विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

शनिवार, 19 मार्च 2016

समस्या में निहित समाधान Solution in Problem






राक्षसराज हिरणकश्यप ने ब्रह्मदेव को प्रसन्न करने हेतु कहीं दिनों तक घोर तपस्या की। ब्रह्मदेव इस तपस्या से प्रसन्न होकर हिरणकश्यप को वर माँगने को कहते हैं।

हिरणकश्यप (ब्रह्मदेव से) - भगवन् , यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे अमरत्व का वरदान दे।

ब्रह्मदेव - वत्स् हिरणकश्यप, यह दुनिया नश्वर है। यहाँ कोई साश्वत नहीं इसलिए मैं तुम्हें यह वरदान तो नहीं दे सकता परंतु वत्स् तुम ऐसा वरदान जरूर माँग सकते हो जिससे तुम्हारी मृत्यु असंभव हो जाये।

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हिरणकश्यप (थोड़ी देर सोचकर) - भगवन् , यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न है तो आप मुझे ऐसा वर दे कि मेरी मृत्यु न ही किसी इंसान के हाथों हो और न ही किसी जानवर के, न ही आपके (ब्रह्मा) द्वारा जन्मे किसी भी प्राणी से और न ही स्वयं आप (ब्रह्मा) के हाथों, न किसी भगवान से और न ही धरती पर जन्मे किसी जीव से, न दिन में मेरी मृत्यु हो और न रात में, न अंदर और न बाहर, न धरती पर और न ही आकाश में और न ही किसी अस्त्र अथवा शस्त्र से मेरी मृत्यु हो।

तथास्तु कहकर ब्रह्मदेव अदृश्य हो जाते हैं।

इधर वरदान मिलने के पश्चात् हिरणकश्यप पहले से अधिक अत्याचारी बन गया। उसके मन से मृत्यु का भय समाप्त हो चुका था। वह भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानते थे, इसलिय जो कोई भगवान विष्णु की पूजा करता, वह उसे दंड देता। उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को जो विष्णुभक्त था, उसे मारने का प्रयत्न कहीं बार किया परंतु असफल रहा। वहीँ देवलोक भी काँपने लगा। देवराज इंद्र में भी हिरणकश्यप से युद्ध करने का साहस न हुआ।

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अंत में कोई राह न सूझने पर सभी देवतागण भगवान विष्णु के शरण में चले गए। भगवान विष्णु ने आखिरकार हिरणकश्यप को दंड देने का निश्चय किया।

भगवान विष्णु ने हिरणकश्यप के महल के एक स्तम्भ को तोड़ते हुए नरसिम्हा अवतार में प्रकट हुए और हिरणकश्यप का वध किया।

पुरुष (इंसान) और सिंह (जानवर) का मिलाजुला रूप नरसिम्हा अवतार था जिनका जन्म ब्रह्मा द्वारा नहीं हुआ था। नरसिम्हा ने अपनी दोनों जांघों (धरती और आकाश के बीच) पर हिरणकश्यप को लिटाकर महल की चौकट (न बाहर न ही अंदर) पर शाम (दिन और रात के बीच का समय) के वक्त अपने नाखूनों (न अस्त्र और न शस्त्र) से हिरणकश्यप की छाती फाड़ दी और इस संसार को आतंक से मुक्त किया।

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दोस्तों, कहीं बार हमारे जीवन में भी ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है जिनका समाधान बिल्कुल असंभव सा प्रतीत होता है। ऐसा लगता है जैसे वे परिस्थितियाँ हमारे पूरे अस्तित्व को निगल जायेगी। परंतु ये सच नहीं है दोस्तों। एक बार शाँत मन से अगर आप विचार करोगे तो पाओगे की समस्या का हल समस्या में ही कहीं छुपा हुआ है, बस जरुरत है तो धैर्य के साथ उस समस्या को सुलजाने की कोशिश लगातार बिना रुके, बिना थके करते रहना।

दोस्तों, जीवन से बढ़कर कुछ नहीं है। अगर ईश्वर ने हमें यह जीवन दिया है तो फिर उस जीवन को जीने का तरीका भी किसी-न-किसी परिस्थितियों एवं घटनाओं में निहित है जिनसे सीखते हुये आगे बढ़ना चाहिए परंतु कभी हार नहीं माननी चाहिये।

दोस्तों, इस धरती पर जितनी भी समस्याएँ हैं, उनका समाधान भी इसी धरती पर मौजूद है। जरुरत है तो बस उन्हें ढूंढ़ निकालने की।

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धन्यवाद।।।

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