विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

रविवार, 30 अक्तूबर 2016

दीपावली - क्यों मानते हैं ?


भारत को त्योहारों का देश कहना गलत न होगा। भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है।  दिपावली हर साल देश-विदेश में उल्लास के साथ मनाया जाता है। दीपावली दशहरा के 20 दिन बाद अक्टूबर या नवंबर के महीने में मनाया जाता है।

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दीपावली संस्कृत के दो शब्दों, दीप + आवली को मिलाकर बना है जिसका अर्थ है दीपक + श्रृंखला अर्थात् दीपकों की श्रृंखला। दीपावली के रोज हम दीपकों को एक श्रृंखलाबद्ध तरीके से सजाते है जो देखने में अनोखी छटा बिखेरती है।

दीपावली के दिन माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दीपावली का पर्व विशेष रूप से मां लक्ष्मी के पूजन का पर्व होता है। कार्तिक माह की अमावस्या को ही समुद्र मंथन से लक्ष्मी देवी प्रकट हुईं थी। इन्हें धन, वैभव, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है। अत: इस दिन मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं ताकि अमावस्या की रात के अंधकार में दीपों से वातावरण रोशन हो जाए।

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रामायण महाकाव्य के मुताबिक दीपावली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। ऐसा मानना है कि इस दिन पुरुषोत्तम राम अपनी भार्या सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ रावण का वध कर पूरे 14 वर्ष के बनवास के पश्चात अपने राज्य अयोध्या लौट आने की खुशी में जनता ने सारे मार्गों को मिट्टी के दीपकों से रोशन कर दिया। इस तरह से दीपावली की शुरुआत हुई।

स्कन्दपुराण के अनुसार दीपक सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है। जिस प्रकार सूर्य के उगने से सारा अंधियारा दूर हो जाता है उसी प्रकार पाप पर पुण्य की जीत के रूप में दीपावली मनाया जाता है।

कुछ पुराणों के कथानुसार, भगवान कृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरकासुर नामक असुर का वध कर 16,100 कन्याओं को उस असुर के कैद से मुक्त किया था जिन्हें नरकासुर ने बंधक बनाया था। इसके पश्चात अलग-अलग रूप धारण कर उन कन्याओं से विधि-विधान से एक ही मुहूर्त में विवाह रचाया। जिसका कोई नहीं उसका उपरवाला होता है, इस प्रकार से इस दिन से दीपदान और पूजा का विधान प्रारम्भ हुआ। इसे हम छोटी दीपावली भी कहते हैं।

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भारत में यह त्यौहार काफी हर्षो-उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन सभी अपने मन-मुटाव को भुलाकर एक दूसरे को मिठाइयाँ बाँटते हैं। क्या बूढ़ा, क्या बच्चे और क्या जवान सभी दीपक की रोशनी में रंग जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन अपने घर, दुकान, और कार्यालय आदि में साफ-सफाई रखने से उस स्थान पर लक्ष्मी का प्रवेश होता है। उस दिन घरों को दियों से सजाना और पटाखे फोड़ने का भी रिवाज है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन नई चीजों को खरीदने से घर में लक्ष्मी माता आती है। इस दिन सभी लोग खास तौर से बच्चे उपहार, पटाखे, मिठाईयां और नये कपड़े बाजार से खरीदते हैं।

दीपावली 5 दिनों का एक लंबा उत्सव है जिसको लोग पूरे आनंद और उत्साह के साथ मनाते है। दीपावली के पहले दिन को धनतेरस, दूसरे को छोटी दीपावली, तीसरे को दीपावली या लक्ष्मी पूजा, चौथे को गोवर्धन पूजा, तथा पाँचवे को भैया दूज कहते है। दीपावली के इन पाँचों दिनों की अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ है।

संयुक्त राष्ट्र ने औपचारिक तौर पर सारे विश्व को दीपावली की शुभकामनायें दी है।


बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

आदत की कमाई Earnings of Habit

आदत की कमाई
बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक गरीब किसान रहता था। उसका नाम था सरबजीत कल्याण। वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एक छोटी सी झोपडी में रहता था। वह काफी परिश्रमी था। जीवन के प्रति सदा आशावान, स्वस्थ एवं उत्साही व्यक्तित्व था। लोगों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करता था। यही बातें वह अपने परिवार के अन्य सदस्यों को भी सिखाता था।

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अपने इन्हीं खूबियों की बदौलत आगे चलकर सरबजीत एक बड़ा एवं प्रसिद्ध व्यापारी बन गया। एक देश से दूसरे देश की यात्रा बढ़ने लगी और समय के साथ-साथ उसका व्यापार भी।

परंतु नसीब से तो जैसे सरबजीत की खुशी देखी नहीं गयी। एक दिन उसके व्यापारिक जहाज पर समुंद्री डाकुओं ने हमला कर दिया जिससे उस जहाज में भीषण आग लग गयी जिससे सारा माल समुन्दर में डूब गया। एक पल में वह खास इंसान से आम इंसान बन गया।
हादसे की खबर सरबजीत की पत्नी को पत्र द्वारा पता चला। पत्र पढ़ते ही वह जैसे पल भर के लिये जड़ सी हो गयी। अचानक जैसे कोई बुरा सपना देखकर वह जागी हो। वह दौड़ती हुई अपने पति के कमरे में गई जहाँ वह अपने व्यापार से जुड़े कुछ नवीनतम विचारों पर अन्य सहयोगी व्यापारियों से विमर्श कर रहे थे।

पत्नी (हाँफते हुए) - अजी सुनते हो, हम बर्बाद हो गए। लक्ष्मी हमसे रुष्ट हो गई है।

सरबजीत (शाँत मुद्रा में) - अरे भाग्यवान, पहले क्या हुआ ये तो बताईए?

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पत्नी - हमारे जहाज पर डाकुओं ने हमला कर आग लगा दिया जिससे वह नष्ट हो गया और सारा माल समुन्दर में डूब गया और इसके साथ आपकी सारी मेहनत भी डूब गई। इतने वर्षो की कमाई पलभर में खाक हो गई। अब हमारी कोई औकात नहीं रही।

वह रोये जा रही थी। सरबजीत अपनी पत्नी के समीप गए। उसे ढाढस बंधाया।

सरबजीत (गंभीरता से) - क्या इस संकट ने हम दोनों को भी एक दूसरे से छीन लिया? क्या इसने मुझे आपसे दूर कर दिया?

पत्नी (एक टक अपने पति की ओर देखकर) - ये कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो आप? मैं तो आपके साथ हूँ और सदैव यूँही आपके साथ रहूँगी।

आखिर क्यों - कछुआ और खरगोश में दोबारा दौड़ हुई?

सरबजीत - क्या हमारी आदतें अब बदल गई है? क्या वो हमसे जुदा हो गए हैं?

पत्नी (आश्चर्य से) - क्या खूब कही आपने। आदतें भी क्या कभी बदलती है? इसे बदलना इतना आसान थोड़े ही है।

सरबजीत (मुस्कुराते हुए) - तब तो हमें लेसमात्र भी चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि हमने केवल वही खोया है जिसे हमने अपने आदतों के बलबूते पर कमाया था। जीवन की सर्वश्रेष्ठ कलाएँ जैसे आशावादिता, उत्साह, स्वास्थ्य, स्वाध्याय, परिश्रम और प्रेम अब भी हमारे पास ही है। इसके बलबूते हम दोबारा अपने व्यापार को पहले से और अधिक प्रगति की ओर ले जायेंगे। बस जरुरत है तो थोड़े धैर्य की।
दोस्तों, कुछ ही वर्षों के अथक परिश्रम से व्यापारी सरबजीत कल्याण ने दोबारा अपना व्यापारिक साम्राज्य स्थापित कर लिया।
सरबजीत व्यापारी से उनकी सफलता का राज पूछे जाने पर उन्होंने कहा - मैं सदा आशावान रहता हूँ। मुश्किलों से नहीं घबराता हूँ। उसका सामना हँसते हुए करता हूँ। चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, धैर्य को धारण करता हूँ। अगर विफलताओं से हमारे मुख पर निराशा छा जायेगी तब हम सच में हार चुके होंगे।

दोस्तों, आदतें बदलना थोड़ा मुश्किल जरूर है परंतु असंभव नहीं। थोड़े से प्रयत्न से हम अपने अंदर अच्छी आदतें विकसित कर सकते हैं। धीरे-धीरे अपने मन में नाउम्मीदी, दुर्बलता, चिंता एवं निराशा के स्थान पर धैर्य, आशावादिता, हिम्मत एवं सफलता के भावों को जगाना होगा।

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रविवार, 2 अक्तूबर 2016

लाल बहादुर शास्त्री - अनसुनी बातें

लाल बहादुर शास्त्री

दोस्तों, हर वर्ष 2 अक्टूबर को पूरा देश गाँधी जयंती के रंग में रंग जाता है परंतु इसी दिन भारतमाता का एक और सपूत इस धरती पर आया जिनका नाम है लाल बहादुर शास्त्री (LBS)। वे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के रामनगर में 2 अक्टूबर 1904 को हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद और माता का नाम राम दुलारी था। बचपन में ही पिता की मौत होने से पूरी जिम्मेदारी मां रामदुलारी पर आ गई थी। कुछ दिनों तक मायके में रहने के बाद बेटे लालबहादुर को लेकर रामदुलारी पैतृक आवास रामनगर आ गयी थी। अत्यंत गरीबी में कर्ज लेकर मां ने किसी तरह शास्त्री जी की पढ़ाई करवाई।

दोस्तों, वैसे तो उनकी जीवनी हममें से कईयों ने पढ़ी होगी। इसलिए इस पोस्ट में हम आपलोगों से केवल LBS जी से जुड़े कुछ रोचक जानकारियाँ साझा करना चाहूँगा।

(1) LBS बचपन में काफी नटखट हुआ करते थे। इसलिए उनका नाम नन्हें रखा गया था। उनको तैराकी का बहुत शौक था। बचपन में उन्होंने अपने एक सहपाठी को गंगा में डूबने से बचाया था।

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(2) काशी के रामनगर स्थित अपने पैतृक आवास से जब LBS जी बचपन में पढ़ाई के लिए निकलते थे, तब माथे पर बस्ता और कपड़ा रख कर कई किलोमीटर लंबी गंगा को आसानी से तैरकर पार किया करते थे।

(3) LBS जी अक्सर हरिश्चन्द्र इंटर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान देर से पहुंचा करते थे। इसलिए वे क्लास के बाहर खड़े होकर पूरा नोट्स बना लेते थे।

(4) LBS जी जाति-प्रथा के सख्त खिलाफ थे इसलिए उन्होंने अपने नाम से उपनाम हटा दिया और उसके स्थान पर काशी विद्यापीठ से स्नातक प्राप्ति के बाद 'शास्त्री' उपाधि मिली जिसे उन्होंने अपने नाम के साथ जोड़ दिया। आज भी यह उनके परिवार की पहचान है।

(5) अपने रेलमंत्री कार्यकाल में एक बार काशी आगमन पर जनता को संबोधित करने को निकल रहे थे, तो उनके एक सहयोगी ने उनको टोका कि आपका कुर्ता बगल से थोड़ा फटा है। तब LBS जी ने विनम्रता से जबाब दिया - "गरीब का बेटा हूं। ऐसे रहूंगा तभी गरीब का दर्द समझ सकूंगा।"

(6) एक बार LBS जी रेल में सफर कर रहे थे। उनकी बोगी में AC चल रहा था। उन्होंने अपने PA से AC बंद करने को कहा ताकि यात्रियों का दर्द समझ सके। उन्होंने ही जनरल बोगियों में पहली बार पंखा लगवाया था।

(7) उनके रेलमंत्री कार्यकाल में एक रेल दुर्घटना घटी जिसके लिए उन्होंने स्वंय को नैतिक रूप से जिम्मेदार मानते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। परंतु उनके पास घर-खर्च के लिए पैसे नहीं थे। तब उनके प्रेस एडवाइजर कुलदीप नायर ने उन्हें अखबार में कॉलम लिखने की सलाह दी जिसे उन्होंने मान लिया।

(8) LBS जी जब परिवहन मंत्री थे, तब उन्होंने सबसे पहले महिला कंडक्टरों की नियुक्ति की थी।

(9) अपने पुलिस मिनिस्टर के कार्यकाल में LBS जी ने लाठी चार्ज की जगह पानी के बौछार का इस्तेमाल करने को कहा ताकि जनता को भारी चोट न लगे।

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(10) LBS जी ने ही सबसे पहले परमाणु हथियारों को समुद्र में न छोड़ने की वकालत की थी। उनका मानना था कि इससे जल में रहने वाले हजारों जीव मर जाते हैं और पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता है।

(11) LBS जी के प्रेस एडवाइजर व एक प्रख्यात जॉर्नलिस्ट कुलदीप नायर ने एक रेडियो इंटरव्यू में शास्त्री जी के मृदु स्वाभाव की तारीफ करते हुए कहा था कि जिस दिन उन्हें वेतन मिलता उस दिन वे दोनों साथ-साथ गन्ने का जूस पीने दुकान जाते थे और तब अक्सर वे कहते - "आज जेब भरी हुई है।"

(12) LBS जी अपने वेतन का अधिकांश हिस्सा दान कर देते थे और अपने परिवार की आवश्यकताओं को सिमित आय से चलाते थे। बिजली और सरकार वाहन का सिमित रुप से इस्तेमाल करते थे।

(13) उन्होंने कभी भी सरकारी कर्मचारियों को व्यक्तिगत कार्यों के लिए इस्तेमाल नहीं किया।

(14) LBS जी सभी को 'आप' कहकर संबोधित करते थे फिर चाहे वो जो कोई भी हो।

(15) LBS जी फटे कपड़ों का रुमाल बनवाते थे। थोड़े फटे कुर्तों को कोट के नीचे पहनते थे। पत्नी के पूछने पर कहते - "देश में ऐसे बहुत लोग हैं, जो ऐसे ही गुजारा करते हैं।"

(16) शास्त्री जी किसी भी कार्यक्रम में VVIP की तरह नहीं बल्कि एक आम आदमी की तरह रहना पसंद करते थे। दोपहर के खाने में अक्सर वो रोटी-साग खाया करते थे। कार्यक्रम आयोजक अक्सर तरह-तरह के पकवान उनके लिए बनवाते तो वे उन्हें डांटकर समझाते कि गरीब आदमी भूखा सोये और वे मंत्री बन पकवान का मजा ले, ये शोभा नहीं देता।

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(17) LBD जी को पैदल चलना बहुत पसंद था। जब वह प्रधानमंत्री बनकर पहली बार घर आ रहे थे, तब पुलिस 4 महीने पहले से रिहर्सल कर रही थी। इसमें गलिया बाधक बन रही थीं। इन्हें तोड़ने का फैसला किया गया। जब यह बात शास्त्री जी को मालूम पड़ी तो उन्होंने तत्काल खबर भेजी - "गली को चौड़ा करने के लिए किसी भी मकान को तोड़ा न जाए। मैं पैदल घर जाऊंगा।"

(18) LBS जी सामाजिक कुरीतियों के घोर विरोधी थे। वे दहेज प्रथा के सख्त खिलाफ थे। इसलिए जब विवाह के वक्त उनके ससुराल वालों ने उन्हें दहेज देना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया परंतु काफी अनुरोध करने पर उन्होंने कुछ मीटर खादी का कपडा लेना स्वीकार किया।

(19) हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज में हाईस्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के दौरान LBS जी ने साइंस प्रैक्टिकल में इस्तेमाल होने वाले बिकर को तोड़ दिया था। चपरासी देवीलाल ने उनको देख लिया और उन्हें जोरदार थप्पड़ मारकर लैब से बाहर निकाल दिया। रेलमंत्री बनने के बाद 1954 में एक कार्यक्रम में भाग लेने आए शास्त्री जी जब मंच पर थे, तो देवीलाल उनको देखते ही पीछे हट गए। परंतु शास्त्री जी ने उनहे पहचान लिया, देवीलाल को पहचान गए और मंच पर बुलाकर गले लग गए।

(20) LBS जी अपने बेटे के कॉलेज में दाखिले के लिए अनुरोध पत्र में अपने बारे में 'सरकारी नौकर' लिखा था। उनका बेटा एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज में नाम लिखवाने के लिए घंटो कतार में खड़ा रहा। उनके पिता के व्यवसाय के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया "प्राइम मिनिस्टर ऑफ़ इंडिया"।

(21) उनका मानना था कि गांव समृद्ध होगा, किसान समृद्ध होगा तो देश समृद्ध होगा। ठीक उसी प्रकार सैन्य बल समृद्ध होगा तो देश सुरक्षित होगा। इसलिए उन्होंने जय जवान-जय किसान का नारा दिया।

(22) साहित्यकार नीरजा माधव ने 'भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री' किताब लिखी है। LBS जी अकेले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 1965 में कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के लाहौर में घुसकर पाकिस्तानियों को मुंहतोड़ जबाब दिया था। भारतीय सेना ने लाहौर में घुसकर तिरंगा फहराया था।

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(23) LBS जी कहते थे - "अहिंसा हमारा परम धर्म है। जब कोई हिंसा करता है जिसमें लोगों और देश का अहित हो। बच्चे, पत्नी, माताएं बिलखती हैं, तो ऐसी जगह पर अहिंसा का राग अलापना कायरता है।" एक प्रकार से वे 'क्रांति और शांति' दोनों के दूत थे।

(24) LBS जी ने युद्ध के दौरान देशवासियों से अपील किया कि अन्न संकट के लिए सभी देशवासी सप्ताह में एक दिन का व्रत रखें। उनके कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार व्यक्तित्व की इस पुकार से समस्त देशवासी एकजुट हुए और सभी ने सोमवार को व्रत रखना प्रारम्भ कर दिया था। इसके असर से देश में खाद्यान संकट समाप्त हुआ था।


(25) LBS जी समझौते के लिए जब तास्कंद गए थे, तो उस समय उनकी पत्नी ललित शास्त्री जी ने अपने मन की बातों को एक पत्र में लिख कर रखी थीं। ताकि जब वो आएंगे तब उनको अपने मनोभाव पढ़ने के लिए देंगी। तास्कंद से 12 जनवरी 1966 को उनका पार्थिव शरीर भारत आया, इसी दिन विजयघाट पर उनकी जलती चिता में उन्होंने वह लेटर इस सोच के साथ डाल दिया- 'अब अपने मन की बात वहीं आकर करूंगी'।

दोस्तों, LBS जी केवल एक प्रधानमंत्री नहीं थे, स्वानुशासन के मूरत थे। "सादा जीवन उच्च विचार" उनके जीवन का ध्येय था।

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धन्यवाद ।।।