पूरी बात जाने बिना कोई और बीच में बातें करने लगता है, मूर्ख कहलाता है.

चौथा, जो बिना किसी अपराध के अथवा दोष के किसी को अपराधी कहें, गाली दे, अथवा दोषी मान ले, मूर्ख कहलाता है. 

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मंगलवार, 21 जुलाई 2015

हौसलों की उड़ान


दोस्तों, व्यक्ति चाहे कैसा अथवा कोई भी क्यों न हो, यदि वह अपने बुलंद हौसलों से मंजिल की ओर कदम बढ़ाता है तो सफलता अवश्य मिलती है.

आज मैं आपसे एक ऐसे व्यक्ति की कहानी share करने जा रहा हूँ जिसने केवल अपने हौसलों के बल पर एक पहाड़ को झुकने पर मजबूर कर दिया.

यह कहानी बिहार के गहलोर घाटी के एक गाँव की है. एक समय यह गाँव चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ था. किसी कारणवश यदि गाँव वालों को शहर में जाना होता तो उन्हें पहाड़ों के ऊपर से होकर गुजरना पड़ता था जो की काफी जोखिम भरा काम था और इसमें काफी समय भी लग जाता था. गाँव वाले स्थानीय अधिकारियों से इसकी गुहार लगाते पर कोई नतीजा नहीं निकला.

उस वक्त गाँव में दशरथ मांझी नाम का एक व्यक्ति रहता था, जिसकी उम्र 24 वर्ष था. वह काफी जोशीला और कर्मठ था. वह रोजगार के सिलसिले में प्रतिदिन औरों की तरह इन खतरनाक पहाड़ी को पार कर उस ओर जाता था. एक दिन उसकी पत्नी फाल्गुनी जो उसके लिए हमेशा की तरह खाना लेकर आ रही थी, पहाड़ी पर फिसल गयी जिससे उसे गंभीर चोट आयी और उसके टकने टूट गए.

दशरथ को इस घटना ने काफी विचलित और अशांत कर दिया. जब मन थोड़ा शांत हुआ तब उसने परिस्थिति को बदलने का निश्चय किया. उसने पहाड़ी के बीच से रास्ता बनाने का निश्चय कर लिया.

दशरथ कोई इंजीनियर नहीं था और न ही उसके पास कोई आधुनिक हथियार. हाथों से इस्तेमाल होने वाले औजारों यानि की हथोडा और चैनी को लेकर सन 1960 में एक दिन अतरी से लेकर वजीरगंज के लिए पहाड़ों के बीच से रास्ता बनाने का काम शुरू कर दिया.

लोगों को लगा कि कुछ ही दिन में दशरथ के सिर से पहाड़ी के बीच से रास्ता बनाने का भूत उतर जायेगा. समय बीतता गया. धीरे-धीरे दिन महीनों में बदलने लगे. दशरथ अब पूरा समय केवल रास्ता बनाने में लगा रहा था इसलिए उसी स्थान पर उसने अपने लिए एक कुटिया भी बना लिया.

जब औजारों की कमी होने लगी तो उसने अपनी सारी भेड़े बेच दी और उन पैसों से अपने लिए नए औजार खरीद लिए. अब दशरथ के लिए दिन और रात में कोई फर्क नहीं रह गया था. वह काम में इतना लीन हो जाता की खाने की भी सुध नहीं लेता.

इस बीच अचानक फाल्गुनी की तबीयत बिगड़ गयी और चिकित्सा के अभाव और जल्दी से शहर के अस्पताल में जाने का कोई रास्ता न होने की वजह से फाल्गुनी की मृत्यु हो गयी.

इस घटना ने दशरथ के फौलादी इरादों को एक दिशा दे दिया. अब उसे अपने निर्णय का महत्व पहले से और अधिक सही जान पड़ा. जो कोई संका मन में रास्ते को बनाने के विषय में थी वह अब साफ़ हो चुका था. अब वह पहले की अपेच्छा और अधिक तेजी से काम करने लगा. धूप-बारिश, अन्न-जल जैसे कोई भी दशरथ के इरादों को तोड़ नहीं पाया.

देखते ही देखते 10 वर्ष बीत गए. अब लोगों को दशरथ के अब तक के कार्य से अंतर दिखने लगा. जहाँ से रास्ते का काम आरंभ हुआ उन जगहों पर से चढ़ाई थोड़ी आसान हो गयी थी. रास्ता समतल होने की वजह से अब पहले की तुलना में चलने के लिए सरल लगने लगा.

अब लोगों का नजरिया दशरथ के प्रति बदलने लगा था. लोग उन्हें सम्मान की दृष्टी से देखने लगे. गाँव वाले उन्हें अब “पहाड़ मानव” कहकर पुकारने लगे जो दशरथ के लिए किसी भी बड़े सम्मान से कम नहीं था. अब लोग भी धीरे-धीरे प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रुप से दशरथ के काम में सहयोग देने लगे.

समय तो जैसे पंख लगाकर उड़ रहा था. देखते ही देखते बीस वर्ष बीत गए. 1982 को यानि की लगभग 22 साल के अथक परिश्रम का फल दशरथ को मिल गया. रास्ता अब पूर्ण तैयार हो गया था.

दशरथ ने गहलोर की घाटियों के मध्य 110 मीटर लम्बा, 7.6 मीटर ऊँचा और 9.1 मीटर चौड़ा रास्ता बना दिया जिससे अतरी से लेकर वजीरगंज तक की दूरी पहले जहाँ 55 किलो मीटर थी वह अब घटकर मात्र 15 किलो मीटर रह गयी.

“पहाड़ मानव” यानी की दशरथ मांझी अब हमारे बीच नहीं रहे. उनकी मृत्यु 2007 में हुई. परन्तु असल जिंदगी में दशरथ किसी भी हीरो से कम नहीं हैं. उनका जीवन हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनकर हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा.

दोस्तों किसी ने सच ही कहा है, “बुलंद हौसलों के आगे पहाड़ भी छोटा लगने लगता है.”

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मंगलवार, 14 जुलाई 2015

आज़ादी



दोस्तों, जब कभी हम T.V. पर समाचार सुनते हैं अथवा अखबार पढ़ते हैं तब बिना देर किये देश में चल रहे क्रिया-कलापों की बिना सही जानकारी के टीका-टिप्पड़ियाँ करने लगते हैं, परन्तु इस बीच हम ये भूल जाते हैं की हम भी इसी देश के वासी हैं और देश की वर्तमान परिस्थिति के लिए हम भी उतने ही जिम्मेदार हैं.

जरूर पढ़े - 'अबला बनी सबला'

दूसरे मुल्कों की हजामत हम बाद में करेंगे. परन्तु पहले अपने मुल्क की दशा पर थोड़ा विचार करते है क्योंकि जिसके खुद के घर शीशे के बने होते है उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए.

आज़ादी, सोचो तो बहुत कुछ, न सोचो तो कुछ भी नहीं. आज भारत को आज़ादी मिले छह दसक से भी अधिक समय गुजर चुका है पर लगता है समय गुजरने के साथ-साथ आज़ादी का अर्थ भी जैसे बदल सा गया है.  

आज ये शब्द हर किसी के लिए एक पहेली मात्र बन कर रह गयी है. आज के इस तेज भाग-दौड़ भरी जीवनसैली में एक ओर जहाँ हम हमारे अपनों के लिए समय दे पाने में असमर्थता महसूस कर रहे हैं, वहाँ दूसरों द्वारा प्रकट किये विचारों के बारे में सोचने का वक्त आखिर है कहाँ.

अगर हम भारत के संविधान की बात करें तो उसमें आज़ादी के विषय में काफी कुछ वर्णित है. एक ओर हम आज़ादी की वर्षगाँठ मानते हैं वहीं दूसरी ओर समाज में आये दिन लूट-पाट, हत्या, दंगे, बलात्कार जैसी घटनायें बढ़ती जा रही है. शायद यह भी एक आज़ादी ही है जो हमने और हमारे समाज ने उन लोगों को दे रखा है जो ‘जिसकी लाठी उसी की भैंस’ की विचारधारा पर जीते चले आ रहें हैं. प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से हम सब उनका साथ देते आ रहे हैं.


हम आज भी दोहरी नीति पर जी रहे हैं. एक ओर हम महिला सशक्तिकरण की बात करतें हैं  वहीं दूसरी ओर उनके विचारों को घर, कार्यालय, जाति,समाज इत्यादी में पुरुषों के विचारों के मध्य पिस दिया जाता है.

जरूर पढ़ें - 'उचित उपयोग' - The Best Use

आज़ादी ! आखिर ये है किस चिड़िया का नाम ?

क्या केवल शारीरिक तौर पर दी गयी छूट ही आज़ादी है ?                       

क्या मानसिक आज़ादी इसके दायरे में नहीं आती है ?

अगर हमें अपने घर, समाज, देश की उन्नति सही मायने में करनी हो तो पहले अपने आस-पास जिन महिलाओं से आप घिरे हुए हैं उनका और उनके विचारों का सम्मान करें और उन्हें बराबर का हख दें.

एक बार हमें पुनः विचार करना पड़ेगा कि आज़ादी का सही मायने में आखिर अर्थ क्या है ?


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बुधवार, 8 जुलाई 2015

नसीहत



दोस्तों एक शाम जब मैं अपने कार्यालय से वापस आ रहा था तब बस में मेरे सामने की सीट पर बैठे दो व्यक्ति आपस में किसी विषय को लेकर चर्चा कर रहे थे.

पहले तो चर्चा शांतिपूर्ण रूप से शुरु हुआ बाद में और बाद में थोड़ा गंभीर होता सा महसूस हुआ जो काफी समय तक चलता रहा. उनके आगे की सीट पर एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठा हुआ था जो काफी समय से खमोशी से इन दोनों की बातें सुन रहा था. बुजुर्ग व्यक्ति को इनकी बातें थोड़ी मूर्खतापूर्ण लगी और उन्होंने अपने तजुर्बे के मुताबिक उनको नसीहत देने की सोच बीच में कहा, “अरे इतने छोटे से विषय में तुम दोनों इतनी चर्चा कर रहे हो वो भी मूर्खता से ......”

अभी बुजुर्ग की बात समाप्त भी नहीं हुई की उन दोनों ने बुजुर्ग को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया और उन्हें नसीहत न देने की बात कह डाली. वह बुजुर्ग चुप हो गया परन्तु मंद मुस्कान उनके चेहरे पर दिख रहा था. शायद उनके अपने तजुर्बे ने वह मुस्कान उनके चेहरे पर ला दिया था.

परन्तु इस घटना से मुझे पंचतंत्र की एक कहानी याद आ गयी. कहानी में गौरैया अपने घोंसले के नीचे ठण्ड से ठिठुरते एक बन्दर की मनुष्य से तुलना कर मनुष्य के तरह घर बनाकर उसमें रहने की नसीहत दे डाली. बन्दर को बुरा लगा कि एक छोटी सी चिड़िया उसे नसीहत देने चली परन्तु कुछ नहीं कहा. गौरैया लगातार अपनी बात दोहराने लगी, जिससे बन्दर को गुस्सा आ गया और वह पेड़ पर चढ़कर गौरैया के घोंसले को नष्ट कर दिया.

दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है, “बिन माँगे किसी को नसीहत नहीं देनी चाहिए”.

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धन्यवाद् ... ... !!!