विचारणीय

गीता कहती है - संशयात्मा विनश्यति अर्थात् सदा संशय करनेवाला, दूसरों को संदेह की दृष्टि देखनेवाला, अविश्वासी एवं अनियंत्रित व्यक्ति क्षय को प्राप्त होता है।

मंगलवार, 14 जुलाई 2015

आज़ादी



दोस्तों, जब कभी हम T.V. पर समाचार सुनते हैं अथवा अखबार पढ़ते हैं तब बिना देर किये देश में चल रहे क्रिया-कलापों की बिना सही जानकारी के टीका-टिप्पड़ियाँ करने लगते हैं, परन्तु इस बीच हम ये भूल जाते हैं की हम भी इसी देश के वासी हैं और देश की वर्तमान परिस्थिति के लिए हम भी उतने ही जिम्मेदार हैं.

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दूसरे मुल्कों की हजामत हम बाद में करेंगे. परन्तु पहले अपने मुल्क की दशा पर थोड़ा विचार करते है क्योंकि जिसके खुद के घर शीशे के बने होते है उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए.

आज़ादी, सोचो तो बहुत कुछ, न सोचो तो कुछ भी नहीं. आज भारत को आज़ादी मिले छह दसक से भी अधिक समय गुजर चुका है पर लगता है समय गुजरने के साथ-साथ आज़ादी का अर्थ भी जैसे बदल सा गया है.  

आज ये शब्द हर किसी के लिए एक पहेली मात्र बन कर रह गयी है. आज के इस तेज भाग-दौड़ भरी जीवनसैली में एक ओर जहाँ हम हमारे अपनों के लिए समय दे पाने में असमर्थता महसूस कर रहे हैं, वहाँ दूसरों द्वारा प्रकट किये विचारों के बारे में सोचने का वक्त आखिर है कहाँ.

अगर हम भारत के संविधान की बात करें तो उसमें आज़ादी के विषय में काफी कुछ वर्णित है. एक ओर हम आज़ादी की वर्षगाँठ मानते हैं वहीं दूसरी ओर समाज में आये दिन लूट-पाट, हत्या, दंगे, बलात्कार जैसी घटनायें बढ़ती जा रही है. शायद यह भी एक आज़ादी ही है जो हमने और हमारे समाज ने उन लोगों को दे रखा है जो ‘जिसकी लाठी उसी की भैंस’ की विचारधारा पर जीते चले आ रहें हैं. प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से हम सब उनका साथ देते आ रहे हैं.


हम आज भी दोहरी नीति पर जी रहे हैं. एक ओर हम महिला सशक्तिकरण की बात करतें हैं  वहीं दूसरी ओर उनके विचारों को घर, कार्यालय, जाति,समाज इत्यादी में पुरुषों के विचारों के मध्य पिस दिया जाता है.

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आज़ादी ! आखिर ये है किस चिड़िया का नाम ?

क्या केवल शारीरिक तौर पर दी गयी छूट ही आज़ादी है ?                       

क्या मानसिक आज़ादी इसके दायरे में नहीं आती है ?

अगर हमें अपने घर, समाज, देश की उन्नति सही मायने में करनी हो तो पहले अपने आस-पास जिन महिलाओं से आप घिरे हुए हैं उनका और उनके विचारों का सम्मान करें और उन्हें बराबर का हख दें.

एक बार हमें पुनः विचार करना पड़ेगा कि आज़ादी का सही मायने में आखिर अर्थ क्या है ?


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