विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

बुधवार, 27 जुलाई 2016

सत्य की परिभाषा Definition of Truth


एक बार एक किसान अपने गृहस्थ जीवन से तंग आकर वन के एक कुटिया के नजदीक ध्यान मग्न साधू की शरण में चला जाता है और उन्हें अपनी शरण में लेने की विनती करता है. पहले तो वह साधू उसे समझाने की कोशिश करता है कि यह जीवन काफी चुनौतियों से भरा हुआ है जिसे झेल पाना काफी कठिन होगा. परन्तु हर तरह से समझाने पर भी जब वह किसान नहीं मानता है तब मजबूरन साधू को उसे अपना शिष्य बनाना पड़ता है. परन्तु वह साधू भी बड़ा ज्ञानी एवं विवेकवान निकला. उन्होंने शर्त रखी कि अगर वह उनके बताये वचनों को अपने जीवन में अमल में नहीं ला पायेगा तो उसे वापस अपने गृहस्थ जीवन में लौट जाना पड़ेगा. किसान राजी हो जाता है.

अगले दिन से उसकी शिक्षा प्रारंभ हो जाती है.

पहली शिक्षा – “हमेशा सच बोलो. सच से बढ़कर कोई धर्म नहीं है.”

साधू ने किसान को इस शिक्षा को अपने जीवन में अगले दो वर्षों तक जीने का आदेश दिया.

किसान काफी कठिन मानसिक परिश्रम द्वारा अपने इन्द्रियों को नियंत्रण में लाने में थोड़ी सफलता हासिल कर ली. अब आस-पास के इलाकों में किसान की सत्यवादिता की ख्याति बढ़ने लगी. लोग उन्हें अब सत्याबाबा के नाम से भी पुकारने लगे. किसान के मन में धीरे-धीरे अहम घर करने लगा. उसे अब स्वंय पर गर्व की अनुभूति होने लगी.

यूँही देखते-देखते डेढ़ वर्ष बीत गया.

एक रात अचानक कुछ डरे-सहमें से लोग भागते-भागते सत्याबाबा के पास आये और उन्हें बताया कि कुछ लुटेरे उनका सामान लुटने और मारने के उद्देश्य से उनके पीछे लगे हुए हैं और वे काफी मुश्किल से बचकर यहाँ तक आ पाए हैं.

सत्याबाबा उन्हें सामने की झाड़ियों में छिप जाने को कहते हैं.

लुटेरे जल्द ही वहाँ पहुँच जाते हैं परन्तु सामने किसी को भी न पाकर हैरान हो जाते हैं. जल्द ही उनकी नजर सत्याबाबा पर पड़ती है.

उनमें से एक लुटेरा सत्याबाबा के नजदीक आकर पूछता है – हे साधू, अभी-अभी यहाँ कुछ लोग भाग कर आये थे. क्या तुम बता सकते हो वो लोग किधर गये ?

सत्याबाबा मौन ही रहें.

इतने में एक अन्य लुटेरा सत्याबाबा के पैरों में गिरकर कहता है – जय हो बाबा की. क्या आप वही सत्याबाबा हैं जो सारे इलाके में अपनी सत्यवादिता के लिए प्रसिद्ध हैं?

सत्याबाबा – तुम्हें किसने बताया है ?

लुटेरा (आगे कहता है) – आस-पास के सभी प्रदेशों में लोग आपकी सत्यवादिता की प्रसंसा करते हैं. लोगों का मानना है कि आप कभी भी झूठ नहीं बोलते फिर चाहे कितनी भी विषम परिस्थितियाँ क्यों न हो. इसलिए हम आपके पास आये हैं यह जानने के लिए कि वे लोग कहाँ छिप गए हैं.

सत्याबाबा का सीना गर्व से फूल गया और अपनी ऊँगली से नजदीक की झाड़ियों की ओर इशारा किया.

पलक झपकते ही लुटेरे उन झाड़ियों में छिपे लोगों को जिनमें बच्चे, बूढ़े, और औरत शामिल हैं, एक-एक कर मौत के घाट उतार देते हैं, और उनके गहने और सामान लूट कर सत्याबाबा की जय-जयकार करते हुए चले जाते हैं.

सत्याबाबा संतुष्ट था कि उसने इतनी विषम परिस्थितियों में भी सत्य का साथ दिया और धर्म की रक्षा की.

अपनी इस खुशी को अपने गुरु से बाँटने के उद्धेश्य से वह उनकी कुटिया की ओर बढ़ चला. गुरु के पास पहुँचते ही उन्हें प्रणाम किया.

साधू – कहो, कैसे आना हुआ?

सत्याबाबा ने बीती रात की उस घटना को विस्तारपूर्वक अपने गुरु को सुनाया. पूरा वृतांत सुनते ही साधू को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ और उन्होंने कहा – मूर्ख, क्या सच बोलना किसी भी निर्दोष व लाचार व्यक्ति की जिंदगी से बढ़कर है. जिस सत्य को बोलने से परिवार में कलह बढ़े, मित्रता में दरार पड़े, किसी निर्दोष को हानि पहुँचे, ऐसे सत्य को छिपाना ही धर्मसंगत है. तुमने साधुत्व के मूलभूत नियम का उल्लंघन किया है. यह जीवन तुम्हारे लिए अभी सही नहीं है. इसलिए मेरा आदेश है कि तुम अपने गृहस्थ जीवन में लौट जाओ.

सत्याबाबा को आज जीवन में पहली बार सही मायने में सत्य से परिचय हुआ. गुरु से आज्ञा ले वह अपने घर लौट गया.

दोस्तों, कहीं बार हम सत्य की परिभाषा ही गलत ढंग से समझ लेते हैं. मेरे मुताबिक सत्य का अर्थ है – अपनी परिस्थितियों की सही-सही जानकारी होना. खुद को पहचानना ही सत्य का दर्शन है. जब हम स्वंय को पहचानने लगेंगे तब हम जीवन की अन्य सच्चाईयों से भी सकारात्मक दृष्टिकोण से रूबरू हो पाएँगे.

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