विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

आदत की कमाई Earnings of Habit

आदत की कमाई
बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक गरीब किसान रहता था। उसका नाम था सरबजीत कल्याण। वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एक छोटी सी झोपडी में रहता था। वह काफी परिश्रमी था। जीवन के प्रति सदा आशावान, स्वस्थ एवं उत्साही व्यक्तित्व था। लोगों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करता था। यही बातें वह अपने परिवार के अन्य सदस्यों को भी सिखाता था।

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अपने इन्हीं खूबियों की बदौलत आगे चलकर सरबजीत एक बड़ा एवं प्रसिद्ध व्यापारी बन गया। एक देश से दूसरे देश की यात्रा बढ़ने लगी और समय के साथ-साथ उसका व्यापार भी।

परंतु नसीब से तो जैसे सरबजीत की खुशी देखी नहीं गयी। एक दिन उसके व्यापारिक जहाज पर समुंद्री डाकुओं ने हमला कर दिया जिससे उस जहाज में भीषण आग लग गयी जिससे सारा माल समुन्दर में डूब गया। एक पल में वह खास इंसान से आम इंसान बन गया।
हादसे की खबर सरबजीत की पत्नी को पत्र द्वारा पता चला। पत्र पढ़ते ही वह जैसे पल भर के लिये जड़ सी हो गयी। अचानक जैसे कोई बुरा सपना देखकर वह जागी हो। वह दौड़ती हुई अपने पति के कमरे में गई जहाँ वह अपने व्यापार से जुड़े कुछ नवीनतम विचारों पर अन्य सहयोगी व्यापारियों से विमर्श कर रहे थे।

पत्नी (हाँफते हुए) - अजी सुनते हो, हम बर्बाद हो गए। लक्ष्मी हमसे रुष्ट हो गई है।

सरबजीत (शाँत मुद्रा में) - अरे भाग्यवान, पहले क्या हुआ ये तो बताईए?

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पत्नी - हमारे जहाज पर डाकुओं ने हमला कर आग लगा दिया जिससे वह नष्ट हो गया और सारा माल समुन्दर में डूब गया और इसके साथ आपकी सारी मेहनत भी डूब गई। इतने वर्षो की कमाई पलभर में खाक हो गई। अब हमारी कोई औकात नहीं रही।

वह रोये जा रही थी। सरबजीत अपनी पत्नी के समीप गए। उसे ढाढस बंधाया।

सरबजीत (गंभीरता से) - क्या इस संकट ने हम दोनों को भी एक दूसरे से छीन लिया? क्या इसने मुझे आपसे दूर कर दिया?

पत्नी (एक टक अपने पति की ओर देखकर) - ये कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो आप? मैं तो आपके साथ हूँ और सदैव यूँही आपके साथ रहूँगी।

आखिर क्यों - कछुआ और खरगोश में दोबारा दौड़ हुई?

सरबजीत - क्या हमारी आदतें अब बदल गई है? क्या वो हमसे जुदा हो गए हैं?

पत्नी (आश्चर्य से) - क्या खूब कही आपने। आदतें भी क्या कभी बदलती है? इसे बदलना इतना आसान थोड़े ही है।

सरबजीत (मुस्कुराते हुए) - तब तो हमें लेसमात्र भी चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि हमने केवल वही खोया है जिसे हमने अपने आदतों के बलबूते पर कमाया था। जीवन की सर्वश्रेष्ठ कलाएँ जैसे आशावादिता, उत्साह, स्वास्थ्य, स्वाध्याय, परिश्रम और प्रेम अब भी हमारे पास ही है। इसके बलबूते हम दोबारा अपने व्यापार को पहले से और अधिक प्रगति की ओर ले जायेंगे। बस जरुरत है तो थोड़े धैर्य की।
दोस्तों, कुछ ही वर्षों के अथक परिश्रम से व्यापारी सरबजीत कल्याण ने दोबारा अपना व्यापारिक साम्राज्य स्थापित कर लिया।
सरबजीत व्यापारी से उनकी सफलता का राज पूछे जाने पर उन्होंने कहा - मैं सदा आशावान रहता हूँ। मुश्किलों से नहीं घबराता हूँ। उसका सामना हँसते हुए करता हूँ। चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, धैर्य को धारण करता हूँ। अगर विफलताओं से हमारे मुख पर निराशा छा जायेगी तब हम सच में हार चुके होंगे।

दोस्तों, आदतें बदलना थोड़ा मुश्किल जरूर है परंतु असंभव नहीं। थोड़े से प्रयत्न से हम अपने अंदर अच्छी आदतें विकसित कर सकते हैं। धीरे-धीरे अपने मन में नाउम्मीदी, दुर्बलता, चिंता एवं निराशा के स्थान पर धैर्य, आशावादिता, हिम्मत एवं सफलता के भावों को जगाना होगा।

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