विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

बुधवार, 16 दिसंबर 2015

बालक गोपाल की ईमानदारी

दोस्तों, हम सभी के बचपन से जुड़ी ऐसे कहीं प्रसंग हैं जो समय-समय पर हमें हँसाते और रुलाते हैं। परंतु बचपन की ये छोटी-छोटी घटनाएँ रोज हमें कुछ न कुछ सीख दे जाती है। ये सारे अनुभव हमारे चरित्र निर्माण में अहम योगदान देती है।

बालक गोपाल अपनी कक्षा में बैठे हुए थे। शिक्षक कक्षा में प्रवेश करते हैं और पढ़ाने के पश्चात बच्चों को गृहकार्य (होमवर्क) स्वरुप कुछ सवालों को हल कर आने को कहते हैं।
बालक गोपाल को सारे सवालों के जवाब आते थे सिवाय एक के जिसे उसने बाद में अपने एक मित्र की सहायता से हल कर लिया।
अगले दिन कक्षा में शिक्षक ने घोषणा की कि जिसके सारे जवाब सही होंगे उसे पुरस्कार दिया जायेगा।

सभी छात्रों की कॉपियाँ एक-एक कर निरीक्षण से गुजरने के बाद पाया गया कि केवल बालक गोपाल ने ही सभी सवालों के सही जवाब लिखे हैं।

शिक्षक प्रसंतापूर्वक बालक गोपाल को आगे आकर अपना पुरस्कार लेने को कहते हैं।परंतु ये क्या खुश होने की बजाय बालक गोपाल फूट-फूट कर रोने लगे। शिक्षक गोपाल के समीप जाकर उसे शाँत रहने को कहते हैं। तत्पश्चात गोपाल से रोने का कारण पूछते हैं।

गोपाल - मास्टर जी, मैं अपने किये के लिए शर्मिंदा हूँ । आप सोच रहें हैं कि मैंने सारे सवालों के जवाब सही लिखे हैं परंतु आपको पता नहीं कि इसमें से एक सवाल को मैंने अपने एक मित्र की मदद से हल किया है। अब आप ही बताइये कि मैं पुरस्कार का हक़दार हूँ या फिर दंड का पात्र।

पूरी परिस्थिति का भान होने के पश्चात शिक्षक महोदय ने बालक गोपाल की पीठ थपथपाई और उसे पुरस्कृत करते हुए कहा - गोपाल इस पुरस्कार के केवल तुम ही हक़दार हो। यह पुरस्कार तुम्हें तुम्हारी ईमानदारी के लिए दिया जाता है।

धन्य है वह बालक और धन्य है वो माता-पिता जिन्होंने ऐसी संतान को जन्मा है।

क्या आपको इस बालक का पूरा नाम पता है?

यह बालक गोपाल आगे चलकर भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले वीर सपूत श्री गोपाल कृष्ण गोखले बनकर उभरे। वे एक सच्चे देशभक्त थे। उनके बचपन की यह घटना हम सबके लिए प्रेरणादायक है।

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