विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

रविवार, 8 मार्च 2015

अबला बनी सबला Women's Special

दोस्तों, सबसे पहले मैं महिला दिवस के शुभ अवसर पर आप सबको शुभकामनायें देता हूँ। आज का मेरा यह ब्लॉग महिला सशक्तिकरण पर केंद्रित है।  आशा करते हैं की आपको पसंद आयेगा।

भारतीय उपासना में नारी तत्व की प्रधानता पुरुष से अधिक मानी गई है। यह प्रकृति की प्रमुख सहचरी भी है जो संसार की सार्थकता को सिद्ध करती है। नारी को शक्ति की चेतना का प्रतीक माना गया है। भारतीय इतिहास शक्ति आराधकों के उदाहरण से पूर्ण भरा हुआ है। छत्रपति शिवाजी द्वारा भगवती भ्रमरम्बा भवानी की आराधना एवं महाराणा प्रताप द्वारा भगवती चामुंडा की विशेष आराधना का उल्लेख मिलता है। ऐसा मत है की माता की आराधना से शक्ति अर्जित कर ही वे अत्याचारियों को लोहे के चने चबाने पर मजबूर कर दिए थे।

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नारी जिन्हें हम स्त्री, महिला, लड़की इत्यादी कहीं नामों से पुकारते हैं, जो अपनी असल जिंदगी में बेटी, पत्नी, बहू, माँ इत्यादी कहीं किरदारों को जीवंत करती है। आधुनिक युग की बात करें तो आज नारी का योगदान हर क्षेत्र में उजागर हो रहा है। चाहे वह विमान-समवाय का क्षेत्र, शिक्षा का क्षेत्र, बैंक व्यवसाय का क्षेत्र हो अथवा राजनीति का  क्षेत्र। नारियाँ अब हर क्षेत्र में मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हुए अपनी एक अलग पहचान कायम कर रहे हैं। कई ऐसे भी प्रसंग मिले हैं जहाँ वो मर्दों को भी पछाड़ रही हैं।

देश की साक्षरता दर में जो वृद्धि दर्ज हुई है उसका श्रेय महिलाओं को जाता है। वे अब इस क्षेत्र में भी पुरुषों के आधिपत्य को चुनौती दे रही हैं। केंद्रीय विद्यालय के पिछले एक दशक के वार्षिक नतीजों का विश्लेषण दर्शाता है की महिलायें अब शिक्षा की अहमियत को जान चुकी हैं। आज धरती पर ही नहीं अपितु आकाश गंगा भी महिलाओं से अछूता नहीं रहा है। कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स इसके पर्याय हैं। खेल के मैदानों में भी अब वे मर्दों के दाँत कट्टे करने को तैयार खड़े हैं। पी.टी. उषा, सानिया मिर्जा, मेरी कॉम इत्यादि आज किसी भी पहचान के लिए मोहताज नहीं हैं। राजनीति जगत की बात की जाये तो इंदिरा गाँधी, सोनिया गाँधी, हिलेरी क्लिंटन, बनर्जी बुट्टों, ममता बनर्जी, सुषमा स्वराज को कौन नहीं पहचानता है। किरण बेदी भारत की पहली महिला आई.पी.एस. अफसर है। औधोगिक जगत की बात करे तो पेप्सिको कंपनी की सीईओ इंदिरा नूरी एक जीवंत उदाहरण है।

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इस बाबत एक दोहा कहना चाहूँगा,
नर-नारी सबहू एक समान, नाहीं फरक कोई,
अंखियन का बस फेर भई, नाहीं हरज कोई।।
इतनी कामयाबी के बावजूद समाज में कुछ ऐसे तत्व मौजूद हैं जो महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकने की बरकस कोशिश करते रहे हैं। कभी ये तत्व स्वयं माता-पिता के रूप में, तो कभी ये पति-भाई, अन्य नाते-रिश्तेदार अथवा आस-पड़ोस के लोगों के रूप में सामने प्रस्तुत हो जाते हैं। कुछ मामलों में तो खुद एक महिला ही दूसरी महिला की तरक्की की राह में रोड़ा बनी नजर आती है। वहीं दूसरी ओर हमारा समाज, धर्म के ठेकेदार भी समय-समय पर कोशिश करते आ रहे हैं की वो नारियों को सामाजिक बन्धनों में जकड़कर घर की चार दिवार रूपी पिंजरे में कैद कर सके। शायद ये मर्दों के मन का वहम या कोई डर ही है की कहीं अगर ये नारियां मर्दों से आगे निकल गयी तो फिर सदियों से चले आ रहे धकियानुसी रीति-रिवाजों का पालन कौन करेगा। समाज का एक बहुत बड़ा तबका आज भी औरत को बच्चे पैदा करने वाली मशीन अथवा घर की रखवाली करने वाली अथवा एक नौकरानी ही समझते हैं।
लोग अपनी आँखों पर से अज्ञानता रूपी अदृश्य पट्टी को हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। बात तब और अधिक पेचीदा हो जाती है जब पढ़ें-लिखें तबके के लोग भी ऐसी सोच रखते हैं। वे अपने किताबी ज्ञान को ही संपूर्ण ज्ञान समझने लगे हैं इसलिए कुएँ के मेंढ़क की भांति इसे सहेज कर रखने में गौरव का अनुभव करते हैं।
समाज को अपनी सोच बदलनी होगी अन्यता जल्द ही ये दुनिया अंत के समीप होगी। नारी को अबला समझने की भूल यह समाज पहले से करता आ रहा है जिसे अब सुधारने की आवश्यकता है। नारी अबला नहीं अपितु प्रेम, त्याग, मातृत्व और धैर्य की वह गंगा है जिसे लांघना किसी के बस में नहीं। नारी के इन्हीं गुणों के कारण उन्हें कमजोर समझने की भूल करना सबसे बड़ी बेवकूफी होगी। नारी शक्ति का ही दूसरा रूप है और हमें सदैव इस बात को याद रखने की आवश्यकता है।

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अगर महिलाएँ ज्ञान अर्जित करती हैं तो न केवल उनमें आत्मविश्वास बढेगा अपितु आड़े वक्त पर परिवार को उबार  भी पायेगी। जहाँ एक ओर महिलाओं के घर से बाहर जाकर काम करने से परिवार का  आर्थिक माहौल सुधरेगा वहीं दूसरी ओर समाज में सम्मान के पात्र भी बनेंगे। जिस प्रकार एक साईकिल के दोनों पहियों की मजबूती और संतुलन साईकिल सवार को उसकी मंजिल तक पहुँचाने की बात तय करती है ठीक उसी प्रकार एक परिवार की उन्नति उस घर की महिला और पुरुष का परस्पर सूझ-बूझ तय करता है। इसलिए परिवार की खुशहाली के लिए महिलाओं का शसक्त होना अनिवार्य है।
नारियाँ अब अबला नहीं अपितु सबला बन गयी है। यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि अब ये उन लोगों के लिए बला बन गई हैं जो इन्हें अबला समझ कर ओछी नजर से देखते हैं और उन्हें अपने पैरों की जूती समझने की भूल कर बैठते हैं।
हमारा प्राचीन इतिहास और आधुनिक काल हमें विश्वास दिलाता है कि राष्ट्र, धर्म और परिवार के गौरव को बचाना है तो शक्ति (नारी) की आराधना करनी ही होगी। उम्मीद करते हैं कि लोगों को भी जल्द ही यह बात समझ में आ जाये। आखिर उम्मीद का ही तो दूसरा नाम जिंदगी है।

प्रमुख भारतीय नारियां:-
अग्रणी महिलाएं
  • प्रथम महिला लडाकू -- आरती वर्मा
  • प्रथम महिला आई.ए.एस. -- अन्ना जार्ज
  • प्रथम महिला आई.पी.एस. –- किरण बेदी
  • प्रथम महिला प्रधानमंत्री –- इंदिरा गाँधी
  • प्रथम महिला राष्ट्रपति –- प्रतिभा पाटिल
  • प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता –- मदर टेरेसा
  • ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने वाली प्रथम महिला -- अन्नपूर्णा देवी
  • नौका से पूरे विश्व का चक्कर लगाने वाली भारतीय महिला -- उज्ज्वला पाटिल
  • प्रथम भारतीय महिला सर्जन -- डॉ॰ प्रेमा मुखर्जी
  • ओलम्पिक खेल में भाग लेने वाली प्रथम भारतीय महिला खिलाड़ी -- मेरी लीला रो
  • एवरेस्ट पर दो बार पहुंचने वाली प्रथम महिला -- सन्तोष यादव
  • भारतीय वायु सेना की पहली महिला पायलट -- हरिता कौर देयोल
  • भारत की पहली महिला मुख्य चुनाव आयुक्त -- वी.एस. रमा देवी
  • सबसे अधिक समय तक अन्तरिक्ष में रहने वाली महिला -- शैतोन लुसिड
  • हिन्दू पदपातशाही के संस्थापक छत्रपति शिवाजी की मां -- जीजाबाई
अन्य
  • रानी लक्ष्मीबाई
  • लता मंगेश्कर
  • कल्पना चावला
  • सानिया मिर्ज़ा
  • सानिया नेहवाल
  • कोनेरू हम्पी इत्यादि।

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