बहुत समय पहले की बात है। जंगल में एक शेर रहता था। उसे ज्यादातर दिन भूखे ही गुजारना पड़ता था क्योंकि उसे शिकार करना ठीक से नहीं आता था। काफी मुश्किल से वह अपने शिकार को दबोच पाता था। उसी जंगल में एक बिल्ली भी रहती थी। वह काफी फुर्तीली थी और पलक झपकते अपने शिकार को ढेर कर देती थी। अन्य जानवर उसे मौसी कहकर पुकारते थे। शेर बिल्ली के पास जाता है।
शेर (प्यार से) - बिल्ली मौसी, बिल्ली मौसी।
बिल्ली - कहो क्या बात है ?
शेर - मौसी, मैं तुम्हारे बच्चे समान हूँ। क्या तुम मुझे शिकार करना नहीं सिखाओगी ?
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बिल्ली (कुछ देर सोचकर) - जरूर बेटा।
अगले दिन से शेर का प्रशिक्षण शुरू हो जाता है। बिल्ली मौसी बिना आवाज किये अपने पंजों पर चलकर शिकार के नजदीक जाकर फुर्ती से उसपर कैसे झपटना है ये शेर को सिखाती है। कुछ महीनों के प्रशिक्षण के बाद शेर एक अच्छा शिकारी बन जाता है।
बिल्ली - बेटा तुम्हारा प्रशिक्षण पूरा हो चुका है। अब तुम बिना किसी की सहायता के अपने शिकार को धराशायी कर सकते हो। अब तुम्हें शिकार के लिए किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। अच्छा अब तुम मुझे अपना पहला शिकार पकड़कर दिखाओ।
शेर बिल्ली मौसी पर झपटकर उसे दबोच लेता है। शेर के चेहरे पर कुटिल मुस्कान को बिल्ली मौसी भांप लेती है। अब उसे सारा माजरा समझते देर नहीं लगती है।
बिल्ली - अरे वाह! तुम तो बहुत ही फुर्तीले हो गए हो।
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कुछ पल सोचते हुये बिल्ली ने कहा - बेटा, मैं भी कितनी भुलक्कड़ निकली। उम्र भी काफी जो हो गयी है। तुम्हें एक बहुत ही खास शिक्षा देना ही भूल गई। उस शिक्षा को मैंने अब तक किसी से साझा नहीं किया है परंतु तुम्हें जरूर सिखाऊँगी।
शेर खुश हो जाता है और बिल्ली को अपने चंगुल से आजाद कर उसे सिखाने को कहता है।
चंगुल से छूटते ही बिल्ली नजदीक के एक पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर चढ़ जाती है।
शेर नीचे इंतजार करता रहता है परंतु बिल्ली नीचे नहीं उतरती है।
शेर - मौसी, क्या तुम मुझे पेड़ पर चढ़ना नहीं सिखाओगी?
बिल्ली - कभी भी औरों के सामने अपनी सारी शक्तियों का खुल्लासा नहीं करना चाहिए अन्यथा अपने जीवन से भी हाथ धोना पड़ सकता है। अपने गुप्त शक्तियों का इस्तेमाल समय आने पर करनी चाहिए। यही तुम्हारी आज की सीख है। अब तुम लौट जाओ।
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शेर पेड़ पर चढ़ने के लिए भरकस कोशिश करता है परंतु सफल नहीं हो पाता है। आखिरकार थक-हारकर वह अपने इलाके की ओर लौट जाता है।
सीख:-
1) अपनी शक्तियों को जग-जाहिर न करें।
2) किसी के भरोसे को कभी न तोड़े।
3) कृतज्ञ बने।
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