विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

शनिवार, 12 मार्च 2016

उचित उपयोग The BEST USE

बहुत समय पहले की बात है। दक्षिण भारत में सिंहम राज्य था जिसका राजा बड़ा ही दयालु और दानी था। जब भी समय मिलता वह अपनी प्रजा के बीच उनका हाल-चाल जानने पहुँच जाते और आवश्यकतानुसार दान-पुण्य भी करते थे। प्रजा भी उनके राज्य में खुश रहती थी। स्वाभाविक है "यथा राजा तथा प्रजा"।

सर्दी का मौसम भी नजदीक था इसलिए हमेशा की तरह राज्य में घोषणा हुई कि कल महाराज स्वंय प्रत्येक जरूरतमंद को दो-दो कम्बल बाँटेंगे।

अगले दिन महल के द्वार पर जरूरतमंदों की लंबी कतारें लग गयी।

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महाराज प्रसन्नतापूर्वक जरूरतमंदों को दो-दो कम्बल बाँटने लगे। एक-एक कर लोग आगे आकर दो-दो कम्बल लेकर राजा की जय-जयकार करते अपने घर लौट रहे थे। पँक्ति के अंत में एक निर्धन किसान खड़ा था। राजा ने जब उस किसान की ओर कम्बल बढ़ाया तो वह विनम्रता पूर्वक आग्रह किया - महाराज, मुझे केवल एक कम्बल चाहिए।

राजा (किसान से) - क्यों ?

किसान - मेरे लिए एक कम्बल पर्याप्त है महाराज।

राजा - अच्छी बात है। वैसे तुम्हारा नाम क्या है ?

किसान - महाराज, सेवक को किशन कहते हैं।

राजा ने किसान के अनुग्रह को स्वीकृति देते हुए अपने मंत्री से उस किसान की दिनचर्या का पता लगाने का आदेश देते हैं।

अगले दो दिन पूरी जानकारी इकठ्ठा कर मंत्री राजा के पास आता है।

मंत्री - महाराज की जय हो।

राजा - बताइये मंत्रिवर, क्या खबर लाये हैं ?

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मंत्री - महाराज आपके आदेशानुसार मैंने उस निर्धन किसान किशन की पूरी जाँच-पड़ताल की तो पता चला कि वह एक मेहनती एवं ईमानदार ही नहीं अपितु नेक एवं सज्जन व्यक्ति भी है।

राजा - ये तो अच्छी बात है मंत्रिवर।

मंत्री - महाराज इसके अलावा भी एक खास गुण का धनी है किशन।

राजा - किस गुण की बात कर रहे हैं आप ?

मंत्री - साधनों का उचित उपयोग।

राजा - वो कैसे मंत्रिवर ?

मंत्री - महाराज किशन के पास जो कम्बल था वह काफी पुराना था एवं कहीं-कहीं से फट चुका था। इसलिए उन्होंने आपसे केवल एक कम्बल लिया।

राजा - ये तो अच्छी बात है मंत्रिवर परंतु इससे किशन के चरित्र की जिस विशेषता का आप वर्णन कर रहे हैं वो पूर्ण रूप से स्पष्ठ नहीं होता।

मंत्री - महाराज, किशन अब अपने पुराने कम्बल को बिछौने के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।

राजा - तो फिर उसके पुराने बिछौने का क्या हुआ ?

मंत्री - महाराज, किशन उसका इस्तेमाल दरवाजे पर पर्दे के रूप में कर रहा है।

राजा - उसने पुराने पर्दे का क्या किया ?

मंत्री - महाराज, किशन पर्दे के चार हिस्से कर प्रत्येक का इस्तेमाल गमछे के रूप में कर रहा है।

राजा - उसने पुराने गमछे का क्या किया ?

मंत्री - महाराज उसका इस्तेमाल पोछा के रूप में हो रहा है।

राजा - उसने पुराने पोछे का क्या किया ?

मंत्री - महाराज, चूँकि पोछा काफी पुराना और जर्जर हो चुका था इसलिए किशन ने उसके छोटे-छोटे टुकड़े कर उसके धागों को अलग-अलग कर बातियाँ बना दी है और हर रात इन्हीं बातियों का दीये में इस्तेमाल करता है।

राजा - अद्भुत, मंत्रिवर कल आप स्वंय जाकर आदरपूर्वक किशन को दरबार में प्रस्तुत होने का न्योता दे।

आदेशानुसार किशन अगले दिन दरबार में हाजिर होते ही राजा को झुककर प्रणाम करता है।

किशन (थोड़ा घबराते हुए) - महाराज की जय हो। महाराज इस सेवक से अनजाने में कोई भूल हो गयी हो तो उसके लिए क्षमा चाहता हूँ।

राजा (मुस्कुराते हुए) - किशन तुम किसे अपना आदर्श मानते हो ?

किशन - महाराज, मैं महात्मा बुध्द को अपना आदर्श मानता हूँ और उनके दिखाए पथ पर चलने की पूर्णतः कोशिश करता रहता हूँ।

राजा - बहुत खूब। किशन, तुम राज्य के एक जिम्मेदार नागरिक हो जिसे राज्य में उपलब्ध संसाधनों का उचित उपयोग पता है। जब तुमने ईमानदारी से केवल एक कम्बल लेने की अनुमति मांगी तभी तुम्हारे बारे में हमारी जिज्ञासा बढ़ी और मंत्रीवर के सहयोग से इस राज्य को आपके रूप में नया वित्तमन्त्री प्राप्त हुआ।

दोस्तों, किस्मत कब बदल जाये ये कोई नहीं जानता। परंतु एक अच्छी सोच और व्यवहार हमारे हाथों में है जिसका उचित संतुलन आवश्यक है।

दोस्तों, जैसा की गाँधी जी ने कहा था कि इस धरती पर सबकी आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए संसाधन मौजूद हैं  परंतु एक लालची के लिए ये धरती भी कम है।

दोस्तों, आज जिस तेजी से दुनिया में हमारी जनसंख्या बढ़ रही है वह चिंता का विषय है। चूँकि संसाधन की मात्रा सीमित है इसलिए इसका उचित उपयोग हो इस पर हम सबका ध्यान आवश्यक है अन्यता हमारी आने वाली पीढ़ियाँ हमें दुत्कारेंगी।

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धन्यवाद।

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