विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

मंगलवार, 23 अगस्त 2016

काला कौवा Black Crow

काला कौवा
जंगल में एक पेड़ पर एक कौवा रहता था। एक दिन वह आत्महत्या करने की कोशिश करता है। जंगल के अन्य जीव उसे समझाते हैं कि वह आत्महत्या न करे।

कौवा (रोते हुए) - मुझे मर जाने दो। न रंग और न ही रूप। सब मुझे कालू कौवा कहकर चिड़ाते हैं। और तो और आवाज ऐसा की लोगों की नाराजगी मोल लेनी पड़ती है। यहाँ तक की मनुष्य के बच्चे भी कंकड़ फेंखते हैं। अब मैं तंग आ चुका हूँ इस जिन्दगी से। मुझे मर जाने दो।
कोयल (कौवा के नजदीक जाकर) - कौवा भैया, जीवन बहुत कीमती है। इतनी सी बात पर अपना मन छोटा न करें। मेरा भी रंग काला ही है। आप मेरी आवाज पर मत जाइए। इतनी सुरीली आवाज होने पर भी मैं आप की तरह सुन्दर घोसला नहीं बना सकती इसलिए तो आपके घोसले में अपना अंडा देती हूँ और इससे उन अंडोँ को आपका संरक्षण प्राप्त होता है।

गिद्ध - मैं तो केवल शवों का भक्षण करता हूँ परंतु तुम कहीं सारे दूषित पदार्थों को खाकर हमारे इस पर्यावरण को साफ रखते हो।

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बगुला - कौवा मेरे भाई, तुमने मेरे लंबे मजबूत चोंच को तो देखा है पर क्या तुम्हें यह पता है कि मैं इस चोंच से सब कुछ नहीं चुग पाता। तुम्हारे चोंच की खूबी यह है कि तुम इससे कुछ भी पकड़ सकते हो।

बत्तख - कौवा मेरे दोस्त, मैं आकार और वजन में तुमसे बड़ा हूँ और पानी में तैर भी सकता हूँ परंतु मेरी सीमाएँ निश्चित है। उड़ना मेरे भाग्य में कहाँ। तुम बहुत भाग्यशाली हो जो खुले आसमान में उड़कर दूर देश अपने सम्बन्धियों से मिल आते हो।

हँसा - मित्र, मैं लंबी दूरी की यात्रा करने के लिए प्रसिद्ध हूँ परंतु निरंतर एक ही तरीके से उड़ पाता हूँ। और आप तो कहीं प्रकार की कलाबाजियों में निपुण हो। आपको मेरा नमन है।

चीता - कौवा भांजे, वैसे तो संसार मेरे फुर्तीलेपन की प्रशंसा करते नहीं थकती परंतु तुम्हारी फुर्ती के आगे मैं भी कुछ नहीं।

लोमड़ी - भले ही जंगल में लोग मुझे चालाक लोमड़ी कहकर पुकारते हो परंतु तुम्हारी होशियारी के आगे मेरी क्या बिसाद। तुम तो चालाकी के लिए जग-जाहिर हो मेरे भाई।

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साधू (जो पेड़ के नीचे तप करता रहता है) - कौवा, तुम खुद को इतना असहाय क्यों समझते हो जो इतनी कायरतापूर्ण निर्णय ले बैठे। क्या तुम्हें पता है कि जिन मनुष्यों के बच्चे तुम पर कंकड़ बरसाते हैं, उनके यहाँ सम्बन्धियों के तर्पण कार्य में तुम्हारी मौजूदगी अनिवार्य है। तब यही मनुष्य तुम्हारी प्रतीक्षा में अपनी आँखें बिछाये रहते हैँ।

कौवा को अपनी भूल का एहसास हो जाता है। वह प्रतिज्ञा करता है कि फिर कभी दोबारा ऐसे निराशाजनक विचारों को आपने मन-मस्तिष्क में आने नहीं देगा।

दोस्तों, जीवन अनमोल है। हमें एक बात अपने मन में बिठा लेनी चाहिये कि हम अपने-आप में काश हैं और हम सा कोई और नहीं। अपने आप को औरों से तुलना करना छोड़िये। स्वंय को मानसिक तथा शारीरिक रूप से औरों की तुलना में कमजोर और असहाय समझना मुर्खता होगी।

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शनिवार, 13 अगस्त 2016

ईश्वर हाजिर हो - Existance of GOD

दोस्तों हम सब के मन में कहीं बार अपने जीवन काल में ईश्वर के अस्तित्व के संबंध में बहुत सारी जिज्ञासाएं अवश्य आती रहती है, जैसे कि क्या ईश्वर है ? उसका रूप कैसा है ? क्या वे हमारी तरह दिखते हैं ? क्या हम उन्हें देख सकते हैं ? इन सभी सवालों के जवाब आपको इस पोस्ट में मिल जायेगा.

बात वर्ष 2006 की है. हमेशा की तरह उस दिन भी मैं अपने एक सहपाटी के साथ सुबह क्लास अटेंड करने जा रहा था. मेरे सहपाटी का नाम था महेंदर. लेट होने की वजह से हम जल्दी में थे इसलिए तेजी से इंस्टिट्यूट की ओर जा रहे थे.

इतने में हमें एक बच्चे की जोर-जोर से रोने की आवाज सुनाई दी. मुड़कर देखा तो कुछ दूरी पर लगभग 8-9 वर्ष का एक बालक था जो साइकिल से गिर गया था. उसे उठाने के लिए मैं उसके नजदीक बढ़ा तो पाया कि उसका पेंट साइकिल के चेन में उलझ गया था, जिसके कारण वह साइकिल से गिर गया था. मैंने सोचा शायद इसलिए वो रो रहा है. मैं पेंट को खींचने के उद्देश्य से उसके नजदीक गया इतने में एक अन्य व्यक्ति जो नजदीक खड़ा था उसने उसकी पेंट को चेन से बाहर निकाल दिया. मैंने चैन की साँस ली और इंस्टिट्यूट की ओर मुड़ गया परन्तु उस बालक की रोने की आवाज अभी भी बदसतूर जारी था. मैं दोबारा उस बालक के नजदीक गया और कहा कि चेन में उलझे उसके पेंट को निकाल दिया गया है सो चुप हो जाओ, क्यों रो रहे हो ? परन्तु उस बालक का हठ तो देखिये. बालक पहले की तरह ही रोये जा रहा था. मैंने दोबारा मुस्कुराते हुए पूछा – अरे भई, क्यों रो रहे हो ?

बालक ने रोते-रोते सामने सड़क की ओर इशारा किया. मैंने देखा कि सड़क पर एक छोटे से बर्तन से दूध गिर कर बिखरा हुआ था. मुझे अब समझ आया कि आखिर क्यों वह बालक रोने की जिद पर अड़ा हुआ था. मैंने कहा कोई बात नहीं घर जाकर अपने मम्मी को बता देना कि गलती से दूध गिर गया.

वह बालक रोते हुए कहने लगा कि अगर वह खाली हाथ गया तो उसका मालिक उसे पीटेगा. मुझे मालिक की बात समझ नहीं आया और मैंने इस विषय में उस वक्त कुछ नहीं पूछा. परन्तु उसने यह बात इतनी मासूमियत से कहा कि मैं कुछ पलों तक उसे यूहीं ताकता रहा. इस बीच अनायास ही मेरा हाथ अपने आप ही मेरे शर्ट की जेब में चला गया जिसमें 10 रुपये थे. मैंने वह रुपये उसके आगे बढ़ाया और कहा अब ठीक है न ? यह पैसे लेकर दोबारा दूध खरीद लेना. अब तुम्हें कोई नहीं पीटेगा.

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उस बालक ने तुरंत ही रोना बंद कर दिया और अपने आँसू पोछने लगा. उसके चेहरे से अब एक गजब की मुस्कुराहट छलक रही थी जो किसी को भी मोहने के लिए पर्याप्त था. उसने अपना दूध का बर्तन उठाया और साइकिल पर सवार होकर चला गया. मैं उस ओर कुछ पलों के लिए ताकता रहा. कुछ ही देर में वह बालक मेरी आँखों के सामने से ओझल हो गया. अचानक मेरे मित्र ने मुझे याद दिलाया कि हम क्लास के लिए लेट हो जा रहें हैं.

अब मैं पहले से अधिक तेजी से चल रहा था. परन्तु मेरा मन तो जैसे उस बालक के मुस्कुराहट में ही कहीं खो गया था. उस वक्त मुझे अपार खुशी की अनुभूति हो रही थी. मन जैसे किसी बड़े से उधेड़बुन से बाहर आ गया हो. किसी और की खुशी में अपनी खुशी है यह कहने में जितना अच्छा लगता है उससे कहीं ज्यादा उसकी अनुभूति अच्छी लगती है. इस एहसास की कोई तुलना नहीं है.

उस रात घर पर बैठे उसी बालक की मासूमियत से कही बातें और उसकी मधुर मुस्कान को याद कर रहा था. साथ ही कुछ सवाल मेरे मन में भी आने लगे. उस बालक को 10 रुपये देना बड़ी बात नहीं थी. परन्तु उस दिन सुबह जब मैं अपने घर से इंस्टिट्यूट के लिए निकल रहा था, उस वक्त मैंने जो शर्ट पहना था वह मैं उस दिन पहनना नहीं चाहता था परन्तु न जाने क्यों फिर मैंने उसे पहन लिया. मेरे पास बस-पास (bus-pass) था जिसके कारण मैं पैसे अपने पास नहीं रखता था. परन्तु उस शर्ट की जेब में मैं पहले कभी 10 रुपये भूल गया था जिसे मैंने उस बालक को दे दिया था.
इस घटना ने मुझे कुछ सन्देश दिया. शायद उस बालक को पैसे की जरुरत थी इसलिए ईश्वर ने मुझे एक जरिया बनाया उस बालक की मदद करने के लिए. आज इतने वर्षों बाद भी जब कभी उस घटना को याद करता हूँ तो ईश्वर के प्रति मेरी सद्भावना अधिक तीव्र हो जाती है. किसी ने सच ही कहा था – “ईश्वर हमें वो नहीं देता जो हम चाहते हैं. ईश्वर हमें वो देता है जिसकी हमें आवश्यकता है.”

दोस्तों, सच ही है. कहीं बार हम ईश्वर को इधर-उधर ढूँढने लगते हैं. कभी मस्जिद में तो कभी मंदिर में, कभी चर्च में तो कभी गुरूद्वारे में, कभी किसी पेड़ की टोह में तो कभी किसी गुफाओं में. परन्तु हम भूल जाते हैं कि वह सर्वशक्तिमान सर्वव्यापी है जो हमेशा से हमारे इर्द-गिर्द मौजूद रहा है – माता-पिता, गुरु, मित्र इत्यादी के रूप में. हमने ही अपनी अज्ञानता से भरी आँखे मूंद रखी है. घर पर हमारे माता-पिता धरती पर हमारे लिए साक्षात परमब्रह्म तुल्य है क्योंकि उन्होंने हमें जीवन दिया. वहीं संसार में गुरु की ईश्वर से तुलना करना गलत न होगा क्योंकि वे हमें स्वंय को जानने में मदद करते हैं और साथ ही साथ हमारा मार्गदर्शन भी करते हैं. गुरु का अर्थ केवल शिक्षक से नहीं है, बल्कि हर कोई जो हमारा मार्गदर्शन करें, एक प्रकार से हमारा गुरु ही है. मित्र हमें संकट के समय संकटमोचन हनुमान की तरह मदद करने आ जाते हैं वहीं सगे सम्बन्धी मुश्किल की घड़ी में साथ देकर ईश्वर की मौजूदगी को प्रमाणित करते हैं. जरुरत है तो बस हमें अपनी सोच को सकारात्मकता प्रदान करने की और औरों की सोच को अहमियत देने की.


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शनिवार, 6 अगस्त 2016

कृष्ण-सुदामा Friendship Day Special

दोस्तों सबसे पहले तो आप सभी को Friendship Day के अवसर पर ढेर सारी बधाइयाँ.

सुदामा जाति से एक ब्राह्मण था परन्तु बहुत ही दरिद्र था. उसकी पत्नी उसे द्वारिकाधिपति कृष्ण से मिल आने की सलाह देती है जो उसके बचपन के सखा थे. सुदामा जाने को तो राजी हो जाते हैं परन्तु मन में संदेह होता है कि क्या एक देश का राजा इस मामूली से ब्राह्मण को जो उसका बचपन का मित्र था उसे याद करता होगा. द्वारिका में रानी रुक्मणी उसका भव्य स्वागत करती है जिसे देखकर सुदामा आश्चर्यचकित हो जाता है. वहाँ उसकी भेंट कृष्ण से नहीं हो पाती है इसलिए वह अब अधिक समय वहाँ न रहकर लौटने का निर्णय ले लेता है।

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रुक्मणी के पूछने पर भी वह अपने आने की वजह नहीं बताता है केवल यह सोचकर कि उसके मित्र कृष्ण को उसकी दरिद्रता बताकर उसकी मदद लेना स्वार्थीपन होगा. परन्तु जब वह अपने घर पहुँचता है तो आश्चर्य से उसकी ऑंखें खुली-की-खुली रह जाती है. उसकी झोपडी की जगह एक महल था जिसमें उसकी धर्मपत्नी सोने-चाँदी के आभूषणों से सुसज्जित थी और उनके बच्चे सुन्दर-सुन्दर कपड़ों में लिपटे खेल-कूद रहे थे. चारों और रोशनी और सुख-समृद्धि झलक रही थी. सुदामा को समझते देर नहीं लगी कि यह सब उस माखन चोर कृष्ण की ही करतूत है. बिन-बताये मित्र की मदद करना यह केवल कृष्ण जैसे मित्र से ही संभव है.

Once again wish you all a very-very happy and memorable FRIENDSHIP DAY….


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Thank U for being my friend..........