विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

Gandhi vs Modern India in Hindi - Essay


मोहनदास करमचंद गाँधी जिन्हें संसार राष्ट्रपिता के नाम से जानती है, भारत के महापुरुषों में एक हैं. लोग प्यार से उन्हें बापू कहते हैं. आज के इस भागम-भरी जीवन सैली और तेज अर्थव्यवस्था में क्या कभी भी हमें गाँधीजी के आदर्शों और नीतियों के महत्व का बोध हुआ है ? कुछ हद तक हाँ और बहुत हद तक शायद नहीं. क्षणिक स्वार्थपूर्ति की खातिर लोग गाँधी को विदेशी एजेंट कहने से भी नहीं कतराते. परन्तु विचार करें तो पायेंगें की उनकी नीतियाँ पहले के मुकाबले आज अधिक प्रासंगिक हो गयी है.

इस बात को थोड़ा विस्तार से जानना जरुरी है. इसलिए आज हमने इस विषय को एक  रचना (Essay) के रूप में आपलोगों से साझा करना सही समझा.
अहिंसा एवं शांति नीति:
गाँधी जी ने अपने जीवन में अहिंसा को एक अचूक शस्त्र के रूप में धारण किया. उनके मुताबिक अहिंसा ही हिंसा का एक मात्र जवाब है. केवल अहिंसा के पथ पर चलकर ही हम स्वंय का और पूरे संसार का भला कर सकते हैं. शांति स्थापना में अहिंसा की अहम भूमिका होती है. आज जिस राष्ट्र में हिंसा का अधिक बोल-बाला है वह राष्ट्र सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक रूप से भी पिछड रहा हैं. भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसने अहिंसा के पथ पर चलकर आजादी प्राप्त की.
राष्ट्रीय एकता नीति:
गाँधीजी ने सांप्रदायिक एकता को अत्यधिक महत्व दिया है. राष्ट्रीय एकता की दृष्टी से देखा जाये तो सांप्रदायिक एकता का महत्व बढ़ गया है. उनके मुताबिक केवल भाई-चारे का नारा मात्र से एकता नहीं आती है. इसके लिए हमें एक दूसरे के विचारों, जाति, धर्मो का सम्मान एवं एक दूसरे पर विश्वास आवश्यक है.
सामाजिक नीति:
गाँधीजी ने अपना सम्पूर्ण जीवन हिन्दू और मुसलमान भाइयों के बीच एकता स्थापित करने और अछूत-प्रथा को दूर करने में लगाया. उन्होंने अछूतों को ‘हरिजन’ नाम प्रदान किया जिसका अर्थ है 'ईश्वर के लोग’. उन्होंने अछूत-प्रथा को मानवता का सबसे बड़ा अभिशाप घोषित किया.

Related post:
जरूर पढ़े बापू के अनमोल बोल Golden words of Gandhi

आर्थिक नीति:
गाँधीजी ने महसूस किया की भारतीय अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से ग्रामीण भारत पर निर्भर है. आज भले ही आपको भारतीय आय (जी.डी.पी.) में  कृषि क्षेत्र की भूमिका कम लगे परन्तु परोक्ष रूप से आज भी किसानों को ही आप भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कह सकते हैं. अगर यही किसान अनपढ़ रह जाये और उनकी प्राथमिक आवश्यकता भी बड़ी मुस्किल से पूरी होती हो तो संभव है की अर्थव्यवस्था पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. गाँधी जी इनके विकास की पुरजोर कोशिश के पक्षधर हैं. उनके मुताबिक कुटीर उद्योग इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. वर्तमान नीति-शास्त्रों को पुनः इस विषय पर विचार करना चाहिए की गाँधी जी की नीतियाँ किस हद तक भारत की अर्थव्यवस्था को सही दिशा दे सकती है.
औधोगिक नीति:
गाँधीजी औधोगिक क्रांति के घोर विरोधी नहीं हैं अपितु वे तो चाहते हैं की औधोगिकरण हो पर उस दायरे में जहाँ ग्रामीण बेरोजगारी और भुखमरी बढ़ने की बजाय घटे. वे उन्नत तकनीकी पद्धति के पक्षधर है, परन्तु भारत जैसे देश में जहाँ श्रमिकों की संख्या अधिक है वहाँ वे श्रमिक-प्रधान अर्थव्यवस्था की जरुरत अधिक मानते हैं. उन्होंने समाज के जरुरी संसाधनों के समान वितरण पर जोर दिया है ताकि ग्रामीण, पिछड़े वर्गों के लोगों को भी तरक्की का मौका मिल सके.
रोजगार नीति:
गाँधीजी का मानना है की ग्रामीण भारत में रोजगार के अवसर पैदा कर बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है. उन्होंने इस विषय में कुटीर उद्योगों की भूमिका की सराहना की है और इसे देश से बेरोजगारी भागने का एक नायाब तरीका बताया है.
राजनैतिक नीति:
राष्ट्र के विकास के लिए राजनैतिक स्थिरता अनिवार्य है. गाँधी जी ने न केवल भारत बल्कि विश्व के अन्य देशों के लोगों में भी राजनैतिक जागृति पैदा कर उन्हें आज़ादी प्राप्त करने का मार्ग दिखाया. उनकी अहिंसा नीति ने विरोधियों को भी दोस्त बना दिया. उन्होंने गाँव में ‘पंचायती राज’ की वकालत की. आज भारत के प्रत्येक गाँव में ‘पंचायत’ कार्यरत है. पंचायत चूँकि स्थानीय लोगों द्वारा गठित होता है इसलिए स्थानीय लोगों की समस्याओं को पंचायत आसानी से समझ कर उनकी आवश्यकताओं के मुताबिक निर्णय ले सकता है.
शिक्षा नीति:
गाँधीजी के अनुसार शिक्षा ही एक ऐसा साधन है जो लोगों में आत्मविश्वास और जागरूकता पैदा कर सकती है. उन्होंने किताबी शिक्षा की बजाय तकनीकी शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया है. उनके मुताबिक शिक्षा वही है जो लोगों में आत्मा-निर्भरता ला सके. उनके अनुसार शिक्षा न केवल ज्ञान में वृद्धि लाती है बल्कि दिलों की संस्कृति को समृद्धि प्रदान करती है. उन्होंने खेल को शिक्षा का अहम अंग बताया. गाँधीजी की मान्यता है, “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है.”

वर्तमान में दिन-ब-दिन मानव मूल्यों का क्षरण होता जा रहा है. आज की राजनीति में नैतिकता का लगभग पतन सा हो गया है. गाँधी जी ने अपने समय में देश को राजनैतिक नेतृत्वता के साथ-साथ नैतिक नेतृत्वता भी प्रदान की जो आज की भारतीय राजनीति में नदारत है. इक्कीसवीं सदी के भारत को गाँधी जी के विचारों से दूर रखना हानिकारक होगा. समय की विड़म्बना कहिये या फिर समय की माँग, जिस विन्स्टन चर्चिल को गाँधी फूटी आँख नहीं सुहाते थे, उसी गाँधी जी की मूर्ति का पिछले दिनों लन्दन में ठीक विन्स्टन चर्चिल की मूर्ति के आगे अनावरण किया गया. ये इस बात का सबूत है कि गाँधीवादी नीतियाँ आज पूरे संसार की जरुरत बनती जा रही है.

If you like this post (article), then share it with your friends on facebook, twitter or mail. It will be a great encouragement to my work.


THANKS … …

1 टिप्पणी: