विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

चाणक्य की प्रकृति सीख in Hindi


आचार्य चाणक्य
दोस्तों अपनी पहली पोस्ट के शीर्षक के विषय में बहुत विचार किया तो पाया की ब्लॉग के नाम "ज्ञानदर्शनम” को चरितार्थ करने हेतु क्यों न इतिहास के महान आचार्य चाणक्य के सागर रूपी ज्ञान से एक बूँद चुरा कर अपनी प्यास बुझा लूँ।

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आचार्य चाणक्य का मानना है की प्रकृति हमें रोज नया सबक सिखाती है जरुरत है तो बस एक अभिलाषी छात्र बनने की। दोस्तों अक्सर हम अज्ञानवश आपसी वार्तालाप में एक दूसरे के उपहास, क्रोध, घृणा व सम्मान अथवा प्रशंसा के लिये विभिन्न प्राणियों के गुणों को जाने बगैर उनके नामों का प्रयोग करते आये हैं। एक ओर जहां हम अपनी छोटी सोच के चलते इन जीवों के गुणों की पहचान करने में असमर्थ हैं वहीं दूसरी और आचार्य की माने तो “मनुष्य को शेर से एक, बगुले से एक, मुर्गे से चार, कौवे से पाँच और गधे से तीन गुण ग्रहण करना चाहिए।”

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शेर से सीख: जीवन में कोई भी कार्य चाहे वो बड़ा हो या फिर छोटा, उसे संपन्न करने के लिए अपनी पूरी शक्ति को लगा देना चाहिए।
बगुले से सीख: अपनी इंद्रियों को अपने वश में कर समय और शक्ति को पहचान कर ही अपने सारे कार्य सिद्ध कर लेना चाहिए।

मुर्गे से सीख: सही समय पर जागना, युद्ध के लिये हमेशा तत्पर रहना, बंधुजनों को अपना हिस्सा देना और आक्रामक होकर भोजन करना चाहिए।



कौवे से सीख: छिपकर प्रेमालाप करना, दृणता दिखाना, समयानुसार कार्य पूर्ति करना, सदा खतरों से दूर होकर जागरुक रहना तथा किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

कुत्ते से सीख: अधिक खाने की शक्ति रखना, न मिलने पर भी संतुष्ट हो जाना, खूब सोना पर तनिक आहट पर जाग जाना, स्वामीभक्ति और अदम्य साहस चाहिए।

गधे से सीख: काफी थक जाने पर भी भार को उठाना, समय की परवाह नहीं करना और सदा शांतिपूर्ण जीवन बिताना चाहिए।
उपर्युक्त ज्ञानवर्धक बातों से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है की चाणक्य की सोच हर युग की माँग हैं. उनका ज्ञान हर युग (भुत, वर्तमान और भविष्य) में लोगों का मार्गदर्शन करता आ रहा है। तो इसी बात पर मेरे संग बोलिए, “आचार्य चाणक्य की – जय……।”


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