विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

प्रसन्नता Happiness

मानव जन्म को श्रेष्ट कहा गया है, तो क्या इस जीवन को व्यर्थ के दुखों से घेर लेना न्यायसंगत होगा, नहीं न ? जी हाँ, आज का दर्शन शास्त्र भी इसी ओर इशारा करता है कि प्रसन्नता को अपनाकर ही जीवन को सुखी बनाया जा सकता है. हमें उन सारे कारकों का त्याग कर देना चाहिए जो हमारे प्रसन्नता के मार्ग में बाधक हैं.

प्राचीन कल में लोग भूत और भविष्य के भंवर में फसें रहते थे. परन्तु आज का युग ऐसे लोगों से भरा पड़ा है जो कल की चिंता न कर आज की सोचते है, आज में जीते हैं और आज को समर्पित हैं. जो व्यक्ति बीते हुए कल अथवा आने वाले कल की चिंता करता है वह अपने वर्तमान के साथ न्याय नहीं कर सकता. उसका वर्तमान भी प्रसन्नता से वंचित हो जाता है.

एक शोध से सामने आया है की संसार के अधिकतर लोग जाने-अनजाने गलत राह अथवा गलत निर्णय को अपनाकर प्रसन्नता प्राप्त करना चाहते है. ये गलत धारणा है जो आज की भागती जीवन सैली की सोच बनता जा रहा है. उनका विचार है की वो पैसों से सबकुछ खरीद सकते है, प्रसन्नता को भी. वे स्वार्थपूर्ति को ही प्रसन्नता प्राप्ति का मार्ग समझने की भूल कर बैठता है. वे इस बात से अनभिज्ञ होते हैं की औरों की खुशी के लिए किया गया कार्य मन को कितना प्रसन्न रखता है, फिर चाहे कार्य छोटा हो अथवा बड़ा. वे भूल जाते हैं की पैसा जीने का एक साधन है नाकि जीवन. जीवन वही श्रेष्ट है जो प्रसन्नता से परिपूर्ण हो.

एक पहाड़ी पर खड़े होकर अगर आप तेज ध्वनि से कुछ कहते हैं तो वही स्वर कुछ पलों के पश्चात वापस हमारे कानों में दुबारा सुनाई पड़ता है ठीक उसी प्रकार जीवन में उदास रहने पर दुःख और प्रसन्न रहने पर खुशी प्राप्त होता है. प्रसन्नता किसी की जागीर नहीं है और न ही कोई इसे संचित कर सकता है. इसे आप जितना औरों पर लुटाएँगे उतना ही ये अधिक होकर आपके पास वापस लौटेगा. अमेरिका के महान राष्ट्रपति, अब्राहम लिंकन का मानना था, “साधारण रूप से लोग उतनी ही प्रसन्नता हासिल करता है, जितना वह कृत संकल्प होता है.”

अगर हम शांत चित से विचार करें तो पाएंगे की जीवन में दुःख, कष्ट, निराशा, संघर्ष इत्यादी मनुष्य को और अधिक मजबूत एवं संयमी बनाता है. गाँधीजी ने देश की आजादी की खातिर कितने ही कष्ट झेले परन्तु चेहरे पर से प्रसन्नता को गायब न होने दिया. महाराणा प्रताप ने राष्ट्र की मर्यादा की लाज रखते हुए जंगल-जंगल भटकते रहे, घास की रोटियां खायी परन्तु दुःख एवं निराशा को पास भटकने न दिया. मानसिक और शारीरिक रूप से प्रसन्न व्यक्ति के लिए उसका परिवार, मित्र, समाज, देश और संसार सभी स्वर्ग समान सुख देता है. वहीँ दुखी व्यक्ति के लिए उसका हितैषी भी दुश्मन जान पड़ता है.

उचित दिशा में विचार कर कार्य करने अथवा दूसरों की सेवा करने से प्रसन्नता प्राप्त होती है. उच्च-विचार, ईमानदारी एवं परिश्रम से किया गया कार्य प्रसन्नता प्राप्ति का साधन है. प्रसन्नता को ‘आत्मा का आहार’ भी कहा गया है. इसलिए, अधिक से अधिक प्रसन्न रहने की कशिश करें. एक प्रसन्न चित वाला व्यक्ति अपने आस-पास के माहौल को भी खुशनुमा बना देता है. उनके चेहरे से प्रकाश की आभा फूटती सी महसूस होती है. जो कोई ऐसे व्यक्ति की संपर्क में आता है वह भी थोड़े पलों के लिए ही सही अपने ग़मों को भूल जाता है. ऐसा व्यक्ति किसी भी कार्य को पूर्ण करने की योग्यता रखता है. वह लोगों के आकर्षण का केंद्र बन जाता है.

दिनचर्या के छोटे-छोटे से कार्यों से आपको प्रसन्नता प्राप्त हो सकती है. जरुरत है तो बस उसे खोजकर अपनाने की. कहीं बार हम बड़ी सी खुशी के लिए छोटी-छोटी कहीं खुशियों को नजरअंदाज कर देते हैं और बाद में उम्र गुजर जाने पर उन बातों को सोचकर फिर से दुखी हो जाते हैं. प्रसन्नता से मत भागिए वरना वह हमसे दूर चली जाएगी.

आधुनिक चिकित्सा पद्धति में हँसी को इलाज का एक हिस्सा माना गया है. स्वेट मार्डेन ने प्रसन्नता तो सुखमय जीवन का आधार कहा है. 
एक बार एक व्यक्ति महात्मा बुद्ध से कहता है, “मुझे खुशियाँ चाहिए”. जवाब में बुद्ध कहते है कि पहले “मुझे” को दूर करें क्योंकि यह अहं है, उसके पश्चात् “चाहिए” को दूर करें क्योंकि यह इच्छा है, अंत में “खुशियाँ” शेष रह जाएगी.


गौतम बुद्ध ने प्रसन्नता को जीवन में महत्व दिया है. उनके अनुसार प्रसन्नता को प्राप्त करने का कोई मार्ग नहीं है; प्रसन्नता स्वंय एक मार्ग है.



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