विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

संशय को अलविदा कहें Say bye to Confusion


आखिर क्या है ये संशय ?
संशय – अंग्रेजी में जिसे हम “कनफ्यूजन” कहते हैं, वास्तव में एक मानसिक दशा है. यह ऐसी दुविधा है जो किसी की भी विचारशीलता (सोचने की क्षमता) और कार्यशीलता (काम करने की क्षमता) को नष्ट कर सकता है. यह हमारी निराशावादी सोच का ही एक परिणाम मात्र है.

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कई सारे विकल्पों की मौजूदगी संशय को जन्म देती है. किसी भी कार्य की शुरुआत से पूर्व इस दुविधा में पड जाना की मैं इस कार्य को करूँ या नहीं, फलाना काम में सफलता मिलेगी या नहीं, आज करूँ कि कल, किसी बात को बताऊँ या छुपाऊँ इत्यादी – संशय का प्रतीक है. कहीं बार संशय के वंशिभूत हम गलत निर्णय ले बैठते है और बाद में पछताते हैं.

संशय का कारण और समाधान:
संशय का मूल कारक हैं - भय और आवेश. आत्मविश्वास की कमी भी संशय को बढावा देती है. यह एक प्रकार की अस्थायी अवस्था है जिसका समाधान उपस्थित है. संशय का एकमात्र समाधान है कि हम अपनी अज्ञानता रूपी परदे को भेद दे. भोर के वक्त सूरज की रोशनी फैलने पर जिस प्रकार अंधियारा दूर हो जाता है और हमें सबकुछ स्पष्ट नजर आने लगता है, ठीक उसी प्रकार ज्ञान रूपी दीये की रोशनी मन से भय और संशय को समाप्त कर हमारा मार्गदर्शन करता है.

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गीता में श्रीकृष्ण ने कहा था – “संशयात्मा विनश्यति” अर्थात “संशय करने वालों का नाश निश्चय है.” संशय करने वाला कभी उन्नति नहीं कर पाता हैं. वह स्वयं अपना ही शत्रु बन बैठता है और साथ ही साथ अपने आस-पास चारों ओर निराशावादी माहौल तैयार कर देता है.

कुरुक्षेत्र के मैदान में जब अर्जुन ने देखा की जिनसे उन्हें युद्ध लड़ना है वे कोई पराये नहीं अपितु उनके अपने ही लोग हैं. तब उन्हें लगा की इनसे युद्ध करने पर अपने पूर्वजों का ही अपमान होगा. वे संशय में पड़ गए. सोचने लगे, “अगर युद्ध करता हूँ तो अपनों के रक्त से हाथ धोने पड़ेंगे वहीँ अगर युद्ध न करूँ तो एक नारी (द्रौपदी) के अपमान का दंड कैसे दिया जाये.” अर्जुन को जब कोई रास्ता न सूझा तो वे श्रीकृष्ण की शरण में चले गए. श्रीकृष्ण ने गीता रूपी ज्ञान का दीपक जलाकर अर्जुन के मन से संशय रूपी अंधकार का नाश कर उनका मार्गदर्शन किया.

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दोस्तों, हम अपने रोजमर्रा के जीवन में अक्सर देखते है की किस प्रकार संशय में पड़कर एक व्यक्ति अपना सुध-बुध खो बैठता है और शुभ अवसर का लाभ नहीं उठा पाता है. संशय में पड़कर लोग कहीं बार अपना सब कुछ गवां बैठते हैं. कहीं बार वे आक्रमक हो जाते हैं. ठीक इसके विपरीत कुछ ऐसे भी लोग हमें देखने को मिले हैं जिन्होंने खुद के विश्वास को बल दिया और फिर जीवन के कुरुक्षेत्र में निसंकोच कदम आगे बढ़ाया. कहने की आवश्यकता नहीं की ऐसे लोग ही अपनी मंजिल को पाने का दम रखते हैं और सफलता बाहँ फैलाये इनका स्वागत करता है.

दोस्तों, हम सब की कोशिश रहनी चाहिए की संशय से दूरी को सदा बनाये रखे, इसे अपने आस-पास भी पैर पसारने का मौका न मिले.




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