एक दिन शहंशाह अकबर वेश बदलकर अकेले घोड़े पर सवार होकर किसानों का हाल-चाल जानने राज्य में निकल पड़े।
कुछ देर की यात्रा करने के पश्चात रास्ते में एक ओर उन्हें लहलहाते गन्ने का खेत नजर आया और नजदीक कुछ छायेदार वृक्ष देखकर वहाँ थोड़ा विश्राम करने का विचार कर घोड़े से नीचे उतर गये।
सामने गन्ने के खेत में काम कर रहे किसान को देखकर शहंशाह अकबर उसके नजदीक गये।
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अकबर (किसान से) - राम-राम भैया।
किसान - राम-राम, देखने में परदेशी लगते हो। कहो क्या बात है?
अकबर - दूर से यात्रा करके आ रहा हूँ। हमें बहुत जोरों की प्यास लगी है। क्या हमें थोड़ा पानी मिलेगा?
किसान - पानी की क्या बात है, मैं आपको गन्ने का रस पिलाता हूँ।
किसान अपने खेत से एक गन्ने को काटकर उसका रस निकालकर लोटे में भरकर अकबर को पीने को दिया। एक गन्ने से लोटाभर रस निकला देख अकबर को बड़ा आश्चर्य हुआ। गन्ने का रस भी बहुत मीठा था।
अकबर - गन्ने का रस बहुत मीठा है।
किसान - ये सब हमारे शहंशाह के मिजाज की कृपा है।
अकबर - तुम राज्य को कितना कर (टैक्स) देते हो?
किसान - पाँच रुपये सालाना।
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शहंशाह अकबर गन्ने के रस के लिए किसान का धन्यवाद कर वापस महल की ओर लौट गये। राह में विचार करते हुए गये कि इस किसान के खेत में काफी अच्छी पैदावार हो रही है और गन्ने में मिठास भी बहुत है इसलिए किसान को लाभ भी बहुत होता होगा। अगले साल से इनका कर (टैक्स) बढ़ा देना उचित होगा।
कुछ महीनों बाद शहंशाह अकबर दोबारा उसी किसान के खेत पर गये और गन्ने का रस पिलाने का निवेदन किया।
किसान एक गन्ने को काटकर रस निकाला, परंतु ये क्या पूरे गन्ने को निचोड़ने के बाद भी लोटा आधा भी नहीं भरा। यह देख अकबर को आश्चर्य हुआ।
अकबर (किसान से) - अरे भैया, इस बार गन्ने से तो थोड़ा ही रस निकला है।
किसान (दुःखी मन से) - शायद हमारे सम्राट का मिजाज ठीक नहीं है।
अकबर ने रस चखा तो पाया कि वह पहले की भाँति मीठा भी नहीं है। अब उन्हें किसान द्वारा कही बातों का अर्थ समझ आया। उन्हें यह जानकार आश्चर्य हुआ कि कैसे एक जीव की सोच का असर अन्य जीवों पर पड़ता है। उन्हें अपनी भूल का एहसास हो गया और कर (टैक्स) बढ़ाने का विचार त्याग दिया।
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अकबर - क्या तुम्हें पता है कि हम कौन हैं?
किसान - जी नहीं।
अकबर - हम शहंशाह अकबर हैं।
किसान (झुककर) - हुजूर मुझसे कोई भूल हो गयी हो तो क्षमा कर दीजिये।
अकबर - तुमसे कोई भूल नहीं हुयी है। हम तो तुम्हारे शुक्रगुजार हैं जो जाने-अनजाने जीवन का एक अद्भुत पाठ सीखने का मौका मिला। क्या हमें एक लोटा गन्ने का रस और मिलेगा?
किसान जल्दी से एक गन्ना काटकर उसे निचोड़ा और अद्भुत यह कि एक ही गन्ने से लोटाभर गन्ने का रस निकल आया और शहंशाह अकबर को उसका स्वाद अमृत सामान मीठा लगा।
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