विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

रविवार, 20 दिसंबर 2015

पसंद बनाम प्रेम Like vs Love















दोस्तों हमारे जीवन में कही बार ऐसी परिस्थितियाँ आई होगी जब हम 'पसंद' और 'प्रेम' इन दो भिन्न शब्दों को समानार्थक शब्दों के रूप में इस्तेमाल कर दिए होंगे।

इन दो शब्दों में जो अंतर है उसे मैं एक छोटे परंतु सत्य कथा पर आधारित प्रसंग द्वारा आप लोगों से शेयर करने जा रहा हूँ।

महात्मा बुद्ध और उनके शिष्यगण प्रतिदिन भिक्षुक के रूप में द्वार-द्वार भिक्षा माँगने जाया करते थे और शाम के वक्त सभी शिष्य महात्मा बुद्ध को घेर कर बैठ जाते और ज्ञान की चर्चा करने लगते थे।

एक शिष्य अपने स्थान से खड़े होकर महात्मा बुद्ध को प्रणाम कर कहता है - प्रभु, मेरे मन में एक जिज्ञासा है जिसे केवल आप ही शाँत कर सकते हैं।

महात्मा बुद्ध - पहले तुम अपना स्थान ग्रहण करो और फिर बताओ कि ऐसी कौन सी जिज्ञासा है जो तुम्हारे मन को इतना विचलित कर दे रही है।

शिष्य - प्रभु, 'मैं तुम्हें पसंद करता हूँ' और 'मैं तुमसे प्रेम करता हूँ', इन दो वाक्यों में अंतर क्या है?

महात्मा बुद्ध (मुस्कुराते हुए) - जब तुम्हें कोई फूल पसंद आएगा तब तुम उसे झट से थोड़ लोगे परंतु जब तुम्हें उस फूल से प्रेम हो जायेगा तब तुम उसके पौधे पर प्रतिदिन पानी डालोगे।

दोस्तों, प्रेम समर्पण माँगता है। जिस व्यक्ति को यह बात समझ में आ जाये वह जीवन का अर्थ भी समझ जायेगा।

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धन्यवाद ।

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