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गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

रविवार, 2 अक्तूबर 2016

लाल बहादुर शास्त्री - अनसुनी बातें

लाल बहादुर शास्त्री

दोस्तों, हर वर्ष 2 अक्टूबर को पूरा देश गाँधी जयंती के रंग में रंग जाता है परंतु इसी दिन भारतमाता का एक और सपूत इस धरती पर आया जिनका नाम है लाल बहादुर शास्त्री (LBS)। वे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के रामनगर में 2 अक्टूबर 1904 को हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद और माता का नाम राम दुलारी था। बचपन में ही पिता की मौत होने से पूरी जिम्मेदारी मां रामदुलारी पर आ गई थी। कुछ दिनों तक मायके में रहने के बाद बेटे लालबहादुर को लेकर रामदुलारी पैतृक आवास रामनगर आ गयी थी। अत्यंत गरीबी में कर्ज लेकर मां ने किसी तरह शास्त्री जी की पढ़ाई करवाई।

दोस्तों, वैसे तो उनकी जीवनी हममें से कईयों ने पढ़ी होगी। इसलिए इस पोस्ट में हम आपलोगों से केवल LBS जी से जुड़े कुछ रोचक जानकारियाँ साझा करना चाहूँगा।

(1) LBS बचपन में काफी नटखट हुआ करते थे। इसलिए उनका नाम नन्हें रखा गया था। उनको तैराकी का बहुत शौक था। बचपन में उन्होंने अपने एक सहपाठी को गंगा में डूबने से बचाया था।

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(2) काशी के रामनगर स्थित अपने पैतृक आवास से जब LBS जी बचपन में पढ़ाई के लिए निकलते थे, तब माथे पर बस्ता और कपड़ा रख कर कई किलोमीटर लंबी गंगा को आसानी से तैरकर पार किया करते थे।

(3) LBS जी अक्सर हरिश्चन्द्र इंटर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान देर से पहुंचा करते थे। इसलिए वे क्लास के बाहर खड़े होकर पूरा नोट्स बना लेते थे।

(4) LBS जी जाति-प्रथा के सख्त खिलाफ थे इसलिए उन्होंने अपने नाम से उपनाम हटा दिया और उसके स्थान पर काशी विद्यापीठ से स्नातक प्राप्ति के बाद 'शास्त्री' उपाधि मिली जिसे उन्होंने अपने नाम के साथ जोड़ दिया। आज भी यह उनके परिवार की पहचान है।

(5) अपने रेलमंत्री कार्यकाल में एक बार काशी आगमन पर जनता को संबोधित करने को निकल रहे थे, तो उनके एक सहयोगी ने उनको टोका कि आपका कुर्ता बगल से थोड़ा फटा है। तब LBS जी ने विनम्रता से जबाब दिया - "गरीब का बेटा हूं। ऐसे रहूंगा तभी गरीब का दर्द समझ सकूंगा।"

(6) एक बार LBS जी रेल में सफर कर रहे थे। उनकी बोगी में AC चल रहा था। उन्होंने अपने PA से AC बंद करने को कहा ताकि यात्रियों का दर्द समझ सके। उन्होंने ही जनरल बोगियों में पहली बार पंखा लगवाया था।

(7) उनके रेलमंत्री कार्यकाल में एक रेल दुर्घटना घटी जिसके लिए उन्होंने स्वंय को नैतिक रूप से जिम्मेदार मानते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। परंतु उनके पास घर-खर्च के लिए पैसे नहीं थे। तब उनके प्रेस एडवाइजर कुलदीप नायर ने उन्हें अखबार में कॉलम लिखने की सलाह दी जिसे उन्होंने मान लिया।

(8) LBS जी जब परिवहन मंत्री थे, तब उन्होंने सबसे पहले महिला कंडक्टरों की नियुक्ति की थी।

(9) अपने पुलिस मिनिस्टर के कार्यकाल में LBS जी ने लाठी चार्ज की जगह पानी के बौछार का इस्तेमाल करने को कहा ताकि जनता को भारी चोट न लगे।

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(10) LBS जी ने ही सबसे पहले परमाणु हथियारों को समुद्र में न छोड़ने की वकालत की थी। उनका मानना था कि इससे जल में रहने वाले हजारों जीव मर जाते हैं और पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता है।

(11) LBS जी के प्रेस एडवाइजर व एक प्रख्यात जॉर्नलिस्ट कुलदीप नायर ने एक रेडियो इंटरव्यू में शास्त्री जी के मृदु स्वाभाव की तारीफ करते हुए कहा था कि जिस दिन उन्हें वेतन मिलता उस दिन वे दोनों साथ-साथ गन्ने का जूस पीने दुकान जाते थे और तब अक्सर वे कहते - "आज जेब भरी हुई है।"

(12) LBS जी अपने वेतन का अधिकांश हिस्सा दान कर देते थे और अपने परिवार की आवश्यकताओं को सिमित आय से चलाते थे। बिजली और सरकार वाहन का सिमित रुप से इस्तेमाल करते थे।

(13) उन्होंने कभी भी सरकारी कर्मचारियों को व्यक्तिगत कार्यों के लिए इस्तेमाल नहीं किया।

(14) LBS जी सभी को 'आप' कहकर संबोधित करते थे फिर चाहे वो जो कोई भी हो।

(15) LBS जी फटे कपड़ों का रुमाल बनवाते थे। थोड़े फटे कुर्तों को कोट के नीचे पहनते थे। पत्नी के पूछने पर कहते - "देश में ऐसे बहुत लोग हैं, जो ऐसे ही गुजारा करते हैं।"

(16) शास्त्री जी किसी भी कार्यक्रम में VVIP की तरह नहीं बल्कि एक आम आदमी की तरह रहना पसंद करते थे। दोपहर के खाने में अक्सर वो रोटी-साग खाया करते थे। कार्यक्रम आयोजक अक्सर तरह-तरह के पकवान उनके लिए बनवाते तो वे उन्हें डांटकर समझाते कि गरीब आदमी भूखा सोये और वे मंत्री बन पकवान का मजा ले, ये शोभा नहीं देता।

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(17) LBD जी को पैदल चलना बहुत पसंद था। जब वह प्रधानमंत्री बनकर पहली बार घर आ रहे थे, तब पुलिस 4 महीने पहले से रिहर्सल कर रही थी। इसमें गलिया बाधक बन रही थीं। इन्हें तोड़ने का फैसला किया गया। जब यह बात शास्त्री जी को मालूम पड़ी तो उन्होंने तत्काल खबर भेजी - "गली को चौड़ा करने के लिए किसी भी मकान को तोड़ा न जाए। मैं पैदल घर जाऊंगा।"

(18) LBS जी सामाजिक कुरीतियों के घोर विरोधी थे। वे दहेज प्रथा के सख्त खिलाफ थे। इसलिए जब विवाह के वक्त उनके ससुराल वालों ने उन्हें दहेज देना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया परंतु काफी अनुरोध करने पर उन्होंने कुछ मीटर खादी का कपडा लेना स्वीकार किया।

(19) हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज में हाईस्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के दौरान LBS जी ने साइंस प्रैक्टिकल में इस्तेमाल होने वाले बिकर को तोड़ दिया था। चपरासी देवीलाल ने उनको देख लिया और उन्हें जोरदार थप्पड़ मारकर लैब से बाहर निकाल दिया। रेलमंत्री बनने के बाद 1954 में एक कार्यक्रम में भाग लेने आए शास्त्री जी जब मंच पर थे, तो देवीलाल उनको देखते ही पीछे हट गए। परंतु शास्त्री जी ने उनहे पहचान लिया, देवीलाल को पहचान गए और मंच पर बुलाकर गले लग गए।

(20) LBS जी अपने बेटे के कॉलेज में दाखिले के लिए अनुरोध पत्र में अपने बारे में 'सरकारी नौकर' लिखा था। उनका बेटा एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज में नाम लिखवाने के लिए घंटो कतार में खड़ा रहा। उनके पिता के व्यवसाय के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया "प्राइम मिनिस्टर ऑफ़ इंडिया"।

(21) उनका मानना था कि गांव समृद्ध होगा, किसान समृद्ध होगा तो देश समृद्ध होगा। ठीक उसी प्रकार सैन्य बल समृद्ध होगा तो देश सुरक्षित होगा। इसलिए उन्होंने जय जवान-जय किसान का नारा दिया।

(22) साहित्यकार नीरजा माधव ने 'भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री' किताब लिखी है। LBS जी अकेले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 1965 में कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के लाहौर में घुसकर पाकिस्तानियों को मुंहतोड़ जबाब दिया था। भारतीय सेना ने लाहौर में घुसकर तिरंगा फहराया था।

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(23) LBS जी कहते थे - "अहिंसा हमारा परम धर्म है। जब कोई हिंसा करता है जिसमें लोगों और देश का अहित हो। बच्चे, पत्नी, माताएं बिलखती हैं, तो ऐसी जगह पर अहिंसा का राग अलापना कायरता है।" एक प्रकार से वे 'क्रांति और शांति' दोनों के दूत थे।

(24) LBS जी ने युद्ध के दौरान देशवासियों से अपील किया कि अन्न संकट के लिए सभी देशवासी सप्ताह में एक दिन का व्रत रखें। उनके कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार व्यक्तित्व की इस पुकार से समस्त देशवासी एकजुट हुए और सभी ने सोमवार को व्रत रखना प्रारम्भ कर दिया था। इसके असर से देश में खाद्यान संकट समाप्त हुआ था।


(25) LBS जी समझौते के लिए जब तास्कंद गए थे, तो उस समय उनकी पत्नी ललित शास्त्री जी ने अपने मन की बातों को एक पत्र में लिख कर रखी थीं। ताकि जब वो आएंगे तब उनको अपने मनोभाव पढ़ने के लिए देंगी। तास्कंद से 12 जनवरी 1966 को उनका पार्थिव शरीर भारत आया, इसी दिन विजयघाट पर उनकी जलती चिता में उन्होंने वह लेटर इस सोच के साथ डाल दिया- 'अब अपने मन की बात वहीं आकर करूंगी'।

दोस्तों, LBS जी केवल एक प्रधानमंत्री नहीं थे, स्वानुशासन के मूरत थे। "सादा जीवन उच्च विचार" उनके जीवन का ध्येय था।

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