विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

बुधवार, 8 जुलाई 2015

नसीहत



दोस्तों एक शाम जब मैं अपने कार्यालय से वापस आ रहा था तब बस में मेरे सामने की सीट पर बैठे दो व्यक्ति आपस में किसी विषय को लेकर चर्चा कर रहे थे.

पहले तो चर्चा शांतिपूर्ण रूप से शुरु हुआ बाद में और बाद में थोड़ा गंभीर होता सा महसूस हुआ जो काफी समय तक चलता रहा. उनके आगे की सीट पर एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठा हुआ था जो काफी समय से खमोशी से इन दोनों की बातें सुन रहा था. बुजुर्ग व्यक्ति को इनकी बातें थोड़ी मूर्खतापूर्ण लगी और उन्होंने अपने तजुर्बे के मुताबिक उनको नसीहत देने की सोच बीच में कहा, “अरे इतने छोटे से विषय में तुम दोनों इतनी चर्चा कर रहे हो वो भी मूर्खता से ......”

अभी बुजुर्ग की बात समाप्त भी नहीं हुई की उन दोनों ने बुजुर्ग को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया और उन्हें नसीहत न देने की बात कह डाली. वह बुजुर्ग चुप हो गया परन्तु मंद मुस्कान उनके चेहरे पर दिख रहा था. शायद उनके अपने तजुर्बे ने वह मुस्कान उनके चेहरे पर ला दिया था.

परन्तु इस घटना से मुझे पंचतंत्र की एक कहानी याद आ गयी. कहानी में गौरैया अपने घोंसले के नीचे ठण्ड से ठिठुरते एक बन्दर की मनुष्य से तुलना कर मनुष्य के तरह घर बनाकर उसमें रहने की नसीहत दे डाली. बन्दर को बुरा लगा कि एक छोटी सी चिड़िया उसे नसीहत देने चली परन्तु कुछ नहीं कहा. गौरैया लगातार अपनी बात दोहराने लगी, जिससे बन्दर को गुस्सा आ गया और वह पेड़ पर चढ़कर गौरैया के घोंसले को नष्ट कर दिया.

दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है, “बिन माँगे किसी को नसीहत नहीं देनी चाहिए”.

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धन्यवाद् ... ... !!!

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