विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

शनिवार, 12 दिसंबर 2015

कछुआ और खरगोश रिटर्न्स

खरगोश जहाँ कहीं भी जाता तो अन्य जानवर उसे इस बात पर चिड़ाते कि उसका एक पूर्वज एक कछुआ से दौड़ में हार गया। उसे काफी शर्मिन्दगी झेलनी पड़ती।

एक दिन खरगोश एक कछुआ के पास जाकर उसे दौड़ के लिए ललकारता है और कहता है कि वह अपने एक पूर्वज की गलती को सुधारना चाहता है।

कछुआ को मजबूरन दौड़ के लिए मानना पड़ता है। परंतु कछुआ ये भी जानता है कि दौड़ में उसकी हार पक्की है।

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कछुआ का एक भाई भी है जो बिल्कुल उसी का हमशक्ल है। वह उसके पास जाकर सारी बात बताता है और उससे मदद की गुहार लगाता है।

उसके भाई के दिमाग में एक युक्ति आती है जिसे वह उसे समझा देता है। युक्ति यह है कि कछुआ दौड़ शुरू करेगा और अंतिम रेखा के नजदीक उसका जुड़वाँ हमशक्ल भाई छुपा रहेगा और जैसे ही दौड़ शुरू होगा, समय देखकर हमशक्ल भाई अंतिम रेखा को पार कर देगा।

दौड़ की बात पूरे जंगल में फ़ैल गयी। इस रोमांचक दौड़ को देखने के लिए अगले दिन सभी जानवर दौड़ शुरू होने वाली जगह पर इकठ्ठा हो जाते हैं। दौड़ शुरू होता है।

कछुआ पहले की भाँति धीरे-धीरे से कदम बढ़ाकर चलने लगता है। वहीँ खरगोश अपनी पूरी ताकत के साथ तेजी से दौड़ने लगता है। इस बार खरगोश किसी भी हरे घास को अनदेखा कर केवल दौड़ में ध्यान केंद्रित करता है। उसे तो जैसे किसी भी हालत में ये दौड़ जीतनी ही है।

परंतु ये क्या, जैसे ही खरगोश अंतिम रेखा के नजदीक पहुँचने लगता है वहाँ रेखा के बिल्कुल नजदीक कछुआ को पाता है जो अंतिम रेखा की ओर बढ़ा जा रहा है। खरगोश की स्थिति तो जैसे काटो तो खून नहीं। खरगोश पूरा जोर लगा देता है परंतु तब तक कछुआ दौड़ की अंतिम रेखा को पार कर चुका होता है।

इस तरह कछुआ दोबारा जीत जाता है।

सीख:
1) जहाँ बल और मेहनत काम न दे वहाँ बुद्धि की शरण लो।
2) अपने किसी प्रियजन की गलती से क्रोधित होकर जल्दबाजी में कोई निर्णय न ले। हर निर्णय समय की आवश्यकता को ध्यान में रखकर शाँत मन से ले।


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