विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

बुधवार, 27 मई 2015

पहले झाँको फिर परखो



फिलहाल मैं हैदराबाद में रहता हूँ और गर्मियों में जब कभी भी मौका मिलता है अपने गाँव हो आता हूँ. गाँव में हमारे पुरखों की जमीन है जिसमें हम खेती-बाड़ी करते हैं. हमारे खेत में कटहल के कुछ पेड़ भी हैं. पिछले साल गाँव से हैदराबाद लौटते वक्त हमारे बढ़े भैया ने एक पके कटहल को बोरी में लपेटकर हमें दिया.

पेड़ की शाख से सटे रहने की वजह से उस कटहल में एक निशान (खरोंच) लग गया था जो देखने में बदसूरत दिख रहा था. हमने सोचा की शायद कटहल खराब हो गया है. हमने सोचा की आखिर खराब कटहल को इतनी दूर ढोकर लाने का क्या फायदा. परन्तु भैया से कहने का साहस नहीं हुआ.
हैदराबाद आने के पश्चात जब हमने कटहल को छीलना शुरु किया तो आश्चर्य की सीमा न रही. एक भी फलक खराब न था. हर एक फलक मीठा था. जिस जगह दाग लगा था वहां का फलक भी मीठा था.

इस साल भी गाँव से हैदराबाद लौटते समय भैया ने पहले की भांति एक पके कटहल को बोरी में लपेटकर हमें ले जाने को दिया. इस बार कटहल में कोई खरोंच नहीं था. हैदराबाद आने के पश्चात जब हमने कटहल को छीलना शुरु किया तो एक बार फिर आश्चर्य की सीमा न रही. इस बार कटहल के अन्दर के फलक कुछ खराब हो गए थे जो खाने लायक नहीं थे.

दोस्तों ठीक इसी प्रकार हम अपने जीवन में हर चीज की परख करते हैं फिर चाहे वो मित्र हो या कोई वस्तु. आश्चर्य नहीं की इनकी परख हम केवल इनकी बाहरी सजावट अथवा खूबसूरती के आधार पर करते हैं. ठीक कटहल की तरह इसके भीतरी खूबसूरती और अच्छेपन की अनदेखी कर देते हैं.
भारत जैसे देश में जहाँ एक ओर महिलाओं की पूजा होती हैं वहीं दूसरी ओर बहू के रूप में चुनाव के वक्त उस बेटी के घर की दशा, आर्थिक स्थिति का व्योरा नजदीक से इकठ्ठा करते हैं परन्तु चारित्रिक दशा का ज्ञान दूसरों की जबानी इकट्ठा करते हैं.

एक ज्ञानी व्यक्ति की निशानी होती है की वह किसी की भी परख केवल बाहरी बनावट के आधार पर न कर उसकी  गहराई को नजदीक से मापता है और अपने ज्ञान की रोशनी में छानकर उसके चरित्र की बारीकियों का अध्ययन करने के पश्चात ही कोई टिप्पड़ी करता है.

दूर से हर वस्तु आकर्षक जान पड़ता है. नजदीक आने पर ही हमें उस वस्तु पर चढ़े अतिरिक्त रंग का भान होता है. ठीक उसी प्रकार किसी व्यक्ति की परख उसके नजदीक रह कर किया जा सकता है.

इसलिए मेरा मानना है, “पहले झाँको फिर परखो”.


अगर आपको यह article पसंद आये तो इसे आप अपने मित्रों के साथ facebook अथवा twitter पर share कीजिये. यह आपका हमारे कार्य के प्रति प्रोत्साहन होगा.

धन्यवाद् ... ... !!!
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें