
एक
दिन व्यापारी अपनी अमीरी से परिचित कराने के उद्देश्य से अपने बेटे को लेकर राज्य
की परिक्रमा पर निकला. उन्होंने एक अत्यंत गरीब किसान के घर पर कुछ रोज गुजारने के
पश्चात वापसी करने की सोची.
वापसी
की यात्रा के दौरान पिता ने अपने बेटे से सवाल किया.
पिता
(गर्व से) – ट्रिप कैसा रहा ?
बेटा
– बहुत बढ़िया रहा.
पिता
– क्या तुमने देखा की वह किसान कितनी गरीबी में दिन गुजर रहा है ?
बेटा
– जी हाँ.
पिता
– और इससे तुम्हें क्या सीख मिली.
बेटा
(सहज भाव से) – हमारी हवेली में एक कुत्ता है जबकि
उनके घर पे पाँच कुत्ते हैं. हमारी हवेली में बगीचे के बीचो-बीच एक छोटा सा तालाब
है जबकि उनके पास अंतहीन नदी है. हमारी हवेली के बगीचे में विदेशों से खरीदी
लालटेन है जबकि उनके पास अनंत तारे हैं. हमारी हवेली का बरामदा कुछ वर्ग तक सीमित
है जबकि सारा जहाँ उनका बरामदा है.
जरूर पढ़ें - 'अपना दीपक स्वयं बनो' - हमें अपनी राह स्वयं खोजनी है।
जरूर पढ़ें - 'अपना दीपक स्वयं बनो' - हमें अपनी राह स्वयं खोजनी है।
बेटा
(आगे कहा) – पिताजी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. अपने मुझे
परिचित कराया कि हम कितने गरीब हैं.
व्यापारी
को अपनी गलती का आभास हुआ.
दोस्तों,
कहीं बार हम घमंड में चूर होकर दूसरों को कम कर आंकने की भूल कर बैठते हैं. दूसरों
के मन और उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाने का हक़ किसी को नहीं है. जीवन के प्रति
हमारा नजरिया हमारी सोच पर निर्भर है. हमारी नजर में जो कीमती है वही अन्य की नजर
में कोयला हो सकता है. जीवन में उन्नति करने की सोच रखने वालों से प्रार्थना है की
वो अपनी सोच को सकारात्मक (पॉजिटिव) बनाये रखें.
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