दोस्तों, आज हम आपसे अपने जीवन की एक छोटी सी घटना का जिक्र करना चाहेंगे
जिसने मेरे सोचने के नजरिये को एक नया मोड़ दिया.
बात उन दिनों की है जब मैं अपने घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. एक दिन
एक बच्चा हमारे पास आया जो पढ़ाई में थोड़ा कमजोर था. पिछले अर्धवार्षिक परीक्षा में
उसे काफी कम अंक मिले थे जिसका उसे पश्चाताप था इसलिए वार्षिक परीक्षा में अच्छे
अंकों की चाह से वह हमारे ट्यूशन में ज्वाइन हो गया. उस बच्चे का नाम दीपक था.
मैंने उसे पढ़ाई में होशियार एक बच्चे के बगल में बैठने को कहा जिसका नाम मौली था. दीपक
चुपचाप मौली के बगल में बैठ गया.
मौली (दीपक से) – मेरा नाम मौली है और तुम्हारा ?
दीपक (धीमे से) – मैं दीपक हूँ.
मौली – तुम शायद ठीक से नहीं पढ़ते हो इसलिए कम अंक आये हैं. अच्छा ये बताओ कि तुम
सुबह कितने बजे उठते हो ?
दीपक – छः बजे उठता हूँ.
मौली – तुम देर तक सोते हो इसलिए तुम्हें कम अंक मिले हैं. अच्छा ये बताओ
तुम दिन में कितने घंटे पढ़ते हो ?
दीपक – स्कूल के अलावा एक घंटे और पढ़ लेता हूँ.
मौली – मैं दिन में पाँच घंटे और अतिरिक्त पढ़ता हूँ, इसलिए अधिक अंक आते
हैं.
अगले दिन ट्यूशन में दीपक, मौली से दूर जाकर बैठ गया. मौली ने दीपक को पास
आने का इशारा किया, परन्तु दीपक शाँत बैठा रहा. ट्यूशन समाप्त हो जाने पर मौली ने दीपक
से पास न बैठने का कारण पूछा.
दीपक – जिस व्यक्ति को परिस्थिति की समझ न हो और बिना कारण जाने किसी और
व्यक्ति पर दोसारोहण करना शुरु कर दे और हल बताने की बजाय केवल गलतियाँ ढूँढने
लगे, उनसे हमेशा दूर रहना चाहिए.
(NOTE: स्कूल के बाद दीपक अधिकतर समय
दुकान पर अपने पिता की सहायता में बिताता था और रात के वक्त भी काफी समय तक घर पर
अपनी माँ की बुनाई में सहायता करता था जिसकी वजह से रात में काफी देर से दीपक सोता
था जिसकी वजह से वह सवेरे देर से उठ पाता था. जैसे-तैसे दिन में वह एक घंटे पढ़ाई
के लिए निकाल पाता था.)
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