विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

सोमवार, 28 दिसंबर 2015

आयुर्वेद एक चमत्कार Magic of Ayurveda


आयुर्वेद = आयुः + वेद

अर्थात्

आयु और वेद, इन दो शब्दों के योग से आयुर्वेद शब्द बना है जिसका अर्थ है जीवन विज्ञान।

आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धतियों में से एक है।

आयुर्वेद का तत्व ज्ञान पंचमहाभूतों यानि आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी इन पाँचों के सिद्धान्त पर आधारित है।

आयुर्वेद में रोगों की पहचान एवं जानकारी विभिन्न सवालों एवं आठ परीक्षणों जैसे नाड़ी, मल, मूत्र, जीभ, ध्वनि, स्पर्श, आकृति एवं नेत्र द्वारा की जाती है।

आयुर्वेद की खास विशेषता यह है की यह रोग को धीरे-धीरे मगर अद्भुत ढंग से पूरी तरह से जड़ समेत समाप्त कर देता है।

आज सारा विश्व आयुर्वेद के लिए भारत की ओर नजर गड़ाये हुए हैं। अन्य देश भी भारत से जड़ीबूटियों का ज्ञान लेकर अपने देश में इसका प्रयोग जोरों से करने लगे हैं।

घर पर आसानी से उपलब्ध पदार्थों से भी कहीं सारे रोगों का आयुर्वेदिक इलाज़ संभव है।
1) अजवायन 2 ग्राम और नमक 1/2 ग्राम चबाकर खाने से पेट दर्द व गैस ठीक हो जाता है।
2) तुलसी के पत्तों की चाय सर्दी से होने वाले सिर दर्द को दूर करता है।
3) करेला का सेवन मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी है।
4) तुलसी के पत्ते पीसकर लगाने से दाद दूर हो जाता है।
5) कच्चे प्याज को काटकर ततैया के डंक मारे स्थान पर अच्छी तरह से रगड़ने से शीघ्र आराम मिलेगा।
6) जले हुए स्थान पर गाय का गोबर लगाने से फ़ौरन आराम मिलता है और निशान भी नहीं रहता है। कच्चा आलू पीसकर लगाने से भी आराम मिलता है।
7) ताजा नींबू का रस निकालकर उसकी कुछ बूँदे नाक में डालने पर रक्त आना बंद हो जायेगा।
8) 10-15 तुलसी के पत्ते और 8-10 काली मिर्च की चाय बनाकर पीने से खांसी, जुकाम व बुखार ठीक हो जाता है।
9) अरण्ड के पत्ते और मेहंदी पीसकर लेप लगाने से घुटनों का दर्द दूर हो जाता है।
10) लौंग 5 ग्राम, कपूर 3 ग्राम दोनों बारीक़ पीसकर दांतों पर मलने से दांतों के सब रोग दूर हो जाते हैं। प्याज के पानी को दांतों पर मलने से बहुत से रोग ठीक हो जाते हैं और कीड़ा भी नहीं लगता है।
11) रात को सोते समय मुह के अंदर असली घी लगाकर सोने से हर प्रकार के छाले ठीक हो जाते हैं।
12) चेहरे पर नींबू का छिलका अंदर की ओर से मले। 5 मिनट के बाद थोड़ा गीला बेसन चेहरे पर मले। 15 मिनट के बाद स्वच्छ पानी से चेहरे को धो ले मुँहासे दूर हो जायेंगे। Note: कच्चे मुँहासे को कभी नोचना नहीं चाहिए वरना चेहरे पर स्थाई धाग रह जायेगा।
13) तरबूज का सेवन उच्च रक्तचाप के मरीजों के लिए लाभकारी है। लीची का उपयोग भी लाभदायक है।
14) गाजर के रस में शहद मिलाकर पीने से लो ब्लड प्रेशर में लाभकारी होता है।
15) प्याज का रस सिर पर लगाने से जुएं मर जाती है।
16) भृगराज तेल रोजाना लगातार लगाया जाये तो बाल काले हो जाते हैं।
17) 5 ग्राम सूखे आंवले का चूर्ण पानी के साथ लेने पर खूब भूख लगती है।
18) एक पाव हलके गुनगुने पानी में 15 ग्राम शहद मिलाकर पीने से मोटापा दूर हो जाता है।
19) प्याज को गर्म राख में भूनकर उसका रस निचोड़कर कान में डाले फौरन आराम मिलेगा।
20) अनार के पत्ते पीसकर लगाने से मोच ठीक हो जाता है।

दोस्तों आयुर्वेद के फायदे लिखता जाऊँ तो शायद मेरा ब्लॉग ही छोटा पड़ जाये।

वैसे आपको यह पोस्ट कैसा लगा जरूर बताइयेगा।

धन्यवाद ।

गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

वृद्धावस्था और इंटरनेट Oldage and Internet

साधारणतय वृद्धावस्था को किसी भी जीव के जीवन का अंतिम पढ़ाव भी कह सकते हैं। परंतु इसका ये कतई मतलब नहीं कि वृद्धावस्था को हम सारे जीव जीना ही छोड़ दे। यह जीवन की सच्चाई है जिसके लिए हर एक को तैयार रहने की जरुरत है। इस सच्चाई से कोई अपना मुँह नहीं मोड़ सकता है।

किसी भी देश के लिए वृद्धावस्था कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। परंतु वृद्धावस्था की अपनी कुछ समस्याएँ भी है। वृद्धावस्था में लोग थोड़े चिड़चिड़े और जिद्दी हो जाते हैं। इस पढ़ाव में उन्हें अपनों के साथ की बहुत जरूरत पड़ती है। वहीँ हमारे आज का सभ्य समाज वृद्ध लोगों को नजरअंदाज करने में तनिक भी कंजूसी नहीं दिखाता है और उनसे कन्नी काटने लगते हैं। दो पल उनसे बात करने और उनके साथ गुजारने में जैसे पाप मानते हो। वे भूल जाते हैं कि हर किसी को एक दिन इस अवस्था से गुजरना पड़ेगा।

जरूर पढ़ें - आयुर्वेद का चमत्कार - The Magic of Ayurveda

परंतु इसे आप ईश्वर का वरदान समझे या विज्ञान का कमाल जो इन बुजुर्ग लोगों के जीवन में खालीपन को कुछ हद तक भर रहा है।

इंटरनेट ने दुनियाभर में संचार प्रक्रिया में क्रांति ला दी है। शायद ही अब ऐसा कोई बन्दा हो जिसने इंटरनेट के बारे में सुन न रखा हो अथवा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इंटरनेट से लाभान्वित न होते हो।

इंटरनेट पर घर बैठे शॉपिंग, बैंकिंग, ऑनलाइन लर्निंग एंड टीचिंग इत्यादि जैसे काम कर सकते हैं। इसके अलावा अगर आपको खेलने का शौक हो तो कहीं सारे गेम्स भी आप टाइम पास के लिए खेल सकते हैं।

कहीं सारे देशों में वहाँ की सरकारी तंत्र वृद्ध व्यक्तियों को मोबाइल, लैपटॉप व टेबलेट बाँट रहे हैं ताकि उनका अकेलापन कुछ कम हो और अन्य लोगों से घर बैठे जुड़ सके। ऊरुग्वे की सरकार ने हाल ही में 30,000 टेबलेट बुजुर्गों को बाँटे और वहाँ के सेवा निर्वृत (रिटायर्ड) बुजुर्गों ने भी बड़े उत्साह से जमकर ट्रेनिंग क्लासों का लुत्फ़ उठाया।

अगर आधुनिक तकनीक की बात करें तो इसका सही इस्तेमाल लोगों को करीब लाने का एक आसान जरिया भी बनता जा रहा है। जहाँ एक ओर फेसबुक, व्हाट्सऐप पर दिन-प्रतिदिन लाखों-करोड़ों लोगों का एक प्रकार से मकड़जाल बुना जा रहा है वहीँ बुजुर्ग लोग अपने अकेलेपन और सुनसान दुनिया से बाहर निकलकर औरों के साथ कुछ और पल बिता सकते हैं।

लेकिन किस हद तक यह बुजुर्ग लोगों के लिये फायदेमंद साबित होगा ये उन बुजुर्ग लोगों की प्रतिक्रिया पर भी निर्भर करता है।

मेरा लोगों से निवेदन है कि आप अपने घरों पर बुजुर्गों की निंदा और अवहेलना न करें। इस शुभ कार्य की शुरुआत अपने घर से ही करनी चाहिए ताकि फिर किसी बुजुर्ग व्यक्ति को अनाथालय या वृद्धाश्रम की राह न पकड़ना पड़े। परंतु आपसे निवेदन है कि इस विचार का शुभारम्भ करने से पहले अपना मुँह जरूर मीठा कर ले।

धन्यवाद् ।

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रविवार, 20 दिसंबर 2015

पसंद बनाम प्रेम Like vs Love















दोस्तों हमारे जीवन में कही बार ऐसी परिस्थितियाँ आई होगी जब हम 'पसंद' और 'प्रेम' इन दो भिन्न शब्दों को समानार्थक शब्दों के रूप में इस्तेमाल कर दिए होंगे।

इन दो शब्दों में जो अंतर है उसे मैं एक छोटे परंतु सत्य कथा पर आधारित प्रसंग द्वारा आप लोगों से शेयर करने जा रहा हूँ।

महात्मा बुद्ध और उनके शिष्यगण प्रतिदिन भिक्षुक के रूप में द्वार-द्वार भिक्षा माँगने जाया करते थे और शाम के वक्त सभी शिष्य महात्मा बुद्ध को घेर कर बैठ जाते और ज्ञान की चर्चा करने लगते थे।

एक शिष्य अपने स्थान से खड़े होकर महात्मा बुद्ध को प्रणाम कर कहता है - प्रभु, मेरे मन में एक जिज्ञासा है जिसे केवल आप ही शाँत कर सकते हैं।

महात्मा बुद्ध - पहले तुम अपना स्थान ग्रहण करो और फिर बताओ कि ऐसी कौन सी जिज्ञासा है जो तुम्हारे मन को इतना विचलित कर दे रही है।

शिष्य - प्रभु, 'मैं तुम्हें पसंद करता हूँ' और 'मैं तुमसे प्रेम करता हूँ', इन दो वाक्यों में अंतर क्या है?

महात्मा बुद्ध (मुस्कुराते हुए) - जब तुम्हें कोई फूल पसंद आएगा तब तुम उसे झट से थोड़ लोगे परंतु जब तुम्हें उस फूल से प्रेम हो जायेगा तब तुम उसके पौधे पर प्रतिदिन पानी डालोगे।

दोस्तों, प्रेम समर्पण माँगता है। जिस व्यक्ति को यह बात समझ में आ जाये वह जीवन का अर्थ भी समझ जायेगा।

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धन्यवाद ।

बुधवार, 16 दिसंबर 2015

बालक गोपाल की ईमानदारी

दोस्तों, हम सभी के बचपन से जुड़ी ऐसे कहीं प्रसंग हैं जो समय-समय पर हमें हँसाते और रुलाते हैं। परंतु बचपन की ये छोटी-छोटी घटनाएँ रोज हमें कुछ न कुछ सीख दे जाती है। ये सारे अनुभव हमारे चरित्र निर्माण में अहम योगदान देती है।

बालक गोपाल अपनी कक्षा में बैठे हुए थे। शिक्षक कक्षा में प्रवेश करते हैं और पढ़ाने के पश्चात बच्चों को गृहकार्य (होमवर्क) स्वरुप कुछ सवालों को हल कर आने को कहते हैं।
बालक गोपाल को सारे सवालों के जवाब आते थे सिवाय एक के जिसे उसने बाद में अपने एक मित्र की सहायता से हल कर लिया।
अगले दिन कक्षा में शिक्षक ने घोषणा की कि जिसके सारे जवाब सही होंगे उसे पुरस्कार दिया जायेगा।

सभी छात्रों की कॉपियाँ एक-एक कर निरीक्षण से गुजरने के बाद पाया गया कि केवल बालक गोपाल ने ही सभी सवालों के सही जवाब लिखे हैं।

शिक्षक प्रसंतापूर्वक बालक गोपाल को आगे आकर अपना पुरस्कार लेने को कहते हैं।परंतु ये क्या खुश होने की बजाय बालक गोपाल फूट-फूट कर रोने लगे। शिक्षक गोपाल के समीप जाकर उसे शाँत रहने को कहते हैं। तत्पश्चात गोपाल से रोने का कारण पूछते हैं।

गोपाल - मास्टर जी, मैं अपने किये के लिए शर्मिंदा हूँ । आप सोच रहें हैं कि मैंने सारे सवालों के जवाब सही लिखे हैं परंतु आपको पता नहीं कि इसमें से एक सवाल को मैंने अपने एक मित्र की मदद से हल किया है। अब आप ही बताइये कि मैं पुरस्कार का हक़दार हूँ या फिर दंड का पात्र।

पूरी परिस्थिति का भान होने के पश्चात शिक्षक महोदय ने बालक गोपाल की पीठ थपथपाई और उसे पुरस्कृत करते हुए कहा - गोपाल इस पुरस्कार के केवल तुम ही हक़दार हो। यह पुरस्कार तुम्हें तुम्हारी ईमानदारी के लिए दिया जाता है।

धन्य है वह बालक और धन्य है वो माता-पिता जिन्होंने ऐसी संतान को जन्मा है।

क्या आपको इस बालक का पूरा नाम पता है?

यह बालक गोपाल आगे चलकर भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले वीर सपूत श्री गोपाल कृष्ण गोखले बनकर उभरे। वे एक सच्चे देशभक्त थे। उनके बचपन की यह घटना हम सबके लिए प्रेरणादायक है।

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शनिवार, 12 दिसंबर 2015

कछुआ और खरगोश रिटर्न्स

खरगोश जहाँ कहीं भी जाता तो अन्य जानवर उसे इस बात पर चिड़ाते कि उसका एक पूर्वज एक कछुआ से दौड़ में हार गया। उसे काफी शर्मिन्दगी झेलनी पड़ती।

एक दिन खरगोश एक कछुआ के पास जाकर उसे दौड़ के लिए ललकारता है और कहता है कि वह अपने एक पूर्वज की गलती को सुधारना चाहता है।

कछुआ को मजबूरन दौड़ के लिए मानना पड़ता है। परंतु कछुआ ये भी जानता है कि दौड़ में उसकी हार पक्की है।

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कछुआ का एक भाई भी है जो बिल्कुल उसी का हमशक्ल है। वह उसके पास जाकर सारी बात बताता है और उससे मदद की गुहार लगाता है।

उसके भाई के दिमाग में एक युक्ति आती है जिसे वह उसे समझा देता है। युक्ति यह है कि कछुआ दौड़ शुरू करेगा और अंतिम रेखा के नजदीक उसका जुड़वाँ हमशक्ल भाई छुपा रहेगा और जैसे ही दौड़ शुरू होगा, समय देखकर हमशक्ल भाई अंतिम रेखा को पार कर देगा।

दौड़ की बात पूरे जंगल में फ़ैल गयी। इस रोमांचक दौड़ को देखने के लिए अगले दिन सभी जानवर दौड़ शुरू होने वाली जगह पर इकठ्ठा हो जाते हैं। दौड़ शुरू होता है।

कछुआ पहले की भाँति धीरे-धीरे से कदम बढ़ाकर चलने लगता है। वहीँ खरगोश अपनी पूरी ताकत के साथ तेजी से दौड़ने लगता है। इस बार खरगोश किसी भी हरे घास को अनदेखा कर केवल दौड़ में ध्यान केंद्रित करता है। उसे तो जैसे किसी भी हालत में ये दौड़ जीतनी ही है।

परंतु ये क्या, जैसे ही खरगोश अंतिम रेखा के नजदीक पहुँचने लगता है वहाँ रेखा के बिल्कुल नजदीक कछुआ को पाता है जो अंतिम रेखा की ओर बढ़ा जा रहा है। खरगोश की स्थिति तो जैसे काटो तो खून नहीं। खरगोश पूरा जोर लगा देता है परंतु तब तक कछुआ दौड़ की अंतिम रेखा को पार कर चुका होता है।

इस तरह कछुआ दोबारा जीत जाता है।

सीख:
1) जहाँ बल और मेहनत काम न दे वहाँ बुद्धि की शरण लो।
2) अपने किसी प्रियजन की गलती से क्रोधित होकर जल्दबाजी में कोई निर्णय न ले। हर निर्णय समय की आवश्यकता को ध्यान में रखकर शाँत मन से ले।


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धन्यवाद ।

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

क्षमादान परमधर्म

अगर आपको भारतवर्ष की संस्कृति और विचारों को जानना है तो आपको पुराणों को जानना होगा। पुराण भारत की आत्मा है। यह एक सागर सामान है जिसमेँ निहित ज्ञान का भंडार सदियों से हमें जीने की राह दिखलाती आ रही है।

आज मैं आपसे लिंगपुराण में निहित एक छोटी परंतु प्रेरणादायक प्रसंग का वर्णन करने जा रहा हूँ जो आज के परिवेश और माहौल की दृष्टि से सारे संसार के लिए सबक का विषय है।

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महाराज त्रयंक अपने राज्य और प्रजा की खुशहाली के लिए विशाल यज्ञ करने का निर्णय लिया जिसमें देश के कोने-कोने से सभी विद्वानों और ऋषियों को आमंत्रण भेजा गया। आमंत्रण के दौरान किसी विषय को लेकर महर्षि वसिष्ट के पुत्र शक्ति और महर्षि विश्वामित्र में विवाद उत्पन्न हो जाता है। क्रोध में आकर विश्वामित्र शक्ति को शाप दे देते हैं जिसके कारण उसी क्षण शक्ति समेत उसके अन्य निन्यानबे भाइयों की मृत्यु हो जाती है।

हिंदुओं के लिए वंश का नाश काफी मायने रखता है क्योंकि हिन्दू दर्शन के मुताबिक वंश के नाश से पितरों का भला नहीं होता और उनकी आत्माओं को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है।

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महर्षि वसिष्ट का तो जैसे सब कुछ देखते ही देखते समाप्त हो गया। चारों तरफ शव ही शव जैसे कोई युद्ध का मैदान हो जिसपर गिरकर महर्षि वसिष्ट की धर्मपत्नी एवं पुत्रवधु जोर-जोर से विलाप कर रहे थे। कुछ पलों के लिए महर्षि वसिष्ट ने भी अपनी धर्मपत्नी संग देह त्यागने पर विचार करने लगे। परिस्थितियों की गंभीरता को देखकर महर्षि वसिष्ट की पुत्रवधु अपने सास-ससुर को ढाँढस बँधाते हुए कहती है कि उन्हें निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि उनके वंश का बीज यानि उनका पौत्र अभी उसके गर्भ में सुरक्षित पल रहा है।

परंतु इन सब शांतनाओं के बावजूद महर्षि वसिष्ट जब कभी अपनी धर्मपत्नी और पुत्रवधु के चेहरे पर दुःख की लकीरों को देखते हैं तो अनायास उनका भी मन उद्विग्न हो जाता है।

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इतना कुछ हो जाने के पश्चात भी महर्षि वसिष्ट को विश्वामित्र पर क्रोध नहीं आया। महर्षि वसिष्ट धैर्य एवं क्षमा की मूर्ति थे। उनका मानना था कि प्रत्येक जीव को इसी संसार में उसके कर्मों के अनुसार फल भोगना ही पड़ता है। कोई किसी को मार नहीं सकता। जीव केवल अपने कर्मों के मुताबिक दंड स्वरुप मृत्यु को प्राप्त होता है। अतः औरों पर क्रोध करना निरर्थक है।

दोस्तों, ऐसी विषम परिस्थितियों में भी अपने विरोधियों के प्रति सहानुभूति एवं क्षमा का भाव रखना महानता का प्रतीक है।

क्षमादान शांति की राह में पहला कदम है।

हम भारतवासी धन्य है जो हमारी सांस्कृतिक विरासत और इतिहास ऐसे महापुरुषों की जीवनियों से भरी पड़ी है जो समय आने पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं।

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सोमवार, 7 दिसंबर 2015

भारत-रत्न

भारत-रत्न भारतवर्ष का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है जिसे प्राप्त करना काफी मुश्किल है। परंतु पिछले कुछ वर्षों का मेरा अनुभव कहता है कि भारत-रत्न की प्राप्ति जितनी मुश्किल जान पड़ती है वास्तव में उतनी है नहीं बस जरुरत है तो सत्ता पार्टी के आशीर्वाद की। उनका बस चले तो भारत-रत्न ही क्या विश्व का कोई भी सम्मान प्राप्त कर सकते हैं।

व्यक्तिगत टीप्पड़ी करना मेरे पोस्ट का उद्देश्य कभी नहीं रहा है। परंतु मैं आज आपसे अपने पोस्ट के द्वारा एक ऐसी सख्सियत से रूबरू कराना चाहूँगा जिसके बारे में कुछ भी कहना सूरज को रोशनी दिखाने के जैसा होगा। जी हाँ, यह कोई और नहीं बल्कि हम सबके चहेते राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम हैं। उनकी बायोग्राफी पढ़ने पर आपको खुद ही उनकी महानता और देशभक्ति का पता चल जायेगा। इसलिए ये सारी बातें बताने की बजाय मैं आपको उनसे जुड़ी कुछ और बातें बताना चाहूँगा जिससे आपको ये समझने में आसानी होगी कि वाकई वे भारत-रत्न के काबिल है भी या नहीं।

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चलिए आज मैं आपको डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा कमाए कुल संपत्ति का व्योरा दे देता हूँ:-

1) 6 पैंट, जिनमें से 2 पैंट DRDO का यूनिफार्म है।
2) 4 शर्ट, जिनमें से 2 DRDO का यूनिफार्म है।
3) 3 सूट, जिनमें 1 वेस्टर्न और 2 भारतीय हैं।
4) 2500 किताबें।
5) 1 ट्वीटर अकाउंट।
6) 1 वेबसाइट।
7) 1 ईमेल अकाउंट।
8) 1 फ्लैट (जिसे उन्होंने शोधकार्य के लिए दान में दे दी)।
9) 16 डॉक्टरेट की डिग्रियाँ ।
10) 1 पद्मश्री।
10) 1 पद्मभूषण और
11) 1 भारत रत्न।

इसके अलावा रिटायरमेंट के पश्चात् पिछले 8 वर्षों में उन्हें जो भी पेंशन मिला उसे उन्होंने अपने गाँव की पंचायत को दान दे दिया।

इसके अलावा व्यक्तिगत संम्पत्ति के नाम पर उनके पास कुछ भी नहीं है। न ही कोई जमीन-जायदाद, शेयर, एयर कंडीशन, निजी कार और न ही कुछ बैंक बैलेंस।

अब आप ही बताइये कि एक ऐसा व्यक्ति जिसे न पैसे का कोई लालच हो और न ही कोई निजी स्वार्थ, क्या ऐसा व्यक्ति भारतवर्ष जैसे विशाल राष्ट्र की सेवा कर सकता है? क्या वह भारत की धर्मनिरपेक्षता का सम्मान करेगा? क्या वह भारत के गरीब वर्ग को उबार पायेगा?

और सबसे बड़ा सवाल क्या वह भारत-रत्न पाने का हकदार है?

दोस्तों, हमें आप लोगों के कमेंट्स का इंतजार है।


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