दोस्तों, वह व्यक्ति जो अपनी बुद्धि का प्रयोग मुश्किल, चुनौतिपूर्ण तथा प्रतिकूल
परिस्थितियों में अपना नियन्त्रण खोए बिना करता है वह ज्ञानी होता है. आज हम ऐसी
ही परिस्थितियों से जूझते तेनाली रामकृष्ण की एक सच्ची घटना आपलोगों से Share करना
चाहेंगे.
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एक बार काशी से एक सुप्रसिद्ध विद्वान अपने शिष्यों सहित पूरे उत्तर भारत में भ्रमण कर वहाँ के प्रसिद्ध विद्वानों को वेद, उपनिषद् एवं शास्त्रों से संबंधित विषयों पर वाद-विवाद (Debates) प्रतियोगिता में परास्त करते हुए दक्षिण भारत के प्रसिद्ध विजयनगर राज्य में पधारे.
विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय ने विशेष अथिति के रूप
में उनका राजदरबार में स्वागत किया.
राजदरबार में पहुँचते ही काशी विद्वान ने राजा से
कहा, “महाराज, मैंने सुना है कि आपके दरबार में कहीं नामी विद्वान हैं. मैं उन
सबको वाद-विवाद प्रतियोगिता में चुनौती देता हूँ. अगर मैं परास्त होता हूँ तो मैं
अपनी सारी उपाधियां विजेता को समर्पित कर दूंगा. अगर वे सब हार जाते हैं तो लिखित
रूप में उन्हें मुझे अपना गुरु स्वीकार करना होगा.”
कृष्णदेवराय ने काशी विद्वान से विनम्रतापूर्वक कहा,
“प्रतियोगिता कल होगी” और उन्हें राज-सत्कार के साथ अथितिशाला (Guest house) में
ठहराया.
तत्पश्चात राजा कृष्णदेवराय अपने दरबार के विद्वानों
की ओर दृष्टी कर कहा, “आपमें से कौन इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेना चाहेंगे?”
काशी विद्वान का अति-आत्मविश्वास और ध्वनि की
गंभीरता ने दरबार में मौजूद विद्वानों के मन में पहले ही हलचल पैदा कर दिया था. इसलिए
वे सब सिर झुकाकर शांत मुद्रा में अपनी असहमति जाहिर की.
राजा को आश्चर्य हुआ. गुस्से में कहा, “तो ऐसे
विद्वानों से हमारा दरबार भरा हुआ है” और वे तत्काल दरबार से बाहर चले गए.
तब तेनाली रामकृष्ण ने कहा, “अगर हम महाराज के
सम्मान की रक्षा नहीं कर पाये तो ये हम सबके लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली
बात होगी. मैं इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए तैयार हूँ.”
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तेनाली रामकृष्ण की स्वीकृति सुनकर अन्य विद्वानों
की जैसे जान में जान आयी. तेनाली रामकृष्ण के निर्णय पर राजा कृष्णदेवराय को बड़ा आश्चर्य
हुआ क्योंकि तेनाली रामकृष्ण अब तक एक कवि के रूप में प्रसिद्ध थे.
अगले दिन तेनाली रामकृष्ण पूरे उत्साह और
आत्मविश्वास के साथ राजदरबार में प्रविष्ट होता है. उस वक्त वह कश्मीरी सिल्क की
धोती और कीमती शाल पहन रखा था. उनका पूरा माथा चन्दन और विभूति से दमक रहा था.
उनका गला अनेक कीमती रत्नों से जड़ित मेडलों से ढँक गया था. आगे-आगे दरबार के अन्य
विद्वानगण तेनाली रामकृष्ण की महानता का गुणगान करते हुए चले आ रहे थे और पीछे
तेनाली रामकृष्ण सोने से बनी ईंटो पर चले आ रहे थे जो नौकरों ने उनके लिए पर्श पर
बिछा रखे थे.
इतना सबकुछ देखकर काशी विद्वान का माथा जरा ठनका. मन
में थोड़ी बेचैनी बढ़ी.
तेनाली रामकृष्ण जो अपने हाथ में एक बड़ी सी पुस्तक पकड़े
हुए थे, जो कीमती सिल्क के कपड़े से ढँकी थी को टेबल पर रखा और चारों और देखते हुए
गंभीर मुद्रा में तेज ध्वनि से कहा, “किस विद्वान ने मुझे वाद-विवाद के लिए चुनौती
दी है ?”
तेनाली रामकृष्ण की साही दिखावट ने पहले ही काशी
विद्वान को अचंभित कर दिया था. परन्तु जल्द ही सम्हलकर कहा, “मैंने आपको चुनौती दी
है.”
राजा ने प्रतियोगिता प्रारंभ करने का संकेत दिया.
तेनाली रामकृष्ण ने अपनी ऊँगली को टेबल के ऊपर रखी
पुस्तक की ओर इशारा कर कहा, “चलिए हम इस पुस्तक से संबंधित विषयों पर वाद-विवाद
करते हैं. इस पुस्तक का शीर्षक (Title) है तिलकश्तामहिशाबंधना.”
पुस्तक का नाम सुनते ही काशी विद्वान के जैसे होश उड़
गए. उसने अपने जीवन में अनगिनत पुस्तकें पढ़ी थी परन्तु इस पुस्तक की उन्हें कोई
जानकारी नहीं थी.
काशी के विद्वान ने राजा से कहा, “महाराज, इस पुस्तक
को पढ़े काफी समय गुजर चुका है. इसलिए आज रात मैं इसे पढ़कर कल दरबार में वाद-विवाद
के लिए आज्ञा चाहता हूँ.”
पूरी रात काशी विद्वान ने उस पुस्तक के बारे में
सोचने में गुजार दी परन्तु कोई हल नहीं मिला. तिलकश्तामहिशाबंधना उनके लिए अभी
भी एक पहेली ही थी. इसलिए, कहीं वह कल दरबार में हार न जाये इसी भय और आशंका से
अपना सारा सामान समेटकर सुबह होने से पूर्व ही भाग खड़ा हुआ.
अगले दिन ये खबर सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ और
साथ ही प्रसन्नता भी. राजा ने तेनाली रामकृष्ण से पूछा, “जिस पुस्तक का केवल नाम
मात्र सुनकर काशी विद्वान मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ वह जरुर विशेष होगा.”
तेनाली रामकृष्ण (राजा से) – महाराज, ये कोई विशेष
पुस्तक नहीं है. ‘तिला’ का अर्थ है ‘शीशम’, ‘कस्ता’ का अर्थ है ‘लकड़ी’, ‘महिशा’ का
अर्थ है ‘भैस’ और ‘बंधन’ का अर्थ है ‘रस्सी’. मैंने इन सबको जोड़कर तिलकश्तामहिशाबंधना
कहा था.
तेनाली रामकृष्ण की बातें सुनकर राजा कृष्णदेवराय अपनी हँसी रोक नहीं पाए. उसने तेनाली रामकृष्ण की प्रशंसा की और उन्हें पुरस्कार दिया.
तेनाली रामकृष्ण की बातें सुनकर राजा कृष्णदेवराय अपनी हँसी रोक नहीं पाए. उसने तेनाली रामकृष्ण की प्रशंसा की और उन्हें पुरस्कार दिया.
दोस्तों ऐसा ही एक प्रसंग हमने आमिर के थ्री-इडियट
मूवी में देखा था जहाँ आमिर ने अपने दोस्तों के नामों को जोड़कर एक शब्द बनाकर
छात्रों से उसका अर्थ बताने को कहते हैं.
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THANKS… …
hi
जवाब देंहटाएंsir,
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जवाब देंहटाएंYou can also check - Biography of Tenali Ramakrishna