विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

शनिवार, 13 अगस्त 2016

ईश्वर हाजिर हो - Existance of GOD

दोस्तों हम सब के मन में कहीं बार अपने जीवन काल में ईश्वर के अस्तित्व के संबंध में बहुत सारी जिज्ञासाएं अवश्य आती रहती है, जैसे कि क्या ईश्वर है ? उसका रूप कैसा है ? क्या वे हमारी तरह दिखते हैं ? क्या हम उन्हें देख सकते हैं ? इन सभी सवालों के जवाब आपको इस पोस्ट में मिल जायेगा.

बात वर्ष 2006 की है. हमेशा की तरह उस दिन भी मैं अपने एक सहपाटी के साथ सुबह क्लास अटेंड करने जा रहा था. मेरे सहपाटी का नाम था महेंदर. लेट होने की वजह से हम जल्दी में थे इसलिए तेजी से इंस्टिट्यूट की ओर जा रहे थे.

इतने में हमें एक बच्चे की जोर-जोर से रोने की आवाज सुनाई दी. मुड़कर देखा तो कुछ दूरी पर लगभग 8-9 वर्ष का एक बालक था जो साइकिल से गिर गया था. उसे उठाने के लिए मैं उसके नजदीक बढ़ा तो पाया कि उसका पेंट साइकिल के चेन में उलझ गया था, जिसके कारण वह साइकिल से गिर गया था. मैंने सोचा शायद इसलिए वो रो रहा है. मैं पेंट को खींचने के उद्देश्य से उसके नजदीक गया इतने में एक अन्य व्यक्ति जो नजदीक खड़ा था उसने उसकी पेंट को चेन से बाहर निकाल दिया. मैंने चैन की साँस ली और इंस्टिट्यूट की ओर मुड़ गया परन्तु उस बालक की रोने की आवाज अभी भी बदसतूर जारी था. मैं दोबारा उस बालक के नजदीक गया और कहा कि चेन में उलझे उसके पेंट को निकाल दिया गया है सो चुप हो जाओ, क्यों रो रहे हो ? परन्तु उस बालक का हठ तो देखिये. बालक पहले की तरह ही रोये जा रहा था. मैंने दोबारा मुस्कुराते हुए पूछा – अरे भई, क्यों रो रहे हो ?

बालक ने रोते-रोते सामने सड़क की ओर इशारा किया. मैंने देखा कि सड़क पर एक छोटे से बर्तन से दूध गिर कर बिखरा हुआ था. मुझे अब समझ आया कि आखिर क्यों वह बालक रोने की जिद पर अड़ा हुआ था. मैंने कहा कोई बात नहीं घर जाकर अपने मम्मी को बता देना कि गलती से दूध गिर गया.

वह बालक रोते हुए कहने लगा कि अगर वह खाली हाथ गया तो उसका मालिक उसे पीटेगा. मुझे मालिक की बात समझ नहीं आया और मैंने इस विषय में उस वक्त कुछ नहीं पूछा. परन्तु उसने यह बात इतनी मासूमियत से कहा कि मैं कुछ पलों तक उसे यूहीं ताकता रहा. इस बीच अनायास ही मेरा हाथ अपने आप ही मेरे शर्ट की जेब में चला गया जिसमें 10 रुपये थे. मैंने वह रुपये उसके आगे बढ़ाया और कहा अब ठीक है न ? यह पैसे लेकर दोबारा दूध खरीद लेना. अब तुम्हें कोई नहीं पीटेगा.

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उस बालक ने तुरंत ही रोना बंद कर दिया और अपने आँसू पोछने लगा. उसके चेहरे से अब एक गजब की मुस्कुराहट छलक रही थी जो किसी को भी मोहने के लिए पर्याप्त था. उसने अपना दूध का बर्तन उठाया और साइकिल पर सवार होकर चला गया. मैं उस ओर कुछ पलों के लिए ताकता रहा. कुछ ही देर में वह बालक मेरी आँखों के सामने से ओझल हो गया. अचानक मेरे मित्र ने मुझे याद दिलाया कि हम क्लास के लिए लेट हो जा रहें हैं.

अब मैं पहले से अधिक तेजी से चल रहा था. परन्तु मेरा मन तो जैसे उस बालक के मुस्कुराहट में ही कहीं खो गया था. उस वक्त मुझे अपार खुशी की अनुभूति हो रही थी. मन जैसे किसी बड़े से उधेड़बुन से बाहर आ गया हो. किसी और की खुशी में अपनी खुशी है यह कहने में जितना अच्छा लगता है उससे कहीं ज्यादा उसकी अनुभूति अच्छी लगती है. इस एहसास की कोई तुलना नहीं है.

उस रात घर पर बैठे उसी बालक की मासूमियत से कही बातें और उसकी मधुर मुस्कान को याद कर रहा था. साथ ही कुछ सवाल मेरे मन में भी आने लगे. उस बालक को 10 रुपये देना बड़ी बात नहीं थी. परन्तु उस दिन सुबह जब मैं अपने घर से इंस्टिट्यूट के लिए निकल रहा था, उस वक्त मैंने जो शर्ट पहना था वह मैं उस दिन पहनना नहीं चाहता था परन्तु न जाने क्यों फिर मैंने उसे पहन लिया. मेरे पास बस-पास (bus-pass) था जिसके कारण मैं पैसे अपने पास नहीं रखता था. परन्तु उस शर्ट की जेब में मैं पहले कभी 10 रुपये भूल गया था जिसे मैंने उस बालक को दे दिया था.
इस घटना ने मुझे कुछ सन्देश दिया. शायद उस बालक को पैसे की जरुरत थी इसलिए ईश्वर ने मुझे एक जरिया बनाया उस बालक की मदद करने के लिए. आज इतने वर्षों बाद भी जब कभी उस घटना को याद करता हूँ तो ईश्वर के प्रति मेरी सद्भावना अधिक तीव्र हो जाती है. किसी ने सच ही कहा था – “ईश्वर हमें वो नहीं देता जो हम चाहते हैं. ईश्वर हमें वो देता है जिसकी हमें आवश्यकता है.”

दोस्तों, सच ही है. कहीं बार हम ईश्वर को इधर-उधर ढूँढने लगते हैं. कभी मस्जिद में तो कभी मंदिर में, कभी चर्च में तो कभी गुरूद्वारे में, कभी किसी पेड़ की टोह में तो कभी किसी गुफाओं में. परन्तु हम भूल जाते हैं कि वह सर्वशक्तिमान सर्वव्यापी है जो हमेशा से हमारे इर्द-गिर्द मौजूद रहा है – माता-पिता, गुरु, मित्र इत्यादी के रूप में. हमने ही अपनी अज्ञानता से भरी आँखे मूंद रखी है. घर पर हमारे माता-पिता धरती पर हमारे लिए साक्षात परमब्रह्म तुल्य है क्योंकि उन्होंने हमें जीवन दिया. वहीं संसार में गुरु की ईश्वर से तुलना करना गलत न होगा क्योंकि वे हमें स्वंय को जानने में मदद करते हैं और साथ ही साथ हमारा मार्गदर्शन भी करते हैं. गुरु का अर्थ केवल शिक्षक से नहीं है, बल्कि हर कोई जो हमारा मार्गदर्शन करें, एक प्रकार से हमारा गुरु ही है. मित्र हमें संकट के समय संकटमोचन हनुमान की तरह मदद करने आ जाते हैं वहीं सगे सम्बन्धी मुश्किल की घड़ी में साथ देकर ईश्वर की मौजूदगी को प्रमाणित करते हैं. जरुरत है तो बस हमें अपनी सोच को सकारात्मकता प्रदान करने की और औरों की सोच को अहमियत देने की.


दोस्तों आपको यह पोस्ट कैसा लगा जरुर बताये. धन्यवाद ... ... ... !!! !!! !!!

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