दोस्तों सबसे पहले तो आप सभी को Friendship
Day के अवसर पर ढेर सारी
बधाइयाँ.
सुदामा जाति से एक ब्राह्मण था परन्तु बहुत ही दरिद्र था. उसकी पत्नी उसे द्वारिकाधिपति कृष्ण से मिल आने की सलाह देती है जो उसके बचपन के सखा थे. सुदामा जाने को तो राजी हो जाते हैं परन्तु मन में संदेह होता है कि क्या एक देश का राजा इस मामूली से ब्राह्मण को जो उसका बचपन का मित्र था उसे याद करता होगा. द्वारिका में रानी रुक्मणी उसका भव्य स्वागत करती है जिसे देखकर सुदामा आश्चर्यचकित हो जाता है. वहाँ उसकी भेंट कृष्ण से नहीं हो पाती है इसलिए वह अब अधिक समय वहाँ न रहकर लौटने का निर्णय ले लेता है।
जरूर पढ़ें - 'अबला बनी सबला' - Women's Special - महिलाओं के बढ़ते कदम।
रुक्मणी के पूछने पर भी वह अपने आने की वजह नहीं बताता है केवल यह सोचकर कि उसके मित्र कृष्ण को उसकी दरिद्रता बताकर उसकी मदद लेना स्वार्थीपन होगा. परन्तु जब वह अपने घर पहुँचता है तो आश्चर्य से उसकी ऑंखें खुली-की-खुली रह जाती है. उसकी झोपडी की जगह एक महल था जिसमें उसकी धर्मपत्नी सोने-चाँदी के आभूषणों से सुसज्जित थी और उनके बच्चे सुन्दर-सुन्दर कपड़ों में लिपटे खेल-कूद रहे थे. चारों और रोशनी और सुख-समृद्धि झलक रही थी. सुदामा को समझते देर नहीं लगी कि यह सब उस माखन चोर कृष्ण की ही करतूत है. बिन-बताये मित्र की मदद करना यह केवल कृष्ण जैसे मित्र से ही संभव है.
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रुक्मणी के पूछने पर भी वह अपने आने की वजह नहीं बताता है केवल यह सोचकर कि उसके मित्र कृष्ण को उसकी दरिद्रता बताकर उसकी मदद लेना स्वार्थीपन होगा. परन्तु जब वह अपने घर पहुँचता है तो आश्चर्य से उसकी ऑंखें खुली-की-खुली रह जाती है. उसकी झोपडी की जगह एक महल था जिसमें उसकी धर्मपत्नी सोने-चाँदी के आभूषणों से सुसज्जित थी और उनके बच्चे सुन्दर-सुन्दर कपड़ों में लिपटे खेल-कूद रहे थे. चारों और रोशनी और सुख-समृद्धि झलक रही थी. सुदामा को समझते देर नहीं लगी कि यह सब उस माखन चोर कृष्ण की ही करतूत है. बिन-बताये मित्र की मदद करना यह केवल कृष्ण जैसे मित्र से ही संभव है.
Once again wish you all a very-very happy and memorable
FRIENDSHIP DAY….
Share all your friends….
Thank U for being my friend..........
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