विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

रविवार, 31 मई 2015

जीने का नजरियाँ



हमारा जीवन विभिन्न प्रकार के क्रिया-कलापों से परिपूर्ण हैं. इन क्रिया कलापों को करते हुए इसका आनंद उठाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. इन क्रियाकलापों को करते वक्त हमारे सामने कुछ समस्याएं आएँगी और कुछ अच्छी व बुरी बातों से भी हम रूबरू होंगे. जिस प्रकार बगुला गहरे पानी में बैठकर मोतियों को चुन-चुन कर अलग लेता है ठीक उसी प्रकार हमें भी चाहिए की अपनी क्रिया-कलापों से जीवन की अच्छाइयों को चुन सके.
दोस्तों आज हम आपसे जीवन को जीने की कला और जीवन के प्रति अपने नजरिये को आप लोगों से share  करना चाहते हैं.
१/ जीवन का मजा लें
जीवन को जीने के लिए हम सभी को कुछ-न-कुछ कार्य करने पड़ते हैं तो फिर इससे जी चुराना कैसा. कार्य का मजा ले. कार्य को खुशी और पूर्ण समर्पण के साथ करें, सफलता जरुर मिलेगी और उत्साह भी बना रहेगा. अपने कार्यों के मूल रहस्यों को समझकर उन कार्यों को थोडा सरल और दिलचस्प बनाये. कार्य के प्रति दिलचस्पी हमारे उत्साह को बनाये रखती है. उत्साहित व्यक्ति की शारीरिक शक्तियाँ सक्रिय रहती है जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है. जीवन केवल एक बार हमें मिला है इसलिए यता संभव हो सके इसका सदुपयोग करें. कुछ नया करें जिससे जीवन में रस बना रहें और हंसी-मजाक का सिलसिला चलता रहें .
२/ सही-गलत में फर्क करना सीखे
जीवन में हम सही-गलत में फर्क नहीं कर पाने की वजह से भूल-चूक कर बैठते हैं. अगर भूल छोटी सी हो तो ज्यादा अंतर नहीं मालूम पड़ता परन्तु यदि वही भूल बड़ी और नुकसानदेह हो तो जीवन भर इसकी पीड़ा बनी रहती है. इसलिए धीरे-धीरे ही सही सही-गलत में फर्क करना सीखे. अभिभावकों और गुरुओं से भी प्रार्थना है की वे अपने बच्चों और शिष्यों को उचित एवं सच्ची जानकारी प्रदान कर उनमें इस ज्ञान को सीखने की ललक पैदा करें. उन्हें सही-गलत के प्रति जागरूक करें.
३/ पहले झाकें फिर परखे
दूर से हर वस्तु आकर्षक जान पड़ता है. नजदीक आने पर ही हमें उस वस्तु पर चढ़े अतिरिक्त रंग का भान होता है. ठीक उसी प्रकार किसी व्यक्ति की परख उसके नजदीक रह कर ही किया जा सकता है. एक ज्ञानी व्यक्ति की निशानी होती है की वह किसी की भी परख केवल बाहरी बनावट के आधार पर न कर उसकी गहराई को नजदीक से मापता है और अपने ज्ञान की रोशनी से छानकर उसके चरित्र की बारीकियों का अध्ययन करने के पश्चात ही कोई टिप्पड़ी करता है.
४/ बातों को गुप्त रखना सीखे
जिन बातों को छुपाने से आपस में कलेश कम होता हो और बेकार के बहस और झगड़े न हो ऐसी बातों को छुपाने में ही समझदारी है. अक्सर हम अपने मन की बातें उनलोगों पर प्रकट कर देते हैं जो हमसे चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं. भविष्य में अगर आपका इन लोगों से कोई कलेश हो जाये तो फिर वही लोग आपकी बातें सार्वजनिक कर देते हैं. उस वक्त हमें अपनी भूल पर पछतावा होता है. कहीं बातें ऐसी होती है जिन्हें हम औरों से नहीं बाँट सकते. यदि ऐसा करते हैं तो हँसी का पात्र बनने की सम्भावना भी बढ जाती है.
स्वंय अपनी कमजोरी को कभी भी उजागर न करें
चाणक्य(कौटिल्य).
५/ स्वयं को बंधनों से मुक्त समझे
जब आप स्वंय को सभी बंधनों से मुक्त समझेंगे, केवल तभी आप सही निर्णय ले पाएँगे. ऐसा व्यक्ति न ही किसी का पक्षधर होता और ना ही किसी का विरोधी. वो केवल सही और निस्वार्थ कार्य के प्रति समर्पित होता है. मानसिक एवं शारीरिक बंधनों से मुक्त व्यक्ति किसी भी प्रलोभन में नहीं पड़ता.
६/ इच्छा और आवश्यकता के फर्क को समझे
अक्सर लोगों को इच्छाओं और आवश्यकताओं में अंतर का भान नहीं होता है. समय गुजरने के साथ-साथ वे प्रायः अपनी इच्छाओं को ही अपनी आवश्यकतायें समझने लगते हैं, जिसका भारी खामियाजा वे भविष्य में भुगतते हैं. आवश्यकताओं को इच्छाओं से अधिक महत्व देना चाहियें. आवश्यकताएँ समयानुसार परिवर्तित होती रहती है. इच्छाओं पर जहाँ लगाम आवश्यक होता हैं वहीँ आवश्यकताओं की पूर्ति अनिवार्य है.
७/ दूसरों की मदद करें
दोस्तों जरुरतमंदों की मदद करने पर जो सुख और शांति की अनुभूति होती है वैसा किसी भी अन्य कार्य को करने से नहीं होता. जब कभी हो सके अपने हैसियत और जरुरत के मुताबिक लोगों की मदद जरुर करें फिर चाहे वो आपके रिश्तेदार, मित्र, पड़ोसी या दुश्मन ही क्यों न हो. औरों की मदद का सौभाग्य हर किसी को नसीब नहीं होता. इसके लिए मन को थोड़ा बड़ा करने की आवश्यकता पड़ती है.
८/ लोगों की बातों को महत्व दें
केवल अपनी बातों को औरों को सुनाने की बजाय औरों की बातों को सुनने से अधिक ज्ञान प्राप्त होता है. दूसरों की बातों को सुने. बात अगर सही हो तो उसे महत्व देना आवश्यक है फिर चाहे उसे किसी बुजुर्ग ने कहा हो या फिर किसी बच्चे ने.
९/ संशय न करें
संशय किसी के भी सोचने और कार्य करने की क्षमता को नष्ट कर देता है. कई सारे विकल्पों की मौजूदगी संशय को जन्म देती है. कहीं बार संशय के वंशिभूत हम गलत निर्णय ले बैठते हैं. संशय करने वाला कभी उन्नति नहीं कर पाता हैं. वह स्वयं अपना ही शत्रु बन बैठता है. संशय का मूल कारक हैं - भय और आवेश. आत्मविश्वास की कमी भी संशय को बढावा देती है. संशय का एकमात्र समाधान है की हम अपनी अज्ञानता रूपी परदे को भेद दे. विषय का ज्ञान ही इस समस्या का एकमात्र विकल्प है. सूरज की रोशनी फैलने पर जिस प्रकार अंधियारा दूर हो जाता है और हमें सबकुछ स्पष्ट नजर आने लगता है, ठीक उसी प्रकार विषय का ज्ञान संशय को समाप्त कर हमारा मार्गदर्शन करता है. दोस्तों, हम सब की कोशिश रहनी चाहिए की संशय से दूरी को सदा बनाये रखे, इसे अपनेआस-पास भी पैर पसारने का मौका न मिले.
१०/ कुछ नया करें
एक ही काम को करते रहने पर कहीं बार देखा गया है की उस काम के प्रति उदासीनता पैदा हो जाती है और काम में नीरसता ला देती है. इसलिए हमें चाहिए की समय-समय पर या बीच-बीच में कुछ ऐसा करें जो रोजमर्रा के काम से बिल्कुल हटकर हो और साथ ही साथ मनोरंजक भी हो. हमेशा कुछ-न-कुछ नया सीखने की कोशिश करते रहें. संगीत, नृत्य, खेल, भाषा, खाना बनाना, चित्रकारिता, फोटोग्राफी, टाइपिंग, ब्लॉगिंग इत्यादी मस्तिष्क से जुड़े कसरत करने से हमारा मस्तिष्क तेज होता है और मन भी प्रसन्न रहता है.
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बुधवार, 27 मई 2015

पहले झाँको फिर परखो



फिलहाल मैं हैदराबाद में रहता हूँ और गर्मियों में जब कभी भी मौका मिलता है अपने गाँव हो आता हूँ. गाँव में हमारे पुरखों की जमीन है जिसमें हम खेती-बाड़ी करते हैं. हमारे खेत में कटहल के कुछ पेड़ भी हैं. पिछले साल गाँव से हैदराबाद लौटते वक्त हमारे बढ़े भैया ने एक पके कटहल को बोरी में लपेटकर हमें दिया.

पेड़ की शाख से सटे रहने की वजह से उस कटहल में एक निशान (खरोंच) लग गया था जो देखने में बदसूरत दिख रहा था. हमने सोचा की शायद कटहल खराब हो गया है. हमने सोचा की आखिर खराब कटहल को इतनी दूर ढोकर लाने का क्या फायदा. परन्तु भैया से कहने का साहस नहीं हुआ.
हैदराबाद आने के पश्चात जब हमने कटहल को छीलना शुरु किया तो आश्चर्य की सीमा न रही. एक भी फलक खराब न था. हर एक फलक मीठा था. जिस जगह दाग लगा था वहां का फलक भी मीठा था.

इस साल भी गाँव से हैदराबाद लौटते समय भैया ने पहले की भांति एक पके कटहल को बोरी में लपेटकर हमें ले जाने को दिया. इस बार कटहल में कोई खरोंच नहीं था. हैदराबाद आने के पश्चात जब हमने कटहल को छीलना शुरु किया तो एक बार फिर आश्चर्य की सीमा न रही. इस बार कटहल के अन्दर के फलक कुछ खराब हो गए थे जो खाने लायक नहीं थे.

दोस्तों ठीक इसी प्रकार हम अपने जीवन में हर चीज की परख करते हैं फिर चाहे वो मित्र हो या कोई वस्तु. आश्चर्य नहीं की इनकी परख हम केवल इनकी बाहरी सजावट अथवा खूबसूरती के आधार पर करते हैं. ठीक कटहल की तरह इसके भीतरी खूबसूरती और अच्छेपन की अनदेखी कर देते हैं.
भारत जैसे देश में जहाँ एक ओर महिलाओं की पूजा होती हैं वहीं दूसरी ओर बहू के रूप में चुनाव के वक्त उस बेटी के घर की दशा, आर्थिक स्थिति का व्योरा नजदीक से इकठ्ठा करते हैं परन्तु चारित्रिक दशा का ज्ञान दूसरों की जबानी इकट्ठा करते हैं.

एक ज्ञानी व्यक्ति की निशानी होती है की वह किसी की भी परख केवल बाहरी बनावट के आधार पर न कर उसकी  गहराई को नजदीक से मापता है और अपने ज्ञान की रोशनी में छानकर उसके चरित्र की बारीकियों का अध्ययन करने के पश्चात ही कोई टिप्पड़ी करता है.

दूर से हर वस्तु आकर्षक जान पड़ता है. नजदीक आने पर ही हमें उस वस्तु पर चढ़े अतिरिक्त रंग का भान होता है. ठीक उसी प्रकार किसी व्यक्ति की परख उसके नजदीक रह कर किया जा सकता है.

इसलिए मेरा मानना है, “पहले झाँको फिर परखो”.


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धन्यवाद् ... ... !!!
 

शुक्रवार, 15 मई 2015

दिमाग को तंदुरुस्त और उर्जावान बनाने के 10 उपाय


दोस्तों, मैं जब दुलियाजान (असम) में इंटरमीडिएट (10+2) की पढ़ाई कर रहा था उस वक्त हमारे Economics के शिक्षक थे कोंदर्व सर. वे जब भी किसी छात्र से मिलते तो उन्हें उनके नाम से पुकारते थे. कहीं वर्षो पश्चात् जब मैं उनसे मिला तो उन्होंने हमें हमारे नाम से पुकारा. हमेशा की तरह हमने उनके चेहरे पर उत्साह को महसूस किया. उनकी याददास्त सराहनीय थी. ऐसे व्यक्ति को मानसिक रूप से स्वस्थ अथवा तंदुरुस्त कहना गलत न होगा.
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति जीवन को अधिक उत्साह और परिपूर्णता के साथ जीता है फिर चाहे वो उम्र के किसी भी पड़ाव पर क्यों न हो. एक अच्छी याददास्त वाला व्यक्ति कहीं पर भी लोगों के बीच चर्चा का विषय बनता है.
आज हम आपसे दिमाग को तंदुरुस्त और उर्जावान बनाये रखने के 10 उपायों का संछिप्त वर्णन साझा करने जा रहे हैं.
1. अधिक मानसिक कसरत करें
स्वस्थ शरीर के लिए कसरत जरुरी है. ठीक उसी प्रकार हमारे मस्तिष्क को स्वस्थ और उर्जावान बनाने के लिए  भी कसरत जरुरी है. प्रतिदिन आप दिनचर्या के कामों में अपने दिमाग का भरपूर इस्तेमाल करें. अच्छी किताबें, ज्ञानवर्धक कहानियाँ अथवा newspaper पढ़ना, छोटे-छोटे गणित के सवालों को calculator के बिना हल करना, विडियो गेम्स अथवा puzzle गेम्स खेलना, पहेलियों को हल करना, newspaper के crosswords हल करना, तास के पत्तों का खेल इत्यादी आपके दिमाग को उर्जावान बनाने का सरलतम उपाय है. ये सारी चीजें आज इन्टरनेट पर आसानी से उपलब्ध हैं.
2. शारीरिक कसरत भी करें
शारीरिक कसरत करने से दिमाग को भरपूर मात्र में ऑक्सीजन प्राप्त होता है. इसलिए प्रतिदिन कुछ समय के लिए ही सही कसरत आवश्यक है. जरुरी नहीं है कि अधिक कष्टदायक कसरत करें. हलका कसरत भी लाभदायक सिद्ध हुआ है. योग करना, बागवानी करना, टहलना, दौड़ना, तैरना, नृत्य करना, खेलना, साइकिल चलाना इत्यादी उम्र के अनुरूप लोगों के लिए अच्छी कसरत है. सच ही कहा है, ‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है.’
3. मस्तिष्क को चुनौती देना
समय-समय पर हमें अपने मस्तिष्क से चुनौतीपूर्ण कार्य लेने चाहिए. नित्यकर्मो से हटकर किसी भी नयी वस्तु का ज्ञान अथवा नयी बातें सीखना एक प्रकार से मस्तिष्क के लिए चुनौती भरा विषय होता है. इससे हमारे मस्तिष्क की कोशिकाओं में ऊर्जा का विस्तार होता है. इसलिए हमेशा कुछ-न-कुछ नया सीखने की कोशिश करते रहें. संगीत, भाषा, खाना बनाना, चित्रकारिता, फोटोग्राफी, टाइपिंग, ब्लॉगिंग सीखना इत्यादी मस्तिष्क से जुड़े कसरत करने से हमारा मस्तिष्क तेज होता है और मन प्रसन्न रहता है.
4. स्वस्थ आहार ग्रहण करें
हमारे द्वारा ग्रहण किये हुए आहार और मस्तिष्क की क्रिया में गहरा सम्बन्ध है. स्वच्छ आहार से मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ती है. एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर आहार का सेवन करने से हमारी याददास्त दुरुस्त होती है और ध्यान केन्द्रित करने में मदद मिलती है.
सुबह का नाश्ता दिन का सबसे उत्तम आहार होता है. यह आपको दिन भर स्पूर्ति प्रदान करता है.
भोजन को हमेशा पका कर खाएँ. थोड़ी मात्रा में चावल का सेवन दिल के लिए अच्छा माना गया है. सालमन मछली को मस्तिष्क का उत्तम आहार कहा गया है. इसके अलावा हरी सब्जियां और फलों का सेवन मस्तिष्क के विकास के लिए अच्छा है. अपने आहार में ओलिव ऑइल और प्याज को जरुर शामिल करें. यह रक्त के लिए लाभदायक है.
विटामिन - B, C, E से भरपूर पदार्थों का सेवन करें.
5. अन्य सेवन पदार्थ
१. ओमेगा-3 को मस्तिष्क का उत्तम पोशक तत्व कहना गलत न होगा. यह डिप्रेशन को दूर भगाता है.
२. ग्रीन टी एंटीऑक्सीडेंट से युक्त होता है जो मस्तिष्क को बल देता है.
३. पानी भरपूर मात्रा में पीया करें. यह दिमाग में ऑक्सीजन की पूर्ति करता है.
४. अंगूर की गुठलियों का सेवन दिमागी कैंसर से हमारी रक्षा करता है.
6. इनका उपभोग सीमित होना चाहिए
कुछ खाद्य पदार्थ रूचि की दृष्टी से भले ही अच्छी लगे परन्तु शारीरिक व मानसिक दृष्टी से हानिकारक साबित होते हैं. वहीं कुछ चीजों का सीमित उपभोग ही मस्तिष्क के लिए ठीक है. जंक फ़ूड अथवा फ़ास्ट फ़ूड जिसमें घुलनशील वसा की मात्रा अधिक होती है, हमारे मस्तिष्क के लिए घातक है. एक आम का टुकड़ा Maaza के एक गिलास प्रोसेस्ड जूस से कहीं अधिक लाभदायक है. हम अपने आहार में शक्कर, तेल, शराब, कैफीन एवं भारी धातु निहीत पदार्थो का सेवन जितना कम करेंगे, हमारा मस्तिष्क उतना ही अधिक क्रियाशील रहेगा.
7. सुरक्षित रहें
अपने दिमाग को बाहरी खतरों से सुरक्षित रखें. यात्रा में जाते समय, कार्य को करते समय, खेलते समय या वाहन चलाते समय सिर को सुरक्षित रखने हेतू आवश्यक सारे कदम जरुर उठाएँ. इसमें कोई नरमी न बरते. जैसे – वाहन चलाते वक्त हेलमेट जरुर पहने, सीट बेल्ट बांधे, रफ़्तार धीमी रखें और खास बात शराब पीकर वाहन न चलाये.
धुम्रपान, शराब एवं अन्य नशीले पदार्थों का सेवन किसी भी दृष्टी से मस्तिष्क के लिए लाभदायक नहीं है. यह मस्तिष्क में ऑक्सीजन की मात्रा को घटा देता है जबकि स्वस्थ मस्तिष्क के लिए यह अतिआवश्यक है.
सिर को अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक ठण्ड दोनों से बचाए रखें.
8. थकावट को कम अथवा दूर करें
शरीर की थकावट का मस्तिष्क की क्रियाशीलता से गहरा सम्बन्ध है.
अपनी भावनाओं से जुड़े रहिये. अपनी भावनाओं जैसे रोना, हँसाना, क्रोधित होना इत्यादी पर नियंत्रण आवश्यक है.
नींद की प्रयाप्त मात्रा थकावट का रामबाण इलाज है. इसके अलावा गरम पानी से स्नान करने से थकावट दूर होती है. ध्यान (Meditation) लगाने से, मुस्कुराने से, खेलने से, कसरत करने से अथवा अच्छी पुस्तक को पढ़ने से भी थकावट कम हो जाता है.
9. अपनी इन्द्रियों को जागृत एवं उत्साहित करें
इन्द्रियों पर नियंत्रण कठिन परन्तु असंभव नहीं है. हमारी इन्द्रियाँ मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित होती हैं. इन्द्रियों पर नियंत्रण का अर्थ है अपने मस्तिष्क पर नियंत्रण. अच्छी पुस्तक पढ़ने से, मसाज करवाने से, बागवानी करने से, स्वच्छ सम्भोग करने से, कोई नया भोजन खाने से अथवा शिल्पकारी करने से हमारी इन्द्रियों पर हमारा नियंत्रण बढ़ता है जिससे इन्हें उत्साहित करने में हमें आसानी होती है.
10. सामाजिक बने
सामाजिक कार्यों में पूर्ण रूप से संलग्न व्यक्ति से थकावट दूर भाग जाती है. इसलिए खुद को समाज से जोड़ें. अपनी जिज्ञासाओं को साझा करें. लोगों की राय लें. उन्हें अपने कार्य का हिस्सा बनायें और स्वंय भी उनके कार्यों का हिस्सा बनें. इ-मेल, फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप इत्यादि सामाजिक जाल बुनने का अच्छा विकल्प है जो आज काफी प्रचलित हो चला है.
इसके अलावा खत लिखकर, फोन द्वारा, क्लब की सदस्यता लेकर अथवा कुकिंग क्लास में ज्वाइन होकर हम अपने सामाजिक परिवेश के दायरे को बड़ा सकते हैं. इन क्रियाकलापों द्वारा हम अपनी समस्याओं का हल भी ढूंड सकते हैं और वही दूसरों की मदद भी कर सकते हैं. इससे समाज में हमारी भूमिका भी बढ़ेगी.

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